अफगानिस्तान का यह गढ़ जहां तालिबान कभी नहीं कर पाया कब्जा, सोवियत सेना की भी नहीं हुई थी हिम्मत – Navbharat Times

काबुल
अफगानिस्तान में काबुल सहित देश के अधिकतर हिस्सों पर तालिबान का कब्जा हो चुका है। इसके बावजूद कई ऐसे इलाके हैं जहां के लोग इस खूंखार आतंकी संगठन के खिलाफ लोग विद्रोह का झंडा उठाए हुए हैं। इन्हीं में से एक है नॉर्दन अलायंस के पूर्व कमांडर अहमद शाह मसूद का गढ़ पंजशीर घाटी। राजधानी काबुल के नजदीक स्थित यह घाटी इतनी खतरनाक है कि 1980 से लेकर 2021 तक इसपर कभी भी तालिबान का कब्जा नहीं हो सका है। इतना ही नहीं, सोवियत संघ और अमेरिका की सेना ने भी इस इलाके में केवल हवाई हमले ही किए हैं, भौगोलिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने भी कभी कोई जमीनी कार्रवाई नहीं की।

उपराष्ट्रपति सालेह इसी इलाके में छिपे
अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह भी इसी इलाके से आते हैं। रविवार को उन्होंने ट्वीट कर कहा कि मैं कभी भी और किसी भी परिस्थिति में तालिबान के आतंकवादियों के सामने नहीं झुकूंगा। मैं अपने नायक अहमद शाह मसूद, कमांडर, लीजेंड और गाइड की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा। मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा जिन्होंने मेरी बात सुनी। मैं तालिबान के साथ कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहूंगा। कभी नहीं।



तालिबान के लिए बन सकता है बड़ा सिरदर्द
एक तरफ जहां राष्ट्रपति अशरफ गनी काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद देश छोड़कर फरार हो गए। वहीं उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह अपने गढ़ यानी पंजशीर प्रांत चले गए। उनकी एक तस्वीर भी आई है जिसमें सालेह कई लोगों के साथ बैठकर बातें करते नजर आ रहे हैं। माना जा रहा है कि तालिबान के खिलाफ विद्रोह का यहीं से झंडा बुलंद हो सकता है। नार्दन अलायंस शुरू से ही तालिबान के खिलाफ जंग करती आई है। ऐसे में अब अमरुल्लाह सालेह अपने कमांडर अहमद शाह मसूद की जगह ले सकते हैं।

Panjshir 03


पंजशीर पर तालिबान आजतक नहीं कर पाया कब्जा
तालिबान ने जब जुलाई के शुरूआत में अफगानिस्तान के प्रांतो पर हमले शुरू किए तो कई जगह तो उन्हें बिना प्रतिरोध के ही जीत मिल गई। बताया जा रहा है कि अफगान नेशनल आर्मी के जवानों के बीच यह खबर फैलाई गई कि मिलिट्री के शीर्ष कमांडरों ने तालिबान के साथ समझौता कर लिया है। संचार का अभाव और असलहों की कमी से सैनिकों को भी इस पर विश्वास होने लगा। इसी कारण अफगान सेना के जवानों ने तो कई इलाकों में बिना एक भी गोली फायर किए तालिबान के सामने सरेंडर कर दिया। लेकिन, पंजशीर एकमात्र ऐसा प्रांत है जो अब भी तालिबान के कब्जे से बाहर है।

सोवियत सेना भी नहीं घुस पाई थी
उत्तर-मध्य अफगानिस्तान की इस घाटी पर 1970 के दशक में सोवियत संघ या 1990 के दशक में तालिबान ने कभी कब्जा नहीं किया था। अहमद शाह मसूद जिसे अक्सर शेर-ए-पंजशीर कहा जाता है, वे इस इलाके के सबसे बड़े कमांडर थे। इसकी भगौलिक बनावट ऐसी है कि कोई भी सेना इस इलाके में घुसने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। चारों तरफ से ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरे इस इलाके में बीच में मैदानी भाग है। जहां की भूलभुलैया को समझना हर किसी के लिए आसान नहीं है।

Ahmad Shah Massoud


अफगानों के हीरो थे अहमद शाह मसूद
1990 के दशक में अहमद शाह मसूद ने तालिबान के साथ अपने संघर्ष के दौरान बड़ी प्रतिष्ठा हासिल की थी। भारत भी उनकी मदद करता रहा है। कहा जाता है कि एक बार जब अहमद शाह मसूद तालिबान के हमले में बुरी तरह घायल हो गए थे तब भारत ने ही उनको एयरलिफ्ट कर ताजिकिस्तान के फर्कहोर एयरबेस पर इलाज किया था। यह भारत का पहला विदेशी सैन्य बेस भी है। इसे खासकर नार्दन अलायंस की मदद के लिए ही भारत ने स्थापित किया था।

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पंजशीर प्रांत

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