Afghan Crisis : पाकिस्तान-चीन के साथ भारत के खिलाफ तिकड़ी बना सकता तालिबान, भारत के पास एक ही रामबाण – Navbharat Times

हाइलाइट्स

  • तालिबान के रूप में भारत के सामने एक नई और बड़ी चुनौती उभर गई है
  • देश की सुरक्षा के लिए सरकारों को समावेशी विकास की गति तेज करनी होगी
  • डर है कि भारत के प्रति तालिबान की रणनीति कहीं चीन-पाक से प्रेरित न हो

नई दिल्ली
अफगानिस्तान में तालिबान शासन से भारत के सामने आतंकवाद की चुनौती और गहरी होने की आशंका पैदा हो गई है। तालिबान को पाकिस्तान और चीन का समर्थन मिलना इसकी बड़ी वजह है। ऐसे में भारत को अपनी सुरक्षा को और भी चाक-चौबंद करने की दरकार है जो सिर्फ सीमाई सुरक्षा से संभव नहीं है बल्कि अंदरूनी तालमेल बहुत अहम है। हमारे सहयोगी अखबार द इकनॉमिक टाइम्स (ET) के सलाहकार संपादक टीके अरुण ने एक लेख में यह बात कही है। उन्होंने अपने लेख में बताया है कि अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के बाद वहां तालिबान के कब्जे का भारत के लिए क्या महत्व है और उसके लिए आगे का रास्ता क्या है?

ISI को मिल गया एक और खुला मैदान

वो लिखते हैं, ‘पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के नियंत्रण में अफगानिस्तान के रूप में दूसरा देश आ गया है। पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका के साथ-साथ अब अफगानिस्तान भी पश्चिमी दुनिया के दुश्मन आतंकवादी समूहों का ट्रेनिंग ग्राउंड बनेगा। ऐसे में पूरी आशंका है कि भारत विरोधी आतंकी समूहों को वहां ट्रेनिंग देकर पाकिस्तान और चीन के इशारों पर तैनाती की जाए।’

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नई चुनौती से कैसे निपटे भारत?
तो भारत क्या करे? अरुण कहते हैं, ‘भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के लिए जो सबसे बड़ा काम कर सकता है, वो है- अंदरूनी लोकतंत्र को मजबूत करना और सामाजिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता बनाना।’ वो आगे कहते हैं, ‘तालिबान के उभार से दक्षिण एशिया में कट्टर इस्लामी कट्टरता के बढ़ने का खतरा जरूर पैदा हुआ है। इस्लामोफोबिया इसे और मजबूती प्रदान करेगा। सबको साथ लेकर आगे बढ़ने की समावेशी विकास की रणनीति ही इसका जवाब हो सकती है। यही भारत की सबसे बड़ी चुनौती होगी।’

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चीन-पाक से मिलकर तिकड़ी बनाएगा तालिबान?
तालिबान, पाकिस्तान और चीन की तिकड़ी भारत के लिए कितनी खतरनाक हो सकती है? अरुण कहते हैं कि यह तालिबान की सोच पर निर्भर है। वो कहते हैं, ‘अगर तालिबान पर्याप्त चालाक होंगे तो वो पाकिस्तान या चीन को अफगानिस्तान का भविष्य तय करने का आधिकार कभी नहीं देंगे बल्कि वो रूस, चीन और अमेरिका को एक-दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल करेंगे। ताकि वो अफगानिस्तान के लिए सर्वोत्तम डील कर सकें। तालिबान अगर होशियार होंगे तो वो अल-कायदा को भी फिर से उठने नहीं देंगे ताकि अमेरिका को अफगानिस्तान पर हवाई हमलों का बहाना मिलता रहे।’












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अमेरिका सच में हार गया?

क्या अमेरिका अफगानिस्तान में परास्त हो गया? अरुण का कहना है कि ऐसा नहीं है। अमेरिका अफगानिस्तान में अपना मकसद पूरा कर चुका है। उसने अल-कायदा के कैंपों को तबाह कर दिया और तालिबान के साथ डील करके निकल लिया। हां, उसके निकलने के तरीके पर उंगली जरूर उठाई जा सकती है। अमेरिका की विदाई से चीन जरूर संतोष की आहें भर रहा होगा, लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं है कि अमेरिका का हार्ड या सॉफ्ट पावर कम हो गया है।

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भारत के खिलाफ बन सकती है चीन, पाकिस्तान, तालिबान की तिकड़ी।

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