हरियाणा के पुराने घावों को हरा न कर दे उग्र होता किसान आंदोलन, अब राकेश टिकैत पर दारोमदार – दैनिक जागरण

हिसार, जगदीश त्रिपाठी। मध्य हरियाणा में जहां तीनों कृषि सुधार कानूनों का एक बड़ा और प्रभावशाली वर्ग उग्र विरोध कर रहा है, वहां फिलवक्त राकेश टिकैत सुपरलीडर बने हुए हैं। लेकिन कब तक। आंदोलन जिस दिशा में जा रहा है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि अभी कुछ दिन तक राकेश टिकैत मध्य हरियाणा में नायक बने रहेंगे। और उसके बाद यह भी प्रबल आशंका है कि खलनायक बन जाएं। यह आशंका तथ्यहीन भी नहीं है। इसलिए अब सारा दारोमदार राकेश टिकैत पर है कि वो आंदोलन को सही दिशा में लेकर जाएं और हिंसक होने से बचाएं।

जाट आरक्षण आंदोलन: पांच वर्ष पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के यशपाल मलिक मध्य हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन का चेहरा बन गए थे। लोग उनके पीछे पागल थे। आंदोलन को हिंसक बनाने में मलिक की प्रभावी भूमिका थी। आंदोलन हिंसा की भेंट चढ़ गया और मलिक उत्तर प्रदेश चले गए। आज वह नेपथ्य में हैं लेकिन हरियाणा में खलनायक माने जाते हैं, जिसने हरियाणा के भाईचारे को चोट पहुंचाई। अब कृषि सुधार कानून विरोधी आंदोलन भी अब हिंसा की तरफ बढ़ रहा है। छब्बीस जनवरी में दिल्ली में हुई हिंसा के बाद आंदोलनकारियों के स्टार बनकर चमके राकेश टिकैत को मध्य हरियाणा सर्वाधिक उर्वर लगा।

यशपाल मलिक की तरह उन्होंने भी यहां एंट्री मारी। यह हरियाणा में आंदोलन के इकलौते चेहरे चढ़ूनी को नहीं भाया। यद्यपि आंदोलनकारियों को हिंसा के लिए उकसाने के आरोपों से वह भी अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते। कुरुक्षेत्र में जब एसडीएम पर ट्रैक्टर चढ़ाने का प्रयास हुआ तो नेतृत्व चढ़ूनी ही कर रहे थे। करनाल में मुख्यमंत्री मनोहर लाल के आगमन से पूर्व जो हिंसा हुई, उसकी जिम्मेदारी चढ़ूनी ने सगर्व ली थी। इसके बाद से ही आंदोलनकारियों ने मध्य हरियाणा में सत्तारूढ भाजपा-जजपा नेताओं का घेराव, मारपीट शुरू कर दी थी।

जाट समुदाय पर हमला: अभी हाल ही में हिसार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल जब कोविड अस्पताल का लोकार्पण करने आए तो जमकर हिंसा हुई। तब चढ़ूनी और टिकैत दोनों पहुंचे। फिर अंतरराषट्रीय रेसलर बबीता फौगाट और फतेहाबाद के विधायक देवेंद्र बबली पर हमला हुआ। दोनों जाट समुदाय के हैं। बबली पर हमलावरों के खिलाफ एफआइआर दर्ज हुई। विरोध में आंदोलनकारियों का समर्थन करने वालों ने पंचायत की। चढूनी भी पहुंचे। उन्होंने प्रशासन से समझौता किया और छह जून तक समय दिया। लेकिन पंचायत में मौजूद लोगों ने उनकी बात नहीं मानी, वे बबली के आवास का घेराव करने पहुंच गए। इसके बाद चढ़ूनी ने बयान दिया कि जो लोग बबली पर हमला करने वाले हैं, वे संयुक्त किसान मोर्चा के लोग नहीं है। इसके बाद चढ़ूनी के बयान की आलोचना शुरू हो गई।

इस आंदोलन का हश्र भी जाट आरक्षण आंदोलन जैसा हुआ तो..राकेश टिकैत ने भी अगले दिन हमलावरों को संयुक्त किसान मोर्चा से संबद्ध बता दिया। स्पष्ट है कि हिंसक गतिविधियों की ओर जा रहे आंदोलन का जो सपोर्ट करेगा, वही नेता माना जाएगा। राकेश टिकैत शायद इसे समझते हैं। इसलिए वे आंदोलनकारियों की हिंसा के विरोध में बयान देने से परहेज करते हैं। वैसे भी उनके और चढ़ूनी के बीच मतभेद हैं। लेकिन यदि इस आंदोलन का हश्र भी जाट आरक्षण आंदोलन जैसा हुआ तो राकेश टिकैत का हश्र भी यशपाल मलिक जैसा होगा। हो सकता है कि राकेश टिकैत कुछ दिन बुलंदी पर रहें, लेकिन बकौल मुनव्वर राना, बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है।

टिकैत को इसका ध्यान रखना चाहिए। यदि आंदोलन हिंसक हुआ तो आंदोलन का नुकसान तो होगा ही, हरियाणा का सर्वाधिक नुकसान होगा जो जाट-गैर जाट खाई में बंटा हुआ है, यह खाई और गहरी व चौड़ी हो जाएगी जिसे पाटना मुश्किल होगा। जाट आरक्षण आंदोलन के जख्म अभी तक भरे नहीं हैं। टिकैत तो यशपाल मलिक की तरह उत्तर प्रदेश लौट जाएंगे, लेकिन हरियाणा को जो घाव देकर जाएंगे, वह अगले कई वर्षों तक नहीं भरेगा।

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