लालू प्रसाद यादव. (फाइल फोटो)
झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) से आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav) को जमानत मिलने के बाद आरजेडी समेत सभी विपक्षी दल उत्साहित हैं.
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हालांकि उनके जेल से बाहर आने के बाद उनके परिवार को नैतिक बल हासिल होगा. सत्ता पक्ष के खिलाफ लगातार आक्रामक तेजस्वी और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं के हमलों को नई धार मिलेगी. पिछले तीन दशक से लालू प्रसाद बिहार की राजनीति के धुरी रहें, लेकिन तब लालू प्रसाद की सेहत उनका साथ निभा रही थी.
आसान नहीं था सफर
साल 1990 में जब लालू प्रसाद यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने, तब किसी को यह अहसास नहीं था कि वे बिहार के धुरंधरों की बीच सबसे बड़े करिश्माई नेता बनकर उभरेंगे और लंबे समय तक बिहार और देश की राजनीति को प्रभावित करेंगे. लालू ने अपनी असाधारण राजनीतिक सूझबूझ के साथ बड़े-बड़े धुरंधरों को धूल चटा दी. धीरे-धीरे उत्तर भारत की राजनीति के चमकदार नेता बनकर उभरे. 1990 के बाद किसी भी चुनाव को उठाकर देख लिजिए,बिहार की राजनीति उनके इर्द-गिर्द हीं घूम रही है.…तो केन्द्र में रहा दबदबा
लालू को 2005 में नीतीश के हाथों बिहार की सत्ता गंवानी पड़ी तो लालू केंद्र की यूपीए वन में रेल मंत्री बन गए. ये बात किसी से छुपी नहीं कि लालू का यूपीए वन पर किस तरह का दबदबा रहा. लालू ने दिल्ली को अपना राजनीतिक ठिकाना बनाया. रेल मंत्री के रूप में खूब सुर्खियां बटोरी. घाटे में चल रहे रेलवे को मुनाफे में ला दिया।देश-विदेश के शिक्षण संस्थानों में शोध होने लगे.
2015 में बिहार में रोका नरेंद्र मोदी का रथ
देश में नरेंद्र मोदी के उभार के बाद राजनीतिक हाशिए पर पड़े लालू ने समाजवादी धड़ों को साथ लाने की पहल शुरू कर दी, लेकिन सपा के कदम पीछे खींचते हीं मामला खटाई में पड़ गया. लेकिन लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार,शरद यादव और कांग्रेस को लेकर 2015 के विधान सभा चुनाव से पहले महागठबंधन की नींव डाल दी. एनडीए मोदी लहर पर सवार बिहार में विरोधी महागठबंधन को कड़ी चुनौती दे रही थी. तभी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण संबंधी बयान ने मुकाबले को एकतरफा कर दिया. सामाजिक समीकरणों के माहिर लालू ने पूरे चुनावी कैंपेन की हवा महागठबंधन की तरफ मोड़ दी और देश में मोदी लहर के बावजूद एनडीए को बिहार में करारी शिकस्त झेलनी पड़ी.