भास्कर इंटरव्यू: स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा- कुंभ व्यावहारिक तौर पर खत्म, प्रतीकात्मक धार्मिक आयोजन होते … – Dainik Bhaskar

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नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: संध्या द्विवेदी

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कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि से फोन पर बात कर कुंभ मेले को प्रतीकात्मक तौर पर ही जारी रखने की अपील की। प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। स्वामी अवधेशानंद गिरी ने इस बारे में दैनिक भास्कर से बातचीत की। उन्होंने कहा कि वे खुद तीसरे शाही स्नान में व्यक्तिगत तौर पर शामिल नहीं होंगे। वे इसमें अपने प्रतिनिधि भेजेंगे।

अवधेशानंद गिरि ने यह भी कहा कि कुंभ व्यवहारिक तौर पर खत्म हो गया है, लेकिन इसके तय समय तक प्रतीकात्मक तौर पर धार्मिक आयोजन होते रहेंगे। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड से ज्यादा मामले कई दूसरे राज्यों में आ रहे हैं। कुंभ को कोरोना के प्रसार के लिए दोषी मानना उचित नहीं है। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-

सवाल: आपकी प्रधानमंत्री जी से बात हुई, तो क्या कुंभ अब प्रतीकात्मक कर दिया जाएगा?
जवाब: एक बात सबसे पहले मैं स्पष्ट कर दूं कि कुंभ खत्म नहीं किया जा रहा। वह अपने तय समय में ही खत्म होगा। मीडिया में कुछ भ्रामक खबरें चल रही हैं कि कुंभ समाप्त किया जा रहा है। प्रधानमंत्री जी ने सभी संतों का हाल पूछने के बाद कुंभ को प्रतीकात्मक रूप से चालू रखने की प्रार्थना की है। मैंने भी सभी अखाड़ों से और आम जनता से आह्वान किया है कि वे लोग कुंभ को प्रतीकात्मक रूप से ही जारी रखें।

सवाल: क्या आपकी कुछ अखाड़ों से बातचीत शुरू हुई है?
जवाब: देखिए, हमारी आपस में बात होती रहती है। वैसे भी दो बड़े शाही स्नान हो चुके हैं। अंतिम शाही स्नान बैरागी अखाड़ों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। इसलिए मैंने अपील की है कि बैरागी अखाड़ों के साधु स्नान करें। वे भी प्रतीकात्मक तौर पर कुछ प्रतिनिधि भेज कर यह शाही स्नान संपन्न करें तो अच्छा होगा, लेकिन बाकी सारे अखाड़ों से मैंने प्रार्थना की है कि वे सख्ती के साथ अपने प्रतिनिधि को ही स्नान के लिए भेजें।

सवाल: कब तक सभी अखाड़े कुंभ को प्रतीकात्मक तौर पर जारी रखने की घोषणा कर सकते हैं?
जवाब: देखिए, कुंभ मेले से ज्यादातर साधु सन्यासी जा चुके हैं। कुछ ही बचे हैं। इसलिए वैसे भी अब कुंभ में साधु-सन्यासियों की वजह से भीड़ नहीं है। मैंने आम लोगों से भी अपील की है कि गर्भवती महिलाएं, अस्वस्थ और बुजुर्ग कुंभ से दूरी बनाएं। मैंने ऊपर भी कहा है कि कुंभ के पहले के दो स्नान ही साधु-संतों के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। यह अंतिम शाही स्नान बैरागी अखाड़ों के लिए महत्वपूर्ण होता है।

शाही स्नान के दौरान साधु-संतों समेत लाखों लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई। इसी दौरान दो हजार से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हो गए थे।

शाही स्नान के दौरान साधु-संतों समेत लाखों लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई। इसी दौरान दो हजार से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हो गए थे।

सवाल: आप कह रहे हैं कि ज्यादातर साधु-सन्यासी मेले से जा चुके हैं। आपको नहीं लगता कि प्रधानमंत्री जी को यह अपील पहले ही करनी चाहिए थी?
जवाब: दूसरे शाही स्नान के बाद से ही कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ा, आंकड़े गवाह हैं। पहली बात उत्तराखंड से ज्यादा मामले महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, छत्तीसगढ़ और दूसरे कई राज्यों में आ रहे हैं। इसलिए यह कहना कि कुंभ की वजह से कोरोना हुआ, गलत है। कोरोना का संक्रमण पूरे देश में है। विनयपूर्वक कह रहा हूं कि उत्तराखंड में अभी स्थिति नियंत्रण में है, जबकि कई राज्यों में स्थिति बेहद खराब है। यहां प्रशासन और खुद साधु-संतों ने सभी सुरक्षात्मक उपाए अपनाए। प्रधानमंत्री जी साधु-सन्यासियों का आदर करते हैं। वे धार्मिक भावनाओं का भी आदर करते हैं, लेकिन जब उन्हें लगा कि स्थिति ज्यादा खराब है तो उन्होंने बात की।

सवाल: कई अखाड़ों ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि वे अभी कुंभ खत्म नहीं होने देंगे, वे आखिरी शाही स्नान भी धूमधाम से करेंगे?
जवाब: देखिए मैं सबका सम्मान करता हूं। धर्म महत्वपूर्ण है, आस्था भी महत्वपूर्ण है। लेकिन उससे भी ज्यादा मानव जाति की रक्षा महत्वपूर्ण है। मैं हाथ जोड़कर सबसे अपील कर रहा हूं। मुझे लगता है कि सभी साधु-संत इस बात को समझेंगे।

सवाल: क्या आप 27 अप्रैल को होने वाले अंतिम शाही स्नान में जाएंगे?
जवाब: नहीं, हमारे कुछ प्रतिनिधि जाएंगे। वे स्नान करेंगे। मैं व्यक्तिगत तौर पर स्नान के लिए नहीं जाऊंगा।

सवाल: कुछ साधु-संतों का आरोप है कि चुनावी रैलियां चल रही हैं, तो फिर कुंभ पर लगाम क्यों? आपका चुनावी रैलियों को लेकर क्या कहना है?
जवाब: पूरा देश महामारी की गिरफ्त में है। एक साल से ज्यादा समय हो गया है। पूर्ण लॉकडाउन भी हमारे यहां सबसे पहले और देर तक लगाया गया। चुनावी रैलियां भी सीमित की जा सकती थीं। उसके बारे राजनीतिक दल कुछ सोच ही रहे होंगे। इस मामले में मेरा बोलना उचित नहीं।

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