अच्छा! तो ये है राजनीति का ‘ब्रह्मास्त्र’, जो PM मोदी और अमित शाह के करिश्मे को कर देता है धराशायी – Navbharat Times

कोलकाता
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Election Result 2021) में फाइनल रिजल्ट आने में अभी कुछ घंटे का वक्त है, लेकिन अब तक आए रुझानों में साफ हो चुका है कि सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (TMC) लगातार तीसरी बार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौटी है। रुझानों में टीएमसी 200+ सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। वहीं 200 सीटें जीतने का प्लान लेकर केंद्रीय ब्रिगेड के साथ चुनाव में उतरी बीजेपी 80 सीटों के आस-पास संघर्ष करती दिख रही है। ममता बनर्जी और टीएमसी की इस जीत की वजह तलाशे तो कई बातें सामने आ रही हैं, लेकिन 2014 के बाद हुए चुनावों में हार जीत का अध्ययन करें तो एक मुद्दा ऐसा है जिसके सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra modi) और गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) की जोड़ी बेबस दिखती रही है।

‘अस्मिता’ एक ऐसा मुद्दा जिसका नहीं है मोदी-शाह के पास कोई जवाब
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अकेले दम पर बहुमत हासिल होने के बाद राज्यों में जितने भी चुनाव हुए उसमें से ज्यादातर जगहों पर बीजेपी की जीत हुई है। जिन जगहों पर बीजेपी की जीत नहीं हो पाई है उनमें एक मुद्दा ‘अस्मिता’ को लेकर समानता दिख रही है। ‘अस्मिता’ एक ऐसा मुद्दा है जिसे आजमाने वाली पार्टियों का प्रदर्शन अच्छा रहा है। खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का करिश्मा भी अस्मिता के सामने फीका पड़ता रहा है।

पश्चिम बंगाल चुनाव में BJP का ‘बाजीगर’ प्रदर्शन

पश्चिम बंगाल चुनाव में ‘बंगाली अस्मिता’ का जवाब नहीं ढूंढ पाई बीजेपी
पश्चिम बंगाल चुनाव प्रचार पर नजर डालें तो एक बात गौर करने वाली है कि तृणमूल कांग्रेस ने जोर शोर से ताकत लगाकर ‘बंगाली अस्मिता’ के सवाल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह समेत बीजेपी के तमाम नेताओं को घेरा। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मंच से आदरणीय रविंद्र नाथ टैगोर के गलत जन्म स्थान का नाम ले लिया। इस मुद्दे को टीएमसी ने ऐसा लपका कि पूरे चुनाव प्रचार में पार्टी के सारे नेता यही कहते रहे कि जिन लोगों को रविंद्र टैगोर की जन्म स्थान के बारे में मालूम नहीं है वह सोनार बांग्ला का सपना क्या पूरा करेंगे। पूरे चुनाव प्रचार में ममता बनर्जी समेत टीएमसी के तमाम नेता यही कहते रहे कि पीएम मोदी और अमित शाह गुजराती हैं। उनकी पार्टी के लिए प्रचार कर रहे नेता यूपी-बिहार से बुलाए गए हैं। बीजेपी ने शुभेंदु अधिकारी, मुकुल रॉय, मिथुन चक्रवर्ती समेत कुछ नेताओं के चेहरे आगे कर अस्मिता के मुद्दे को दबाने की कोशिश की लेकिन जनता ने उन्हें स्वीकार नहीं किया।

ये 4 M क्या है, जिसके बूते अकेली ममता बनर्जी ने BJP ब्रिगेड को किया चित

जिसने भी ‘अस्मिता’ कार्ड खेला, मिली जीत!
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी की कोशिश रही है कि वह विधानसभा चुनावों को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चहरे पर लड़ती रही है, जिसमें कई जगह उन्हें जीत भी मिली है। इसका एक पहलू ये भी है कि जिन नेताओं ने मोदी-शाही की जोड़ी के सामने राज्य अस्मिता का कार्ड खेला तो इन दोनों नेताओं की मैजिक फीकी होती दिखी।

ममता बनर्जी की जीत से बढ़ेगी राहुल गांधी की टेंशन!

उदाहरण के तौर पर बिहार में साल 2015 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार के डीएनए पर सवाल उठाया तो जवाब में जेडीयू ने पूरे राज्य में कैंपेन चलाकर मैसेज देने की कोशिश की कि गुजरात से आए नेता बिहारी डीएनए पर सवाल उठा रहे हैं। पीएम मोदी ने कितनी भी सफाई देने की कोशिश की लेकिन आखिरकार बीजेपी को चुनाव में हार मिली। नीतीश कुमार बिहारी अस्मिता का मुद्दा उठाकर राज्य की जनता को समझाने में सफल रहे कि गुजरात से आए नेता उनमें खामी निकाल रहे हैं।

बच गईं ममता, बंगाल में नहीं दोहराई तेजस्वी की बिहार वाली गलती

हेमंत सोरेन ने भी खेला आदिवासी अस्मिता का कार्ड
2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव में जीत मिलने के बाद बीजेपी ने गैर आदिवासी चेहरा रघुवर दास को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया। इसके जवाब में 2019 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम के नेता हेमंत सोरेन ने आदिवासी अस्मिता को मुद्दा बनाया। हेमंत हर रैलियों में कहते कि गुजरात से आए नेता झारखंड की संस्कृति को खत्म करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने गैर आदिवासी को सीएम बनाया। इसका हेमंत सोरेन को फायदा हुआ और आज वह सीएम बने हुए हैं।

क्या ममता की जीत से बिहार राजनीति में मचेगी हलचल

इन नेताओं ने भी खेला ‘अस्मिता’ कार्ड
इसके अलावा तेलंगाना में टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव, पंजाब में कैप्टर अमरिंदर सिंह, राजस्थान में अशोक गहलोत जैसे नेताओं ने भी अस्मिता कार्ड खेलकर सत्ता हासिल की है। इसके अलावा हरियाणा में खट्टर को पंजाबी बताकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी अच्छा प्रदर्शन किया था। इसी विश्लेषण में 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम की भी चर्चा होना लाजिमी है। यहां बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के करिश्मे के बूते प्रचंड जीत दर्ज की थी।

ममता बनर्जी की हैट्रिक में वामपंथी और कांग्रेस का भी है बड़ा हाथ ?

लेकिन गौर करेंगे तो समझ पाएंगे कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी पहले भी दो बार कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह की अगुवाई में सरकारें चला चुकी थीं। इस वजह से यहां बीजेपी का संगठन मजबूत रहा है, जिसमें केवल ऊर्जा भरने की जरूरत थी, जिसे काम पीएम मोदी और अमित शाह ने बखूबी निभाया। इसके अलावा पूरे चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी अलग-अलग इलाकों में मुख्यमंत्री के अलग-अलग चहरों का नाम लेती रही। उदाहरण के तौर पर पूर्वांचल में योगी आदित्यनाथ, तो अवध में राजनाथ सिंह, वाराणसी बेल्ट में मनोज सिन्हा, मुजफ्फरनगर में संजीव बालियान, इलाहाबाद में केशव मौर्य आदि नामों की चर्चा होती रही, जिसके चलते समाजवादी पार्टी की ओर से खेला गया ‘अस्मिता’ कार्ड विफल साबित हुआ। इसके अलावा मुलायम सिंह यादव के परिवार में अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल यादव के बीच छिड़ी जंग का भी बीजेपी को खूब फायदा हुआ था।












बीजेपी के हर बढ़ते कदम के साथ ममता बनर्जी फेल क्यों? राजनीतिक विश्लेषक सौरभ मालवीय से समझें

इन उदारणों को देखते हुए कहा जा सकता है कि अस्मिता के मुद्दे पर पीएम मोदी और शाह की जोड़ी अपना करिश्मा नहीं दिखा पाती है। यहां यह भी बता दें कि गुजरात विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस के अग्रेसिव कैंपेन के जवाब में पीएम मोदी ने भी गुजराती अस्मिता का कार्ड खेला था, जिसका बीजेपी को फायदा हुआ था।

Related posts