एक अफसर ने गिराया कागज का टुकड़ा, दूसरे ने टोका तो उठाया, इसी से निकला था चारा घोटाला, जानिए कहानी – Jansatta

चारा घोटाले में पहली एफआईआर जनवरी 1996 में हुई थी, लालू प्रसाद यादव अब तक इस मामले में छह बार जेल भेजे जा चुके हैं।

लालू प्रसाद यादव 2017 में चारा घोटाला से जुड़े मामले में सजा पाने के बाद से ही रांची की जेल में बंद कर दिए गए थे। (एक्सप्रेस आर्काइव)

चारा घोटाले के मामलों में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को जमानत मिल गई है। हालांकि, इसके बावजूद उनकी राहत को स्थायी नहीं माना जा रहा। सीबीआई जल्द ही इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है। तकरीबन 25 साल पहले दर्ज हुए इस मामले के खुलासे और इसमें लालू का नाम जुड़ने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। इस मामले में उन्हें 1997 से लेकर 2017 तक छह बार जेल भी जाना पड़ा है। ऐसे में जमानत मिलने के बाद भी उन पर फिर कैद में जाने की तलवार लटक रही है।

क्या था चारा घोटाला?: चारा घोटाले का मामला जानवरों के लिए भेजे जाने वाले चारे से ही जुड़ा था। दरअसल, पशुओं के चारे के लिए सचिवालय से पहले बजट के तहत ही आवंटन आदेश बनता था। यह जारी भी हो जाता था। लेकिन आदेश फाइल से बाहर नहीं आ पाता था। इसके बाद आवंटन करने वाले अफसर उसी जगह एक और आदेश निकालते और इसमें हजारों-लाखों की जगह करोड़ों रुपए की राशि भरकर पैसा निकाल लेते। इसमें हस्ताक्षर भी पिछला आदेश जारी करने वाले अफसर का ही होता था। इसके बाद पुराने आवंटन आदेश के नंबर को नए आवंटन पर चढ़ा दिया जाता था। ट्रेजरी से घालमेल के बाद अफसर इस बिल को पास भी करवा लेते थे। इस तरह लंबे समय तक हजारों करोड़ का घोटाला हुआ।

कैसे हुआ इसका खुलासा?: कई सालों तक इस मामले में सब ठीक चलता रहा। हालांकि, 1996 में बिहार सरकार के अफसर अमित खरे ने उस समय के वित्त आयुक्त वीएस दुबे के कहने पर एफआईआर दर्ज कराई। बताया जाता है कि पटना मुख्य सचिवालय में वित्त आयुक्त सरकारी चिट्ठियां निपटा रहे थे। तभी कमरे में एक दक्षिण बारतीय आए थे। उनके साथ प्रिंसिपल ऑडिटर जनरल मौजूद थे। साथ में दो अफसर भी मौजूद थे। इस दौरान वित्त आयुक्त ने एक कागज पर साइन कर नीचे गिरा दिया। इसी दौरान प्रिंसिपल एजी ने उस कागज को नीचे गिरते देख लिया और पूछा कि जिसे वित्त सचिव ने नीचे गिराया है, उसे पढ़कर देखा? आमतौर पर तो यह सवाल सामान्य था, लेकिन इस कागज को पढ़कर वित्त सचिव आश्चर्यचकित हो गए। बताया जाता है कि इसी कागज को खंगालने के बाद चारा घोटाले का खुलासा हुआ था।

दरअसल, इसके बाद वित्त आयुक्त ने बिहार के सभी डीएम से जिले के सरकारी खजाने से निकाले जा रहे पैसों का ब्योरा मांगा था। चाइबासा के सरकारी खजाने की जांच के दौरान उन्हें पता चला कि जिला पशुपालन विभाग ने एक बार 10 करोड़ रुपये और एक बार 9 करोड़ रुपये निकाले हैं और उसकी डिटेल नहीं दी है। जब उन्होंने विभाग से डिटेल मांगी, तो भी उन्हें कोई डिटेल नहीं दी गई।

इसके बाद उन्होंने जांच शुरू की तो सामने आया कि चारा खरीद की पेमेंट के लिए 10 लाख रुपए के कई ऐसे फर्जी बिल बनाए गए, जिनमें 10 लाख रुपए से कम भुगतान दिखाया गया। दरअसल, 10 लाख रुपये से ज्यादा के भुगतान पर कई जरूरी दस्तावेज दिखाने होते थे, इसलिए बिल 10 लाख रुपये से कम के थे। अधिकतर भुगतान उन कंपनियों के नाम पर किए गए थे, जो थी ही नहीं। इसके बाद कई जिलों से फर्जी बिलों के जरिए करोड़ो रुपए की राशि निकाले जाने का खुलासा होने लगा। इसके बाद मार्च 1996 में ही इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई।

घोटाले में सामने आया कि यह सब कागजों पर ही दस्तावेजों में पता चला कि जिन नंबर वाली गाड़ियों में पशुओं की ढुलाई हुई, वे कोई चौपहिया या बड़े वाहन नहीं थे, बल्कि दोपहिया वाहन और स्कूटर थे। बताया जाता है कि 1991-92 में पशुपालन विभाग का बजट 59 करोड़ 10 लाख रुपए का था, लेकिन घोटलेबाजों ने इस दौरान 129 करोड़ 82 लाख रुपए निकाल लिए।

पटना हाईकोर्ट ने दिया सीबीआई जांच का आदेश: इस मामले का खुलासा होने के बाद पटना हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दे दिया था। उस वक्त लालू प्रसाद यादव ही मुख्यमंत्री थे। पहले तो बिहार सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर सीबीआई जांच की खिलाफत की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की मॉनिटरिंग में जांच करने के लिए कहा।

इस मामले में जांच हुई तो खुद लालू प्रसाद नामजद आरोपी हुए। सीबीआई ने इस बड़े घोटाले में 60 ट्रक से ज्यादा दस्तावेज जुटाए। करीब 11 करोड़ पन्नों की फोटो कॉपी हुई। कुल 64 मामले दर्ज हुए और 979 अभियुक्त बने। एजेंसी ने 8 हजार से ज्यादा गवाह बनाए। 400 से ज्यादा सीबीआई अफसरों ने मामले की जांच की और 50 से अधिक जज इस मामले की सुनवाई कर चुके हैं। यह सब एक रिकॉर्ड है। पटना हाईकोर्ट ने 7 मार्च 1996 सीबीआई को जांच सौंपते वक्त टिप्पणी की थी-’रोम जलता रहा और नीरो बंसी बजाता रहा, वही स्थिति बिहार की रही।’

लालू की जमानत रोकने के लिए सीबीआई ने रखी दलील, कपिल सिब्बल ने किया चित्त: लालू प्रसाद यादव की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि उन्होंने अपनी आधी सजा काट ली है। साथ ही उनकी उम्र काफी हो गई है और उन्हें गंभीर बिमारियों ने भी ग्रसित कर लिया है इसलिए उन्हें जमानत दी जाए। हालांकि, इस पर सीबीआई के वकील ने दलील दी कि चारा घोटाले से जुड़े मामलों में लालू यादव को 14 साल की सजा सुनाई गई है। सीबीआई के स्पेशल कोर्ट ने दो अलग धाराओं में लालू को 7-7 साल की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने कहा था कि एक सजा पूरी होते ही दूसरी सजा शुरू हो जाएगी।

हालांकि, लालू के वकील कपिल सिब्बल ने लगभग तुरंत ही इस दलील पर पलटवार करते हुए रांची हाईकोर्ट से कहा कि लालू प्रसाद ने इस मामले में छह अप्रैल को सजा की आधी अवधि पूरी कर ली है, क्योंकि कोर्ट ने 19 फरवरी को माना था कि लालू प्रसाद की आधी सजा पूरी करने में एक माह 17 दिन कम है। वहीं सीबीआई का यह कहना कि लालू प्रसाद को 14 साल की सजा मिली है। यह मुद्दा जमानत पर सुनवाई के दौरान नहीं, बल्कि अपील पर सुनवाई के दौरान उठाया जाना चाहिए। अदालत किसी भी समय जमानत प्रदान कर सकती है, जैसा कि आरसी-20 में सुप्रीम कोर्ट ने लालू को जमानत दी है, लेकिन चारा घोटाला से संबंधित सभी मामलों में हाईकोर्ट ने आधी सजा पर बेल देने का मानक तय किया है। इसी आधार पर लालू ने भी जमानत देने की गुहार लगाई है। इसलिए आरजेडी सुप्रीमो को जमानत मिलनी चाहिए। कपिल सिब्बल की दलील को मानते हुए जज साहब ने लालू यादव की जमानत को मंजूरी दे दी।

Related posts