इजराइल-फिलीस्तीन जंग: आखिर लंबे वक्त अमन रहने के बाद अचानक रॉकेट-मिसाइल क्यों दागे जा रहे; बारूद के ढेर में… – Dainik Bhaskar

Ads से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप

तेल अवीव/वॉशिंगटनएक घंटा पहले

  • कॉपी लिंक

दुनिया की कोशिशों के बाद इजराइल और फिलीस्तीन के बीच लंबे वक्त शांति रही। डिप्लोमैटिक लेवल्स पर कई बार गूंज सुनाई दे जाती थी। फिर ऐसा क्या हुआ कि पिछले हफ्ते अचानक जंग के हालात पैदा हो गए, ये अब भी जारी हैं। आइए इस मामले की तह में जाने की कोशिश करते हैं।

इजराइली पुलिस की कार्रवाई
पिछले हफ्ते हमास सोमवार को (इजराइल और पश्चिमी देश इसे आतंकी संगठन बताते हैं) ने इजराइल की सरजमीं पर पहला रॉकेट दागा। इसके 27 दिन पहले (13 अप्रैल को) इजराइली पुलिस यरूशलम की पवित्र अल अक्सा मस्जिद में घुसी। लोगों से बहस, फिर मारपीट की। वहां लाउडस्पीकर्स की तमाम केबल्स काट दीं। एक तरह से पूरा परिसर ही तबाह कर दिया। यह मुस्लिमों के पवित्र रमजान माह का पहला दिन था। इसी दिन इजराइल का मेमोरियल डे था। यह उन सैनिकों की शहादत को याद करने के लिए मनाया जाता है जिन्होंने मुल्क बनाने में योगदान दिया। इजराइली राष्ट्रपति भी पहुंचे। अल अक्सा मैनेजमेंट इसकी पुष्टि करता, इजराइल चुप्पी साध लेता है।

एक महीने बाद रिएक्शन
अल अक्सा दुनिया में मुस्लिम समुदाय की आस्था का बड़ा केंद्र है। इसलिए इजराइली पुलिस के दमन का विरोध शुरू हुआ। अंदर ही अंदर आग भड़कने लगी। हमास जवाबी कार्रवाई की तैयारी में जुट गया। एक महीने बाद उसने रॉकेट से इजराइल पर हमला किया। इजराइल के कुछ शहरों में अरब और यहूदियों के बीच दंगे शुरू हो गए, जो कि अमूमन नहीं होते। यरूशलम के मुफ्ती शेख करीम कहते हैं- अल अक्सा में पुलिसिया कार्रवाई ही जंग के लिए जिम्मेदार है।

यरूशलम में एक फिलीस्तीनी युवा को हिरासत में लेकर जाती इजराइली पुलिस।

यरूशलम में एक फिलीस्तीनी युवा को हिरासत में लेकर जाती इजराइली पुलिस।

और अब हालात खतरनाक
हमास ने इजराइल पर रॉकेट्स दागे। जवाब में इजराइल की बेहद ताकतवर एयरफोर्स ने हमले किए। 150 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जंग थमने का नाम नहीं ले रही। इजराइल में तो सिर्फ 12 लोगों की मौत हुई है, लेकिन फिलीस्तीन की हालत बयां करने के लिए मरने वालों के आंकड़े ही काफी हैं। जंग का दायरा गाजा से वेस्ट बैंक और फिलीस्तीन के दूसरे हिस्सों में पैर पसार चुका है। लेबनान के रिफ्यूजी कैम्प्स को निशाना बनाया गया तो दक्षिण सीमा पर जॉर्डन विरोध में आ गया।

इजराइल की सरकार ही संकट में
जंग उस वक्त हो रही है, जबकि इजराइल में सरकार के अस्तित्व पर संकट है। फिलीस्तीन में हमास का दबदबा बढ़ता जा रहा है। यहां का युवा वर्ग अब हमास के साथ संघर्ष को आगे बढ़ा रहा है। इसके पीछे कई साल से चले आ रहे इजराली प्रतिबंध भी हैं। वेस्ट बैंक पर कब्जा भी है और इजराइल में अरबों के साथ होने वाला दशकों पुराना भेदभाव भी।

इजराइली संसद के पूर्व स्पीकर अब्राहम बुर्ग कहते हैं- यूरेनियम तैयार था, बस बटन दबान की देर थी। और ये ट्रिगर पॉइंट था- अल अक्सा मस्जिद का मुद्दा।

सात साल बाद ऐसे हालात
हमास और इजराइल के बीच, पिछला बड़ा संघर्ष सात साल पहले हुआ था। दोनों के बीच अब तक 16 बार हिंसक झड़पें हो चुकी हैं। डोनाल्ड ट्रम्प ने जब यरूशलम में इजराइली एम्बेसी खोलने की मंजूरी दी थी, तब भी संघर्ष नहीं हुआ था। यूएई समेत खाड़ी के तीन देशों ने इजराइल को मान्यता दी, तब भी कुछ नहीं हुआ। हालांकि, इजराइली सेना का एक तबका दो महीने पहले से इसकी आशंका जता रहा था।

क्या ये ईरान का किया धरा
इजराइली सेना के कुछ अफसर हालिया जंग को ईरान का खेल बताते हैं। ये लेबनान से सिर्फ एक हजार किलोमीटर दूर है। मार्च में दो डिप्लोमैट्स इस बात से खुश थे कि लंबे वक्त से अमन कायम है। गाजा में कोविड-19 का कहर भी जारी है। मार्च में यहां इलेक्शन होने वाले थे, 15 साल बाद में यह पहली बार होना था, ये भी टल गया। फिलीस्तीन की लीडरशिप और हमास के बीच इस बात को लेकर एक राय नहीं है कि इकोनॉमी पर फोकस किया जाए या जंग पर। इस बीच, अल अक्सा का वाकया हुआ और तस्वीर बदल गई।

13 अप्रैल को जब इजराइली राष्ट्रपति रेवन रिवलिन ने यहां स्पीच दी तो इजराइल ने अल अक्सा के लाउडस्पीकर इस्तेमाल करने की हिदायत दी, लेकिन इसका पालन नहीं हुआ। इसके बाद पुलिस ने मस्जिद में छापा मारा। यहां के शेख साबरी कहते हैं- इजराइली पुलिस मस्जिद का सम्मान नहीं कर रही थी। वो भी तब जबकि यह माह-ए-रमजान था। हालांकि, इजराइली राष्ट्रपति के प्रवक्ता इस बात से इनकार करते हैं कि मस्जिद के लाउड स्पीकर हटाए गए थे। दमिश्क गेट पर एक प्लाजा भी गिरा दिया गया।

कुछ और बातें भी हुईं
इजराइली पुलिस की कार्रवाई को एक महीना हो चुका था। इस बीच, इजराइल ने अपने हिस्से से 6 फिलीस्तीनी परिवारों को बेदखल कर दिया। फिलीस्तीन में सरकार पर दबाव था और यही वो मौका था जब हमास ने इसे अपने नजरिए से देखा। इजराइली सरकार इन चीजों के लिए तैयार नहीं थी। हमास बराबरी की मांग पर संघर्ष के लिए तैयार था। इजराइल की घरेलू खुफिया एजेंसी के पूर्व डायरेक्टर एमी अयालोन ने कहा- हमारे लिए यह अलर्ट है। ये मानकर नहीं चलना चाहिए था कि जो अमन कायम था, वो जारी भी रहेगा।

13 अप्रैल को इजराइल ने मेमोरियल डे मनाया। यह दिन उन लोगों की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने इजराइल को अलग मुल्क बनाने के सफर में शहादत दी।

13 अप्रैल को इजराइल ने मेमोरियल डे मनाया। यह दिन उन लोगों की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने इजराइल को अलग मुल्क बनाने के सफर में शहादत दी।

कुछ फिलीस्तीनी मजबूर
1967 में इजराइल ने फिलीस्तीन के कुछ उन हिस्सों पर कब्जा कर लिया जहां ज्यादातर अरब मूल के लोग रहते थे। अब ये उनकी मजबूरी बन गई है। इन लोगों के पास इजराइली नागरिकता भी नहीं है और वोटिंग का अधिकार भी। इन पर कई तरह के प्रतिबंध हैं। कई बार इनके घर तोड़े जाते हैं और शहर से बाहर जाने के लिए भी मंजूरी लेनी पड़ती है।

प्लाजा गिराने की घटना के बाद फिलीस्तीनी युवाओं ने पुलिस पर हमले किए। सोशल मीडिया पर इसके वीडियो शेयर किए गए। जवाब में यहूदियों ने सेंट्रल यरूशलम में फिलीस्तीनियों के घरों पर हमला किया, मारपीट की। फॉरेन डिप्लोमैट्स ने मामला संभालने की कोशिश की। लेकिन, इजराइल ने ज्यादा रुचि नहीं ली। इसकी एक वजह इजराइल की सियासत भी थी। वहां चार चुनाव हो चुके हैं, लेकिन बहुमत वाली सरकार नहीं बन सकी।

सियासी फायदा उठाते हैं नेतन्याहू
पॉलिटिकल एनालिस्ट एन्शेल फीफर कहते हैं- इजराइल का जन्म होने से पहले भी यहां अरब मूल के लोग रहते थे। नेतन्याहू कई साल से अरब-यहूदी तनाव का फायदा सियासत के लिए करते रहे हैं। इसका नुकसान भी काफी हुआ। नेतन्याहू के एडवाइजर रेगेव इसे खारिज करते हैं। उनके मुताबिक- हमारे प्रधानमंत्री ने अमन बहाली की हर मुमकिन कोशिश की है।

शेख जर्राह में रहने वाले सालेह दीब कहते हैं- दमिश्क गेट और फिलीस्तीनी नागरिकों को यरूशलम से बाहर करने का मामला समझिए। इजराइली हमें यरूशलम से बाहर कर देना चाहते हैं। 1948 से यह किया जा रहा है और कोई अपना जन्मस्थान नहीं छोड़ना चाहता।

फिलीस्तीन की अंदरूनी सियासत
फिलीस्तीन में मार्च में चुनाव टलने के बाद 29 अप्रैल की तारीख तय की गई थी। राष्ट्रपति महमूद अब्बास को हार का डर सता रहा था। इसलिए, कोविड के बहाने इन्हें फिर टाल दिया गया। हमास ने इसे मौके के तौर पर लिया और युवाओं का साथ होने की वजह से वो पॉलिटिकल लीडरशिप पर हावी हो गया। वो लोगों को यह समझाने की कोशिश करता रहा है कि इजराइल से विवाद का हल सियासत से नहीं हो सकता। हमास के मिलिट्री लीडर मोहम्मद दीफ ने 4 मई को कहा था- हम आखिरी चेतावनी दे रहे हैं। अगर शेख जर्राह इलाके में हमारे लोगों पर जुल्म बंद नहीं हुआ तो हम भी चुप नहीं बैठेंगे। अब हालात सामने हैं।

खबरें और भी हैं…

Related posts