पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी…. ममता से लेकर मोदी तक कौन दिग्गज ऊपर उठा और कौन आया नीचे? देखें.. – नवभारत टाइम्स

बीजेपी ने बंगाल जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। जवाबी ध्रुवीकरण, जातिगत रणनीति, और विकास का वादा कर वोट बटोरने के प्रयास किए। हालांकि पश्चिम बंगाल में उन्हें इसके नतीजे नहीं मिले। हालांकि पार्टी ने वाम-कांग्रेस की विपक्ष की जगह ले ली। वास्तव में बीजेपी को बीते चुनाव की तुलना में कई गुना सीटें मिलीं। असम में फिर से सरकार बनाने में कामयाबी मिली, पुडुचेरी में सहयोगी पार्टी के साथ सत्ता में रहेगी और तमिलनाडु में भी बीजेपी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी। इस मायने से बीजेपी को इन विधानसभा चुनावों में कुछ जीत मिली तो कुछ हार मिली। इसके अलावा कौन दिग्गज ऊपर उठे और कौन डाउन हुए देखें…

​ममता बनर्जी की अप्रत्याशित जीत



ममता बनर्जी को बंगाल में अप्रत्याशित जीत मिली। अप्रत्याशित इसिलिए क्योंकि माना जा रहा था कि इस बार टीएमसी को हार मिलेगी। बीजेपी की ओर से ममता की सरकार पर लगातार हमले किए गए। सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। खराब शासनकाल और बेईमानी के आरोप लगे लेकिन ममता ने बेहतरीन जीत हासिल करके सबको चौंका दिया और अब वह लगातार तीसरी बार बंगाल में सरकार बनाने जा रही हैं।

​विजयन ने अपने दम पर जीता चुनाव!



वाम दल पश्चिम बंगाल में वह एक भी सीट नहीं जीत सके जो कई दशकों तक उनका गढ़ रहा। लेकिन केरल में लगातार दूसरी बार जीत दर्ज करके पिनराई विजयन ने इतिहास लिख दिया। पी. विजयन केरल में तीसरे ऐसे मुख्यमंत्री हो गए जिनकी अगुवाई में लगातार दो चुनाव जीते गए। विजयन पर बीजेपी ने गोल्ड स्मगलिंग के आरोप लगाए लेकिन विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने वाले एलडीएफ ने कोरोना संकट के दौरान अपने कदमों से जनता का दिल जीता। कहा जा रहा है कि पिनराई विजयन ने अपने दम पर चुनाव जीता जिससे उनका कद और ऊपर उठ गया।

​एमके स्टालिन का जलवा



पहली बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बनने जा रहे डीएमके अध्यक्ष एम के स्टालिन ने रविवार को राज्य के लोगों को उनकी पार्टी को जीत दिलाने को लेकर धन्यवाद दिया और उन्हें आश्वासन दिया कि वह उनके लिए ईमानदारी से काम करेंगे। स्टालिन की पार्टी छठी बार तमिलनाडु पर शासन करेगी। स्टालिन ने करुणानिधी से मिले मंत्र के आधार पर यह चुनाव जीता। वह बीजेपी के खिलाफ प्रचार में आक्रामक नजर आए।

​हिमांता बिस्व सरमा का बढ़ा कद



असम में बीजेपी की जीत का श्रेय हिमांता बिस्व सरमा और सर्बदानंद सोनोवाल को जाता है। दोनों का व्यक्तित्व एक दूसरे से एकदम अलग है लेकिन असम में यह जोड़ी बीजेपी के लिए बेहतरीन साबित हुई। अब चर्चा है कि कांग्रेस से बीजेपी में आए हिमांता ने बीजेपी को नॉर्थ ईस्ट राज्य में स्थापित किया और क्या अब वह राज्य के मुख्यमंत्री होंगे?

​एन रंगासामी



पुडुचेरी में एन रंगासामी तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। उनकी राजनीतिक समझ, उनके साधारण व्यक्तित्व और उनकी छवि को हर कोई पसंद करता है। कभी कांग्रेसी रहे एन रंगासामी का पार्टी के स्तर को गिराने में भी अहम रोल रहा है। वह एआईएडीएमके और बीजेपी के साथ मिलकर पुडुचेरी में सरकार बनाएंगे।

​प्रशांत किशोर



राजनीति रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके को हर कोई जानता है। पीके ने जब ट्वीट किया कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी डबल डिजिट पर सिमट जाएगी तो किसी को यकीन नहीं हुआ। रविवार को जब रिजल्ट आया तो उनकी भविष्यवाणी सही साबित हुए। प्रशांत किशोर के जीते हुए क्लाइंट्स की लिस्ट में डीएमके का नाम भी जुड़ गया।

​राहुल और सोनिया को करारी हार



ऐसे समय में जब कांग्रेस मोदी सरकार पर कोविड महामारी के प्रबंधन को लेकर निशाना साध रही थी, विधानसभा चुनावों में आए रिजल्ट ने बाजी पलट दी। कांग्रेस का राज्यों में जिस तरह का प्रदर्शन रहा, अब राहुल गांधी की क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं। सोनिया गांधी भी कुछ नहीं कर पा रही हैं। ऐसे में अब कांग्रेस के इतर बीजेपी के खिलाफ किसी तीसरे मोर्चे की तलाश शुरू हो गई है।

​सीताराम येचुरी पर हार का ठीकरा



केरल में वाम दल को बहुत ही शानदार जीत मिली है। हालांकि बंगाल में उतनी ही बुरी हार का सामना भी करना पड़ा है। असम भी वाम दल की पहुंच से बाहर है। केरल की जीत का ताज पिनराई विजयन की सिर पर बंध गया है। वहीं पश्चिम बंगाल की हार का ठीकरा सीताराम येचुरी पर फूटा है। उनके ऊपर पश्चिम बंगाल में अब्बास सिद्दीकी और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के फैसले को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

​अजमल और अब्बास सिद्दीकी का क्या होगा?



बीजेपी को असम में शानदार जीत मिली। इस जीत के साथ बदरुद्दीन अजमल का वह दावा बेकार साबित हुआ जिसमें वह खुद को किंग मेगकर के तौर पर पेश कर रहे थे। बंगाल में मौलवी फुरफुरा शरीफ ने कांग्रेस और वाम दल के साथ गठबंधन करके मुस्लिम वोट बैंक शिफ्ट करवाने का दावा किया था, वह भी असफल साबित हुए। मौलवी पर भरोसा करके कांग्रेस और वाम दल को भी कुछ हासिल नहीं हुआ। ऐसे में उनका राजनीतिक सफर शुरू होने से पहले ही दांव पर लग गया।

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