कुटिल चाल : क्या चीन का जैविक हथियार है कोरोना वायरस? 2015 से कर रहा था शोध – अमर उजाला – Amar Ujala

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, बीजिंग।
Published by: योगेश साहू
Updated Sun, 09 May 2021 09:44 PM IST

सार

कोरोना वायरस को लेकर चीन शुरू से ही शक के घेरे में है। हालांकि इसके पहले तक किसी स्रोत से इस वायरस के जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल की बात सामने नहीं आई थी।

जैविक हथियार (प्रतीकात्मक तस्वीर)
– फोटो : iStock

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विस्तार

ऑस्ट्रेलियाई मीडिया ने एक रिपोर्ट में दावा किया है कि चीन साल 2015 से ही कोरोना वायरस पर शोध कर रहा था। सिर्फ यही नहीं चीन की मंशा इसे जैविक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की थी।

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कोरोना वायरस को लेकर चीन शुरू से ही शक के घेरे में है। हालांकि इसके पहले तक किसी स्रोत से इस वायरस के जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल की बात सामने नहीं आई थी। ‘द वीकेंड ऑस्ट्रेलियन’ ने अपनी रिपोर्ट में चीन को लेकर यह खुलासा किया है। रिपोर्ट में चीन के एक रिसर्च पेपर को आधार बनाया गया है। इसमें कहा गया है कि चीन छह साल पहले से यानी 2015 से सार्स वायरस की मदद से जैविक हथियार बनाने की कोशिश कर रहा था। चीन की सेना 2015 से ही कोविड-19 वायरस को जैविक हथियार की तरह इस्तेमाल करने की साजिश रच रही थी। 

तीसरा विश्व युद्ध जैविक हथियारों से लड़ा जाएगा

शोध पत्र ‘सार्स और जैविक हथियार के रूप में मानव निर्मित अन्य वायरसों की प्रजातियों की अप्राकृतिक उत्पत्ति’  में दावा किया गया है कि तीसरा विश्व युद्ध जैविक हथियारों से लड़ा जाएगा।  इस दस्तावेज में यह भी रस्योद्घाटन किया गया है कि चीनी सैन्य वैज्ञानिक पांच साल पहले ही सार्स कोरोना वायरस का हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के बारे में विचार कर चुके थे। ‘द वीकेंड ऑस्ट्रेलियन’ की यह रिपोर्ट news.com.au. में प्रकाशित की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक चीनी सैन्य वैज्ञानिकों ने इस बात पर भी चर्चा की थी कि सार्स वायरस में हेरफेर करके इसे महामारी के तौर पर कैसे बदला जा सकता है।

लगभग सबूत जैसा है यह शोध पत्र: पीटर जेनिंग्स

ऑस्ट्रेलियन’ स्ट्रेटेजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट (एएसपीआई) के कार्यकारी निदेशक पीटर जेनिंग्स ने न्यूज डॉटकॉम डॉट एयू से चर्चा में कहा कि यह शोध पत्र एक तरह से पक्के सबूत जैसा है। यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से जाहिर करता है कि चीनी वैज्ञानिक कोरोना वायरस के विभिन्न स्टेनों के सैन्य इस्तेमाल के बारे में सोच रहे थे। वे यह भी सोच रहे थे कि इसका कैसे फैलाया जा सकता है। 

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