हौसले की दो कहानियां : हम सब पॉजिटिव हो गए, फिर मैंने डरना छोड़ हिम्मत बांध ली – नवभारत टाइम्स

कोविड जब आ ही गया है, तो उससे शांत होकर लड़ना ही समझदारी



एक एनजीओ में काम करने वालीं राधिका ढिंगरा के लिए 2020 इतना मुश्किल नहीं था, जितना 2021 है। वह कहती हैं, पिछले साल मैंने कोविड-19 को गंभीरता से नहीं लिया। लॉकडाउन जब खुला तो भी बिना डर बाहर निकली। मगर इस साल मार्च शुरू होते ही कई लोगों की कोविड पॉजिटिव होने की खबर तेजी से सामने आने लगी। जब मम्मी को बुखार हुआ, तो डर लगने लगा। एक-एक करके टेस्ट हुए, हम तीनों पॉजिटिव थे। ईस्ट ऑफ कैलाश में रहने वालीं राधिका कहती हैं, मेरी मम्मी बहुत डर गई थीं, तनाव उन्हें घेर रहा था। उनका तनाव देखकर हम भी घबराने लगे।

मुझे और पापा को तीन दिन बुखार था, मगर मेरी मम्मी को बुखार के साथ-साथ बहुत कमजोरी थी। मगर फिर मैं संभली और लगा कि तीनों की मेंटल हेल्थ पर भी ध्यान देना जरूरी है। मैंने दोनों को न्यूज चैनल्स से दूर किया। खुद भी ब्रेक लिया मगर कोविड के हर फैक्ट से अपडेट रही। हमने दवाइयां तो लीं, साथ ही उस वक्त को फ्री होकर जिया और रिजल्ट भी अच्छे आने लगे। मम्मी को मूवी दिखाई, म्यूजिक सुना… कभी हेल्दी खाना बनाया, तो कभी काढ़ा ही बना लिया। यह सब क्रिएटिविटी है और यह आपके माइंड को शांत करती हैं। कुछ मिलाकर अगले 10 दिन अच्छे रहे।

राधिका कहती हैं, तबियत का तनाव से गहरा रिश्ता है। कोविड के दौरान आप टेंशन लेंगे तो सेहत और बिगड़ सकती है। आज हम तीनों कोरोना वायरस से फ्री हो चुके हैं। अगर मैं टेस्ट के रिजल्ट से पहले से ही पॉजिटिव सोच के साथ आगे बढ़ती, तो क्वारंटीन के शुरुआत के दिन भी टेंशन फ्री होते। बस ये सोचिए कोविड जब आ ही गया है, तो उससे शांत होकर लड़ना ही समझदारी है। निगेटिव खबरों के बीच पॉजिटिव एनर्जी भी छिपी है। ऑक्सिजन ढूंढता मरीज जब बीमारी से लड़ रहा है, तो आप घर बैठे क्यों नहीं लड़ सकते! हिम्मत रखिए और दूसरों को भी हिम्मत दीजिए।

​पहले जमीन खिसक गई, फिर पता चला घबराने की जरूरत नहीं



कोरोना की रिपोर्ट पॉजिटिव आते ही लोग एकदम डर जाते हैं। दवाइयां खरीदना शुरू कर देते हैं, ऑक्सिजन और बेड के इंतजाम में लग जाते हैं। कहीं अगर उनकी तबियत बिगड़े, तो सब आसानी से मिल जाए। लेकिन इन सब की वजह से टेंशन बढ़ती है और तबियत ज्यादा खराब होती है। हाल ही कोरोना को हरा चुकीं सेक्टर-14 की पूनम झा ने बताया कि उन्होंने पति अखिलेश और 4 साल के बेटे पुरुरवा के साथ 2 अप्रैल को रैपिड टेस्ट कराया। उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। यह पता चलते ही मानो उनके पैरों के नीचे से कुछ पल के लिए जमीन खिसक गई। पूनम डायबिटिक हैं। उन्हें महसूस हुआ कि उनके पैर कांप रहे हैं।

तुरंत उन्होंने डायबिटीज चेक किया। डायबिटीज कंट्रोल में था। गहरी सांसे लेकर इसे कंट्रोल करने की कोशिश की। अगले कुछ पल में उन्हें कुछ राहत महसूस हुई। इसके बाद वह बेटे के लिए जरूरी दवाइयां खरीदने में जुट गईं। उन्होंने पढ़ा था कि कोरोना से बच्चों के पेट खराब, उल्टी जैसी कई समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए उन्होंने ओआरएस के पैकेट्स और जरूरी दवाओं को स्टोर कर लिया, लेकिन जब वह आइसोलेशन में गईं, तो उन्हें समझ में आया कि डरने की जरूरत नहीं है। सभी तरह की जरूरतें ऑनलाइन पूरी हो रही थीं। पड़ोसी भी मदद कर रहे थे। मुश्किल से दो या ढाई पैकेट ओआरएस इस्तेमाल हुआ। अब वे सब ठीक हो गए हैं और कहती हैं कि इस समय डरने के बजाय खुद को सकारात्मक रखना जरूरी है।

क्या सोचता है कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों का परिवार?












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