तालिबान के सबसे बड़े दुश्‍मन हैं अमरुल्‍ला सालेह, मुशर्रफ को दी थी ‘पटखनी’, भारत के दोस्‍त – Navbharat Times

अफगानिस्‍तान में दशकों से विद्रोहियों का गढ़ रहे पंजशीर घाटी के एक बेटे ने तालिबान आतंकियों के खात्‍मे का प्रण किया है। जी हां यहां बात हो रही है कि तालिबान के सबसे बड़े दुश्‍मन और अफगानिस्‍तान के उप राष्‍ट्रपति अमरुल्‍ला सालेह की। अशरफ गनी के देश से फरार होने के बाद सालेह ने खुद को अफगानिस्‍तान का राष्‍ट्रपति घोष‍ित किया है। यह वही सालेह हैं जो अक्‍सर पाकिस्‍तान पर तीखे वार करते हैं और भारत के करीबी दोस्‍त हैं। यही नहीं तालिबान ने उन्‍हें मारने की कई बार कोशिश भी की है। इन सब से बेपरवाह सालेह से फिर से तालिबान के खिलाफ ऐलान-ए-जंग कर चुके हैं। आइए जानते हैं कौन हैं अमरुल्‍ला सालेह और उनका अब तक का राजनीतिक सफर….

​’पंजशीर के शेर’ के साथ सालेह ने सीखा जंग का हुनर



अमरुल्‍ला सालेह अफगानिस्‍तान के उपराष्‍ट्रपति का पदभार संभालने से पहले देश की खुफिया एजेंसी एनडीएस के चीफ थे। ताजिक जातीय समूह से आने वाले अमरुल्‍ला की एक बहन थी। तालिबान आतंकियों ने अमरुल्‍ला सालेह का पता लगाने के लिए उनकी बहन को पकड़ लिया और बुरी तरह से प्रताड़‍ित किया। इस दौरान अमरुल्‍ला के बहन की मौत हो गई। अफगानिस्‍तान में वर्ष 1990 के दशक में जब सोवियत सेनाएं घुसी थीं, उस समय सालेह ने पाकिस्‍तान में हथियारों का प्रशिक्षण हासिल किया और पंजशीर के शेर कहे जाने वाले कमांडर अहमद शाह मसूद के नेतृत्‍व में जंग लड़ा था। इसके बाद जब तालिबान ने अफगानिस्‍तान में पैर पसारना शुरू किया तब सालेह मसूद के नेतृत्‍व में तालिबान के खिलाफ जंग में कूद गए। इसके बाद सालेह ने भारत के साथ दोस्‍ती बढ़ाई। उन्‍होंने अहमद शाह मसूद की भारतीय अधिकारियों से मुलाकात कराई और सहायता हासिल की।

​सालेह ने खोली थी पाक-तालिबान नापाक दोस्‍ती की पोल



वर्ष 2001 में अमेरिका पर हमले के बाद तालिबान के खिलाफ शुरू हुए अमेरिकी सैन्‍य अभियान के दौरान खुफिया एजेंसियों के प्रभारी थे और अमेरिका की मदद की। वर्ष 2006 में सालेह ने एनडीएस के चीफ रहने के दौरान तालिबान पर एक जमीनी सर्वेक्षण कराया था जो लगातार हमले कर रहे थे। उन्‍होंने पाया कि ये आतंकी पाकिस्‍तान में सक्रिय हैं और वहीं से हमले करते हैं। अपने अध्‍ययन को उन्‍होंने एक रिपोर्ट की शक्‍ल दी। इसका नाम ‘तालिबान की रणनीति’ नाम दिया गया। इसमें सालेह की टीम ने लिखा कि पाकिस्‍तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने वर्ष 2005 में तालिबान को समर्थन देने का फैसला किया और नकद तथा पैसे मुहैया कराए। इस बीच अफगानिस्‍तान की हामिद करजई सरकार ने भारत को अपना दोस्‍त मानना शुरू कर दिया जिससे पाकिस्‍तान भड़क गया। इसके बाद पाकिस्‍तान ने तालिबान को पालना शुरू किया। सालेह की रिपोर्ट में कहा गया था कि जब अमेरिकी-नाटो सेनाएं कम होंगी तो तालिबानी हमले करेंगे।

​भारत की खुफिया एजेंसी रॉ, CIA से सालेह के अच्‍छे रिश्‍ते

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सालेह की रिपोर्ट सच साबित हुई आज तालिबान ने आईएसआई की मदद से पूरे अफगानिस्‍तान पर 20 साल बाद कब्‍जा कर लिया है। बताया जाता है कि करजई ने सालेह की इस रिपोर्ट पर भड़क गए थे और उन्‍होंने सालेह के निष्‍कर्षों को खारिज कर दिया। हालांकि बाद में सालेह देश उपराष्‍ट्रपति बने। सालेह को अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने भी ट्रेनिंग दिया है। सालेह ने अपने जासूसों का ऐसा नेटवर्क तैयार किया है जो उन्‍हें अफगानिस्‍तान से लेकर पाकिस्‍तान तक में तालिबान और आईएसआई की हरकतों पर नजर रखने में मदद करता है। कहा जाता है कि सालेह के भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ से अच्‍छे रिश्‍ते हैं। सालेह की इस दोस्‍ती की वजह से पाकिस्‍तानी उनसे नफरत करते हैं। जिहादियों के खिलाफ उनके सख्‍त कदमों के कारण तालिबान के वह सबसे बड़े दुश्‍मन हैं। तालिबानी सालेह को पकड़ना चाहते थे लेकिन वह चुपके से पंजशीर घाटी चले गए जो विद्रोहियों का अभेद्य किला है।

​जनरल मुशर्रफ और जनरल कयानी से भिड़ चुके हैं सालेह



तालिबान के सबसे बड़े दुश्‍मन होने के नाते सालेह हमेशा आईएसआई और आतंकियों के निशाने पर रहते थे। सालेह पर सितंबर 2020 समेत अब तक कई बार भीषण जानलेवा हमले हो चुके हैं। सालेह के नेतृत्‍व में एनडीएस ने वर्ष 2004 में यह पता लगा लिया था कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्‍तान के आवासीय इलाके में रहता है। सालेह ने वर्ष 2006 में बगराम में पाकिस्‍तानी तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ और तत्‍कालीन आईएसआई चीफ जनरल अशफाक परवेज कयानी के सामने ही उनकी पोल खोलकर रख दी थी। इस बैठक में कयानी इतने ज्‍यादा झल्‍ला उठे कि उन्‍होंने कहा कि मुझे अपने बेटे के उम्र के लड़के से खुफिया एजेंसी का काम नहीं सीखना है। सालेह ने इसके बाद भी अपनी बात को रखना जारी रखा। एक बार मुशर्रफ और करजई की बैठक में सालेह ने एक बार फिर से ओसामा का मुद्दा उठाया। इस पर मुशर्रफ भड़क गया और उसने कहा, ‘करजई आप इस पंजशीरी आदमी को मुझे गुप्‍तचरी सीखाने के लिए क्‍यों लाए हैं।’ मुशर्रफ के इस बयान के बाद भी करजई ने अपना भरोसा सालेह पर बनाए रखा। सालेह हमेशा से ही मानते रहे हैं कि तालिबान के खिलाफ सेना की कार्रवाई जरूरी है।

​सालेह ने खुद को घोषित किया अफगानिस्‍तान का राष्‍ट्रपति



अशरफ गनी के देश छोड़कर भाग जाने के बाद अमरुल्लाह सालेह ने खुद को अफगानिस्‍तान का राष्ट्रपति घोषित किया है। उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन पर भी निशाना साधते हुए कहा कि उनसे बहस करना अब बेकार है। सालेह ने नॉर्दन अलायंस की तरह अफगान नागरिकों से तालिबान के विरोध में खड़े होने की भी अपील की है। अमरुल्लाह सालेह ने ट्वीट कर कहा कि अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति की अनुपस्थिति, पलायन, इस्तीफा या मृत्यु में उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाता है। मैं वर्तमान में अपने देश के अंदर हूं और वैध देखभाल करने वाला राष्ट्रपति हूं। मैं सभी नेताओं से उनके समर्थन और आम सहमति के लिए संपर्क कर रहा हूं। उन्होंने दूसरे ट्वीट में अमेरिका पर निशाना साधते हुए कहा कि अब अफगानिस्तान पर जो बाइडेन से बहस करना बेकार है। उसे जाने दो। हमें अफगानों को यह साबित करना होगा कि अफगानिस्तान वियतनाम नहीं है और तालिबान भी दूर से वियतनामी कम्यूनिस्ट की तरह नहीं हैं। यूएस-नाटो के विपरीत हमने हौसला नहीं खोया है और आगे अपार संभावनाएं देख रहे हैं। चेतावनियां समाप्त हो गई हैं। प्रतिरोध में शामिल हों।

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