हिन्दुस्तान पड़ताल: UP-बिहार से झारखंड तक कोरोना काल में भी धूल फांक रहे हजारों वेंटिलेटर, क्या ऐसे जीतेंगे जंग? – Hindustan

एक वेंटिलेटर सालभर में न जाने कितने लोगों की जान बचाता है। यह जीवन रक्षक उपकरण काफी महंगा होता इसलिए हर अस्पताल में होता भी नहीं। दिल्ली-एनसीआर के बड़े अस्पतालों में भी हमेशा वेंटिलेटर की कमी रहती है। इस तरह के हालात होते हुए भी सैकड़ों वेंटिलेटर यहां वहां धूल फांक रहे हैं। कहीं चलाने वाला नहीं तो कहीं किसी मामूली उपकरण की कमी रह गई है। बिहार, झारखंड, उत्तराखंड और दिल्ली-एनसीआर से डिब्बा वेंटिलेटर की ग्राउंड रिपोर्ट।

कोरोना काल में वेंटिलेटर की मारामारी से पूरा मध्य यूपी जूझ रहा है। बुंदेलखंड के जिलों में हालात कमोवेश बेहतर हैं। मध्य यूपी के आठ जिलों में टेक्नीशियन व सपोर्टिंग स्टाफ न होने से दिक्कत ज्यादा है। पीएम केयर फंड और पहले से मौजूद 250 से ज्यादा वेंटिलेटर में आधे से ज्यादा धूल फांक रहे हैं। सबसे ज्यादा खराब स्थिति कन्नौज मेडिकल कॉलेज की है। यहां कुल 105 वेंटिलेटर थे, जिनमें  30 लखनऊ भेज दिेए गए हैं। बचे 75 इंस्टॉल तो हैं पर अनुपयोगी। जिला अस्पताल में 24 वेंटिलेटर स्टाफ न होने से बेकार हैं। यही हाल फर्रुखाबाद का है। यहां 16 वेंटिलेटर में एक भी काम नहीं कर रहा है, क्योंकि इन्हें चलाने वाला ही कोई नहीं है l कानपुर एक मात्र जिला है जहां न वेंटिलेटर की दिक्कत है न संचालन के लिए प्रशिक्षित पैरामेडिकल स्टाफ और डॉक्टर की। 

स्टाफ ही नहीं है तो चलेंगे कैसे 
बरेली के 300 बेड कोविड अस्पताल में 18 वेंटिलेटर लगाए गए थे जो एक साल से चले ही नहीं। प्रशिक्षित स्टाफ की कमी के चलते कोरोना काल में भी वेंटिलेटर बंद रहे। सीएमओ डाक्टर एसके गर्ग का कहना है कि जल्द ही ट्रेंड स्टाफ मिलने की संभावना है। उसके बाद वेंटिलेटर शुरू हो सकेगा। इसी तरह बदायूं जिला अस्पताल में पांच, राजकीय मेडीकल कालेज में 103 में से 90, शाहजहांपुर मेडिकल कालेज में 54, पीलीभीत में 16 में से 14 वेंटीलेटर चले ही नहीं हैं। सब जगह प्रशिक्षित स्टाफ नहीं है। जिला खीरी में 30 वेंटीलेटर धूल फांक रहे हैं। 

ये है जिलों का हाल
इटावा
: सैफई मेडिकल में पुराने 110 वेंटिलेटर क्रियाशील, पीएम केयर से आए 45 में आठ अब लगाए जा रहे हैं, बाकी पैक रखे हैं। जिला अस्पताल में 15 पुराने, तीन पीएम केयर फंड से आए, सिर्फ एक चल रहा।

औरैया के 100  शैया जिला अस्पताल में 23 वेंटीलेटर हैं। सभी क्रियाशील हैं। सीएमओ डॉ अर्चना श्रीवास्तव ने बताया कि प्रशिक्षित स्टाफ और तकनीशियन की कमी है, लेकिन सभी वेंटिलेटर काम कर रहे हैं।

फर्रुखाबाद: 16 वेंटिलेटर में एक भी काम नहीं कर रहा है, क्योंकि इन्हें चलाने वाला ही कोई नहीं है l

कन्नौजः कन्नौज मेडिकल कॉलेज में कुल 105 वेंटिलेटर थे, जिनमें 30 लखनऊ भेज दिेए गए हैं। बचे 75 इंस्टॉल तो हैं पर अनुपयोगी। जिला अस्पताल में 24 वेंटिलेटर स्टाफ न होने से बेकार हैं।   

फतेहपुर: कोरोना काल में 13 वेंटिलेटर मिले थे, जिले में कुल 29 वेंटिलेटर हैं। सिर्फ 17 रनिंग पोजीशन में हैं। गंभीर मरीजों को प्रयागराज रेफर किया जाता  है।

कानपुर देहात:   24 वेंटिलेटर आए थे। ट्रामा सेंटर के कोविड अस्पताल में सिर्फ चार चल रहे हैं। 11 इंस्टाल हैं पर तकनीकी कर्मी नहीं है। शेष पैक रखे हैं।

हरदोई: कुल 34 वेंटिलेटर हैं, इनमें से 20 का इस्तेमाल हो रहा है। तकनीकी स्टाफ की कमी है। इसकी जानकारी शासन को दी जा चुकी है।
उन्नाव: दस वेंटिलेटर सरस्वती मेडिकल कॉलेज को दिए गए हैं। पीएम केयर फंड्स से मिले पांच में चार वेंटिलेटर आइसोलेशन वार्ड में चल रहे हैं।

बुंदेलखंड की स्थिति कमोवेश बेहतर है
बांदा: बांदा जिला अस्पताल में 28 और मेडिकल कॉलेज में 109 वेंटिलेटर हैं। जिला अस्पताल में एनेस्थीसिया के चार डॉक्टर और मेडिकल कॉलेज में छह डॉक्टर ड्राइव करते हैं। सभी क्रियाशील हैं।

झांसी: मेडिकल कॉलेज में 129 हैं। मेडिकल व नर्सिंग स्टॉफ को प्रशिक्षण दिया गया है। वेंटिलेटर की अभी जरूरत है, जिसकी पूर्ति की जा रही है।

हमीरपुर: जिले में 24 वेंटिलेटर है, सभी काम कर रहे हैं।

उरई: मेडिकल कॉलेज के सभी 46 वेंटिलेटर चल रहे हैं, जिला अस्पताल के 18  वेंटीलेटर निष्क्रिय हैं।

ललितपुर: कुल 23 वेंटिलेटर हैं, ऑक्सीजन की कमी से संचालन नहीं हो पाया। 10 वेंटिलेटर झांसी भेजे गए थे, जो वापस आ गए।

चित्रकूट: 28 वेंटिलेटर में 24 वेंटिलेटर क्रियाशील है।

महोबा: जिला अस्पताल में पिछले साल 4 वेंटिलेटर आए थे जो पैक रखे हैं ऑपरेटर व चिकित्सकों की कमी।

उत्तराखंड : सोए हैं 183 वेंटिलेटर 
राज्य के सरकारी अस्पतालों में कुल 183 वेंटिलेटर का उपयोग नहीं हो पा रहा है। ज्यादातर जगहों पर वेंटिलेटर संचालित करने के लिए प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं हैं। साथ ही कुछ जिलों में इन्हें अस्पतालों में लगाने के बजाय अब तक सीएमओ कार्यालयों में रखा गया है। हरिद्वार में स्टाफ न होने से कारण 49 मशीनों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा। श्रीनगर मेडिकल कॉलेम में भी 20 वेंटीलेटर का उपयोग नहीं हो रहा। टिहरी में सीएमओ ऑफिस में भी पांच मशीनें धूल फांक रही हैं। चंपावत में नौ वेंटिलेटर साल भर पहले खरीदे गए। स्टाफ नहीं होने के कारण इनका संचालन नहीं हुआ है। ऊधमसिंह नगर के खटीमा चिकित्सालय को पिछले साल 12 वेंटिलेटर मिले पर यह आज तक संचालित नहीं हो पाए। अल्मोड़ा जिले के अस्पतालों में 47 वेंटिलेटर हैं। विशेषज्ञ डाक्टरों और स्टाफ की कमी के चलते इनका उपयोग नहीं हो रहा है।

झारखंड : 520 मशीनें डिब्बे में पैक 
झारखंड में अभी कुल 1173 वेंटिलेटर हैं। इनमें से कोरोना काल में 500 वेंटिलेटर केन्द्र सरकार से प्राप्त हुए हैं। इनमें 653 वेंटिलेटर कार्यरत हैं जबकि 520 वेंटिलेटर अभी काम नहीं कर रहे हैं। इनमें वे 500 वेंटिलेटर शामिल हैं जिन्हें कोरोना काल में केन्द्र सरकार ने दिये हैं। शेष जो 20 वेंटिलेटर बंद हैं वे सुदूर जिलों में लगे हैं। वहां विशेषज्ञ तकनीशियन के नहीं होने अथवा अन्य तकनीकी गड़बड़ी से इन्हें चालू नहीं किया जा सका है। कोरोना की पहली लहर में भी राज्य को पीएम केयर्स फंड से 574 वेंटिलेटर मिले थे। 

बिहार : 250 से ज्यादा वेंटिलेटर बंद
बिहार में 900 वेंटिलेटर पीएचसी से लेकर मेडिकल कॉलेज अस्पताल तक में लगाए गए हैं। इनमें 250 से अधिक बंद हैं। किसी के लिए बिजली कनेक्शन नहीं है तो कहीं मानव संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। कोरोना काल मे 500 नए वेंटिलेटर की आपूर्ति का निर्णय लिया गया। अभी आपूर्ति होनी शेष है।

Related posts