बेटा बन रहा है कर्नाटक का मुख्यमंत्री, पिता के ऐतिहासिक केस की हो रही है चर्चा – Zee Hindustan

बेंगलुरु: Basavaraj Bommai new Karnataka CM: भारतीय जनता पार्टी ने मंगलवार को विधायक दल की बैठक के बाद कर्नाटक में बी एस येदियुरप्पा की जगह राज्य के नए सीएम का ऐलान कर दिया. येदियुरप्पा सरकार में गृह मंत्री के रूप में कार्य कर रहे बसवराज बोम्मई को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक दल का नेता चुना गया. इसके बाद राज्य के नए मुख्यमंत्री के रूप में आधिकारिक तौर पर उनके नाम का ऐलान कर दिया गया.

सुबह 11 बजे शपथ लेंगे बोम्मई
बुधवार को सुबह 11 बजे बसवराज बोम्मई के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही उनका नाम भारतीय राजनीति की उन चुनंदा पिता-पुत्र को जोड़ियों में शुमार हो जाएगा जिन्हें मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ.

एस आर बोम्मई के बेटे हैं बसव
कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस आर बोम्मई के पुत्र हैं. एस आर बोम्मई का नाम भारतीय राजनीति, सियासी गलियारों, वकालत और राजनीति शास्त्र की शिक्षा हासिल करने वालों के लिए कोई अनजाना नहीं है. एस.आर. बोम्मई बनाम भारत गणराज्य केस का उल्लेख सविंधान के अनुच्छेज 356 के दुरुपयोग को रोकने में संदर्भ में किया जाता है.

इस ऐतिहासिक मामले पर सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने जो ऐतिहासिक फैसला दिया था उसने अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग पर रोक लगा दी थी. इस फैसले का केंद्र और राज्यों के बीच के संबंधों पर भारी प्रभाव पड़ा था.

1988 से 1989 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे
बसवराज बोम्मई के पिता एसआर बोम्मई साल 1988 से 1989 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे थे. सितंबर 1988 में जनता पार्टी और लोक दल पार्टी ने एक नई पार्टी जनता दल का गठन करके राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश किया. एसआर बोम्मई के नेतृत्व में जनता दल राज्य में सबसे ज्यादा बहुमत वाली पार्टी बनी.

सरकार के गठन के महज दो दिन बाद जनता दल के विधायक आर मोलाकेरी ने राज्यपाल के सामने एक पत्र पेश किया. जिसमें उन्होंने अपने पत्र के साथ 19 विधायकों का सहमति पत्र जारी किया.

ऐसे बर्खास्त हुई थी सरकार
इसके बाद कर्नाटक के मौजूदा राज्यपाल पी वैंकटसुबैया ने राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट भेजकर कहा कि सत्ताधारी पार्टी के कई विधायक उनसे खफा हैं, इन विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद बोम्मई सरकार के पास बहमुत नहीं बचा है. ऐसे में उन्हें सरकार बनाने नहीं दिया जा सकता.

यह तर्क संविधान के खिलाफ था और उन्होंने राष्ट्रपति से अनुच्छेद 356(1) के तहत शक्तियों को उपयोग कर सरकार को बर्खास्त करने का अनुरोध किया था. राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राष्ट्रपति से घोषणा करवाकर सरकार को बर्खास्त कर दिया.

विधायकों ने दस्तखत को बताया नकली
इस वाकये के कुछ दिन बाद जिन विधायकों ने राष्ट्रपति को अपना बोम्मई सरकार के साथ समर्थन नहीं होने की बात कही थी. वो अपनी बात से पलट गए और राज्यपाल को दी गई चिट्ठी में अपने दस्तखत को नकली बताया और जनता दल को फिर से समर्थन देने की बात कही.

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था मामला
इसके बाद जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने राज्य सरकारों को बर्खास्त किए जाने वाले संविधान के अनुच्छेद 356 की व्याख्या की और कहा, अनुच्छेद 356 के तहत यदि केन्द्र सरकार राज्य में चुनी हुई सरकार को बर्खास्त करती है तो सर्वोच्च न्यायालय सरकार बर्खास्त करने के कारणों की समीक्षा कर सकता है और न्यायालय केंद्र से उस सामग्री को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए कह सकता जिसके आधार पर राज्य की सरकार को बर्खास्त किया गया है.

इस फैसले में  कोर्ट ने राज्यपालों को यह हिदायत भी दी और कहा ‘किसी भी राज्य सरकार को बहुमत हैं या नहीं हैं,इसका निर्णय राजभवन में नहीं होना चाहिए इसका निर्णय विधानसभा में होना चाहिए’

यह भी पढ़िएः CM बनने वाले पिता-पुत्र की जोड़ी में जुड़ा कर्नाटक के बोम्मई परिवार का नाम

फैसले का असर आज भी जारी
साल 1994 में दिए इस फैसले का असर आज 26 साल बाद भी जारी है. जब कभी किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो एसआर बोम्मई बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले का अनायास ही जिक्र हो जाता है. ऐसे में जब उनके बेटे की कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी हो रही है तब भी एसआर बोम्मई मामले की चर्चा हो रही है.

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