तालिबान ने अफगान सरकार से शांति वार्ता को लेकर ऐसी शर्तें रखी जिसके लिए अशरफ गनी तैयार न होंगे! – Hindustan

तालिबान को मदद करने के लिए पूरी दुनिया पाकिस्तान को खरी-खोटी सुना रहा। अब इसी दबाव के कारण पाकिस्तान ने रावलपिंडी में एक बैठक का सुझाव दिया है। इस बैठक में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी, तालिबान और क्वेटा शूरा के नेता बातचीत करेंगे ताकि सत्ता को लेकर किसी समझौते पर पहुंचा जा सके। लेकिन तालिबान ने बातचीत के लिए अफगान सरकार के सामने जो शर्त रखे हैं उसे पूरा करना अशरफ गनी सरकार के लिए शायद ही संभव हो।

इससे पहले 17-19 जुलाई के बीच अशरफ गनी और तालिबान नेता मुल्ला याकूब और सिराजुद्दीन हक्कानी के बीच बातचीत की कोशिश नाकाम रही थी क्योंकि तालिबान नेताओं ने राष्ट्रपति गनी से बात करने को मना कर दिया था। यह पहल अमेरिकी विशेष प्रतिनिधि जाल्मय खलीलजाद और यूके के सेना प्रमुख निक कार्टर के दिमाग की उपज थी जो असफल रही।

मीरवाइस खान होने सरकारी वार्ताकार?

चूंकि तालिबान राष्ट्रपति गनी से बातचीत को तैयार नहीं दिख रहा है। ऐसे में राजा जहीर के बेटे और अफगान सांस्कृतिक विरासत संरक्षण केंद्र के अध्यक्ष प्रिंस मीरवाइस खान का नाम वार्ताकार के तौर पर सामने आ रहा है। मीरवाइस पश्चिमी शिक्षा के विद्वान हैं और अफगानिस्तान में रहते हैं। हालांकि अभी तक अफगान सरकार की ओर से कोई तारीख या वार्ताकार के नाम तय नहीं किए गए हैं।

पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के दबाव में तालिबान पाकिस्तान में अफगानिस्तान सरकार से वार्ताकार से बातचीत करने को तैयार है लेकिन शांति समझौता की राहें बहुत कठिन हैं। काबुल स्थित डिप्लोमैट्स के मुताबिक तालिबान ने बातचीत को लेकर अफगान सरकार के सामने तीन शर्तें रखी हैं।

क्या हैं तीन शर्तें?

पहली शर्त यह है कि अफगानिस्तान के जेलों में बंद सभी तालिबानी कैदियों को बिना शर्त रिहा किया जाए। दूसरी शर्त है कि अफगानिस्तान सरकार को तालिबान को यूनाइटेड नेशंस द्वारा आतंकी समूह के रूप में लिस्ट से हटाने के लिए अफगान सरकार को अपने ऑफिस का इस्तेमाल करना चाहिए। तीसरी शर्त ये है कि राष्ट्रपति, रक्षा मंत्री, सेना प्रमुख, खुफिया एजेंसी एनडीएस प्रमुख तालिबान का हो।

यह फैसला अफगान सरकार और अमेरिका को करना है कि वह शांति समझौता के लिए अशरफ गनी को हटाते हैं या नहीं। अगर ऐसा होता है तो यह अफगान सरकार के लिए अपमानजनक और तालिबान की जीत होगी। सच ये भी है कि काबुल सरकार के पास अब बहुत विकल्प नहीं बचे हैं। सिर्फ दो विकल्प नज़र आते हैं। पहला तो ये कि वह तालिबान से लड़ें और तालिबान को पीछे धकेल दें और दूसरा ये कि अफगान सरकार पाकिस्तान समर्थित आतंकी ग्रुप तालिबान के सामने झुक जाए और शांति समझौता करे।

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