तालिबान ने बढ़ाई चिंता – Navbharat Times

भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अफगानिस्तान मसले पर हुई बैठक ने और कुछ किया हो या न किया हो, इसने पूरी दुनिया के सामने यह जरूर स्पष्ट कर दिया कि वहां जल्द हालात को नियंत्रित करना कितना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो अफगानिस्तान निकट भविष्य में दुनिया के लिए नया सिरदर्द साबित हो सकता है। भारत को नियमित प्रक्रिया के तहत सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभाले एक सप्ताह भी नहीं हुआ था कि यह बैठक हुई, जबकि इस महीने के तय कार्यक्रम में इसका जिक्र नहीं था।

असल में यह आपात बैठक अफगानिस्तान के विदेश मंत्री के विशेष आग्रह पर बुलाई गई। इसमें जिस तरह की गंभीर चर्चा हुई, उससे साफ है कि व्यापक वैश्विक समाज अफगानिस्तान के घटनाक्रम को लेकर चिंतित है। अमेरिका के अपने सैनिकों को वापस बुलाने के बाद वहां उपजे शून्य को तालिबान ने एक अवसर के रूप में लिया है। वह ताकत के बल पर अफगानिस्तान के अधिक से अधिक हिस्से पर कब्जा कर रहा है। इसी वजह से वहां से बड़े पैमाने पर लोग पलायन कर रहे हैं और शरणार्थियों का एक संकट भी खड़ा हो रहा है।

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तालिबान इसलिए ऐसा कर पा रहा है क्योंकि उसे पाकिस्तान का समर्थन हासिल है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी यह बात पहले स्पष्ट रूप से कह चुके हैं, लेकिन पाकिस्तान सरकार इससे इनकार करती आई है। सुरक्षा परिषद की बैठक में भी अफगान प्रतिनिधि ने कहा कि तालिबान लड़ाके अफगानिस्तान में प्रवेश के लिए डुरंड रेखा के पास इकट्ठा हो रहे हैं। पाकिस्तान में तालिबान के लिए फंड जुटाने की खातिर इवेंट आयोजित किए जा रहे हैं। वहां के अस्पतालों में घायल तालिबानों का इलाज भी हो रहा है। ऐसे न जाने कितने सबूत हैं कि पाकिस्तान के इस इनकार का कोई मतलब नहीं रह जाता।

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बैठक में अमेरिका का यह साफ करना भी महत्वपूर्ण है कि तालिबान को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की बात सुननी ही होगी और किसी भी सूरत में अफगानिस्तान पर उसके सैन्य कब्जे को या तालिबान के इस्लामी अमीरात की वापसी को स्वीकार नहीं किया जाएगा। वैसे अफगानिस्तान के सवाल पर रूस की अगुआई में एक महत्वपूर्ण बैठक बुधवार को ही होनी है, जिसमें चीन, पाकिस्तान और अमेरिका के भी शामिल होने की संभावना है। देखना होगा कि सुरक्षा परिषद की बैठक में जो बातें हुईं, उसका इस मीटिंग में क्या असर होता है।

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यह बात भी समझनी होगी कि अफगानिस्तान के सभी पक्षों के बीच बातचीत का मकसद राजनीतिक सुलह पर सहमति है। अमेरिका, चीन और रूस जैसे देशों को इसके लिए पूरा जोर लगाना चाहिए। उन्हें इसके लिए तालिबान पर दबाव बनाना होगा, जो ताकत बढ़ने पर इससे मुकर भी सकता है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो तालिबान के कब्जे वाला अफगानिस्तान फिर से वैश्विक आतंकवाद को पनाह दे सकता है।

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