देश में कितने OBC? केंद्र जिसके लिए नहीं राजी और नीतीश जानने को बेकरार, स्कूलों से खुल गया वह सियासी राज’ – Navbharat Times

हाइलाइट्स

  • देश में जाति आधारित जनगणना करवाने की मांग जोर पकड़ने लगी है
  • जाति आधारित राजनीति के युग में दबाव समूह के रूप में जातियां मुखर हो गई हैं
  • 1931 तक भारत में भी जाति आधारित जनगणना हुआ करती थी
  • आजादी के बाद सिर्फ एसटी/एसटी वर्ग का जिक्र जनगणना में होता है

नई दिल्ली
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जातीय जनगणना की लगातार वकालत कर रहे हैं तो केंद्र सरकार इसपर कोई कुछ भी बोलने से बच रही है। इस बीच स्कूलों से जुटाए गए राज्यवार आंकड़ों से देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की आबादी का एक मोटा-मोटा अनुमान सामने आ गया है। ध्यान रहे कि एक्सपर्ट्स जातीय जनगणना पर नीतीश कुमार की जोर के पीछे ओबीसी पॉलिटिक्स का हाथ ही देख रहे हैं।

प्राइमरी स्कूलों के स्टूडेंट्स से मिल रहे संकेत

देशभर के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों की जातियों के आधार पर वर्गीकरण करने के बाद पता चलता है कि 45% बच्चे ओबीसी से आते हैं जबकि अनुसूचित जाति (SC) के 19% और अनुसूचति जनजाति (ST) के 11% बच्चे प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ रहे हैं। ये आंकड़े शैक्षिक सत्र 2019-20 के हैं। इनके मुताबिक, करीब एक चौथाई विद्यार्थी सवर्ण हिदू और अन्य धर्मों से हैं जिनमें बौद्ध धर्म शामिल नहीं है।



किस राज्य में कितना ओबीसी कोटा।


स्कूली बच्चों के डेटा पर आधारित आबादी का अनुमान लगभग सही

यूनाइटेड इन्फोर्मेशन सिस्टम फोर एजुकेशन प्लस (UDISE+) स्कूलिंग से जुड़े डेटा मैंटेन करता है। यह एक दशक से ज्यादा वक्त से स्कूली छात्र-छात्राओं का जातीय आधार पर आकंड़े इकट्ठा कर रहा है। चूंकि देश के प्राथमिक स्कूलों में 100% बच्चों का नामांकन हो रहा है, इसलिए जाति आधारित आबादी का पता करने के लिए कक्षा एक से पाचवीं तक के बच्चों की जाति को आधार बनाना सर्वोत्तम होगा। हालांकि, इसे जाति आधारित जनगणना की तरह स्वीकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन जब एससी/एसटी स्टूडेंट्स के राज्यवार अनुपात का 2011 की जनगणना में दर्ज उनकी आबादी से मिलान किया गया तो आंकड़े करीब-करीब बराबरी पर ठहरे। इसलिए, यह माना जा सकता है कि ओबीसी स्टूडेंट्स के अनुपात के आधार पर देश की जनसंख्या में ओबीसी आबादी 45% या इससे कुछ ही ज्यादा होगी।

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आरक्षण की राजनीति

उधर, मंडल कमिशन ने देश में ओबासी आबादी 52% होने का अनुमान लगाया था। चूंकि प्राथमिक स्कूल के ओबीसी छात्रों का अनुपात इससे कम पाया गया है, फिर भी उनकी आबादी के अनुपात में रिजर्वेशन तो नहीं ही मिल रहा है जैसा कि एसी और एसटी को प्राप्त है। दक्षिणी राज्यों में ओबीसी स्टूडेंट्स को सबसे ज्यादा आरक्षण का लाभ मिलता है। 71% ओबीसी आरक्षण के साथ तमिलनाडु इस लिस्ट में टॉप पर है जबकि केरल में 69%, कर्नाटक में 62% कोटा तय है। वहीं, बिहार 61% ओबीसी कोटे के साथ उत्तरी भारत के राज्यों की लिस्ट में शीर्ष पर है जबकि उत्तर प्रदेश में 54% और राजस्थान में 48% ओबीसी आरक्षण लागू है।

आजादी के बाद जाति जनगणना का चलन खत्म

वर्ष 1931 तक जनगणना में जातियों का उल्लेख हुआ करता था, लेकिन आजादी के बाद जनगणना में सिर्फ एससी और एसटी का ही उल्लेख किया गया। सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना (SECC) के तहत जुटाए गए आंकड़ों को 2016 में ही प्रकाशित करना था, लेकिन सरकार ने यह कहते हुए इस पर रोक लगा दी कि अभी वर्गीकरण के गंभीर मुद्दों का समाधान करना है। 2021 की जनगणना में भी जातियों का जिक्र किए जाने की उम्मीद की जा रही है, लेकिन अभी इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है। यही वजह है कि नीतीश कुमार सहित दलितों-पिछड़ों के नेता की पहचान बनाने की कोशिश में जुटे अन्य नेता जातीय जनगणना पर जोर दे रहे हैं।

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जाति आधारित जनगणना की जोर पकड़ रही मांग।

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