भास्कर एक्सप्लेनर: कोवैक्सिन के 78% एफिकेसी के क्या मायने हैं? किस हद तक इन्फेक्शन रोकने में मददगार है स्वद… – Dainik Bhaskar

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6 घंटे पहलेलेखक: आबिद खान

भारत बायोटेक और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की कोशिशों से बनी पहली स्वदेशी कोरोना वैक्सीन कोवैक्सिन दुनिया की सबसे सफल वैक्सीन में से एक के तौर पर सामने आई है। कंपनी ने फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स के दूसरे अंतरिम नतीजों के आधार पर दावा किया है कि वैक्सीन की क्लिनिकल एफिकेसी 78% है। यानी यह कोरोना इन्फेक्शन को रोकने में 78% इफेक्टिव है। अच्छी बात यह है कि जिन्हें ट्रायल्स में यह वैक्सीन लगाई गई थी, उनमें से किसी में भी गंभीर लक्षण नहीं दिखे। यानी गंभीर लक्षणों को रोकने के मामले में इसकी इफेक्टिवनेस 100% है।

कोवैक्सिन बनाने में सरकारी मदद करने वाले ICMR का दावा है कि यह स्वदेशी वैक्सीन सभी तरह के वैरिएंट्स पर कारगर है। यानी न केवल UK, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट्स पर बल्कि भारत के 10 से अधिक राज्यों में सामने आए डबल म्यूटेंट वैरिएंट पर भी यह असरदार साबित हुई है। यह एक ऐसी बात है, जिसके लिए अब भी दुनिया की कई वैक्सीन कंपनियां संघर्ष कर रही हैं।

क्या खास है वैक्सीन के इन नतीजों में?

  • कोवैक्सिन को नए साल की शुरुआत में केंद्र सरकार ने कोवीशील्ड के साथ इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी थी। उस समय इसके क्लिनिकल ट्रायल्स के नतीजे सामने नहीं आए थे, तब इसे ट्रायल्स मोड पर ही मंजूरी दी थी। यानी जिन्हें शुरुआत में डोज दिए गए, उनसे लिखित सहमति ली गई। उनकी मॉनिटरिंग भी की गई।
  • उस समय इस फैसले के लिए सरकार की खूब आलोचना भी हुई थी। राजनेताओं के साथ-साथ कुछ वैज्ञानिक और एक्सपर्ट भी सरकार के फैसले के खिलाफ खड़े हुए थे। पर जब पिछले महीने कोवैक्सिन के फेज-3 के पहले अंतरिम नतीजे आए तो उन्होंने उम्मीद से बढ़कर नतीजे दिए।
  • कोवीशील्ड की एफिकेसी करीब 70% है, जबकि कोवैक्सिन 81% इफेक्टिव साबित हुई थी। दूसरे अंतरिम नतीजों में इस आंकड़े में थोड़ा करेक्शन करते हुए इसे 78% इफेक्टिव बताया गया है। कोवैक्सिन के फेज-3 ट्रायल्स में 25,800 लोगों पर स्टडी की गई। इनमें 18 से 98 साल के वॉलंटियर शामिल थे।

इस इफेक्टिवनेस के क्या मायने हैं?

  • कोई भी वैक्सीन लोगों के लिए अप्रूवल पाने तक कई चरणों से गुजरती हैं। शुरुआती चरण लैबोरेटरी के होते हैं। इसके बाद क्लिनिकल ट्रायल्स होते हैं। पहले फेज में दवा या वैक्सीन की जांच कुछ सौ लोगों में होती है। फिर फेज-2 ट्रायल्स थोड़े ज्यादा लोगों में होते हैं। इनमें यह देखा जाता है कि वैक्सीन इस्तेमाल के लिए सुरक्षित है या नहीं। इससे इम्यून रिस्पॉन्स शरीर में आ रहा है या नहीं।
  • शुरुआती दो फेज के बाद बड़े पैमाने पर ट्रायल्स होते हैं। कोवैक्सिन के मामले में करीब 26 हजार लोगों को वैक्सीन लगाई गई। इन्हें दो ग्रुप में बांटा गया। आधे लोगों को प्लेसिबो यानी सलाइन वॉटर दिया गया और आधे लोगों को वास्तविक वैक्सीन, ऐसा करने के बाद सबकी निगरानी हुई। यह देखा गया कि किस ग्रुप से कितने लोगों को वायरस इन्फेक्शन होता है।
  • दरअसल, तीसरे फेज के ट्रायल्स में वैक्सीन की इफेक्टिवनेस देखी जाती है, जिसे मेडिकल भाषा में एफिकेसी कहा जाता है। इसका मतलब है कि वैक्सीन कितने प्रतिशत लोगों को वायरस इन्फेक्शन से बचाकर रखेगी।
  • कोवैक्सिन का दूसरा अंतरिम फेज-3 नतीजे दोनों ही ग्रुप्स में शामिल 127 केसेज दर्ज होने के बाद किया गया। इसके आधार पर वैक्सीन और प्लेसिबो ग्रुप्स के अंतर को निकाला गया और बताया गया कि यह वैक्सीन कोरोना वायरस रोकने में 78% इफेक्टिव रही। अच्छी बात यह है कि वैक्सीन वाले ग्रुप में भी किसी भी पॉजिटिव मरीज में गंभीर लक्षण नहीं देखे गए।
  • अंतिम एनालिसिस से सेफ्टी और एफिकेसी के आंकड़े जून में मिलेंगे। फाइनल रिपोर्ट को अन्य एजेंसियों और पब्लिकेशंस को रिव्यू के लिए सौंपा जाएगा। इस नतीजे के बाद जिन लोगों को प्लेसिबो लगाया गया था, उन्हें भी वैक्सीन लगाने की इजाजत मिल जाएगी।

क्या यह वैक्सीन बच्चों के लिए भी उपलब्ध है?

  • अभी नहीं। फेज-3 ट्रायल्स में 18 से 98 वर्ष के वॉलंटियर्स को शामिल किया गया था। खास बात यह है कि कंपनी ने फेज-2 ट्रायल्स के बाद दावा किया था कि यह वैक्सीन 12 वर्ष से अधिक उम्र वालों पर कारगर है। पर फेज-3 एफिकेसी ट्रायल्स में बच्चों को वॉलंटियर नहीं बनाया गया।
  • इस वजह से बच्चों को वैक्सीन लगाने से पहले उन पर ट्रायल्स करना होगा। फाइजर ने अमेरिका में इस तरह के ट्रायल्स शुरू कर दिए हैं। अलग-अलग आयु समूह के बच्चों में अलग ट्रायल्स होंगे। कोवैक्सिन को लेकर भारत बायोटेक ने कहा है कि जल्द ही बच्चों पर ट्रायल्स शुरू होंगे। जब यह वैक्सीन इन ट्रायल्स में पास हो जाएगी, तभी उसे बच्चों को लगाने की अनुमति दी जाएगी।

क्या कोवैक्सिन सभी वैरिएंट्स पर भी कारगर साबित हुई है?

  • हां। कोवैक्सिन की बात करें तो यह परंपरागत इनएक्टिवेटेड प्लेटफॉर्म पर बनी है। इसमें मरे हुए वायरस का इस्तेमाल किया गया है। इस वायरस को कमजोर कर इंजेक्ट किया जाता है, जिससे शरीर उसके खिलाफ एंटीबॉडी बनाने लगता है। जो भी म्यूटेशन अब तक हुए हैं, वह वायरस की भीतरी संरचना में हुए हैं। इससे वायरस का आकार नहीं बदला है। इस वजह से कोवैक्सिन अलग-अलग वैरिएंट्स पर कारगर साबित हुई है।
  • अन्य वैक्सीन की बात करें तो सभी दुनियाभर में अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर बनी हैं। अमेरिका में इस्तेमाल हो रही फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन मैसेंजर RNA या mRNA प्लेटफॉर्म पर बनी है। इसमें वैक्सीन लगने पर शरीर को मैसेज मिलता है कि वायरस का हमला हो गया है, उससे लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनानी है।
  • कोवीशील्ड और रूसी वैक्सीन स्पुतनिक V वायरल वेक्टर प्लेटफॉर्म पर बनी है। इसमें किसी और वायरस को लेकर उसमें आवश्यक बदलाव किए और उसे नए कोरोना वायरस (SARS-CoV-2) के स्पाइक प्रोटीन जैसा बनाया और शरीर में इंजेक्ट कर दिया। इससे शरीर उस स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ एंटीबॉडी बनाता है। म्यूटेशन की वजह से वैरिएंट्स में स्पाइक प्रोटीन का आकार बदल सकता है। इस वजह से ये वैक्सीन कुछ वैरिएंट्स पर असरदार साबित नहीं हुई हैं।
  • ICMR के डायरेक्टर डॉ. बलराम भार्गव का कहना है कि कोवैक्सिन UK, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील के साथ ही भारत में मिले डबल म्यूटेंट वैरिएंट पर भी कारगर रही है। पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरलॉजी (NIV) ने वैरिएंट्स अलग किए और इन पर वैक्सीन की जांच की गई। हमारे वैज्ञानिकों की निरंतर मेहनत का नतीजा है कि हमें एक इंटरनेशनल वैक्सीन मिल गई है।
  • वैरिएंट्स पर असर को लेकर सभी वैक्सीन निर्माताओं के अलग-अलग दावे हैं। जॉनसन एंड जॉनसन ने दावा किया है कि उसकी वैक्सीन दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट के खिलाफ 85% कारगर है। फाइजर ने अपनी वैक्सीन के 100% इफेक्टिव होने का दावा किया है। नोवावैक्स का दावा है कि वैरिएंट्स पर उसकी वैक्सीन 50% ही इफेक्टिव है।

कोवैक्सिन के अब तक कितने डोज दिए गए हैं?

  • कोवैक्सिन के 1.13 करोड़ से अधिक डोज भारत में दिए जा चुके हैं। इनमें करीब 96 लाख पहले डोज और 17 लाख दूसरे डोज शामिल हैं। पहला डोज लेने के बाद 0.04% लोगों में और दूसरा डोज लेने के बाद लगभग इतने ही लोगों में इन्फेक्शन देखा गया है।
  • भारत बायोटेक ने कहा है कि कंपनी प्रतिवर्ष 70 करोड़ वैक्सीन डोज का उत्पादन करने की तैयारी कर रही है। कंपनी ने अप्रैल में 2 करोड़ डोज का प्रोडक्शन किया था। इससे वैक्सीनेशन को रफ्तार मिलेगी। भारत बायोटेक की वैक्सीन में इस समय 60 से अधिक देशों ने रुचि दिखाई है।

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