Corona Real Stories: ये कहानियां डराएंगी नहीं, कोरोना से लड़ने की हिम्मत देगी – नवभारत टाइम्स

कोरोना वॉर्ड में रोज ड्यूटी कर वायरस से डरना छोड़ा, लड़ना सीखा

कोरोना की बीमारी पहली बार सुनी थी और पहली बार ही पीपीई किट पहनी, मन में डर था। लेकिन जब पिछले साल पहली बार पीपीई किट पहनी तो एक जवाबदेही व जिम्मेदारी का एहसास हुआ। पता नहीं डर गायब हो गया। अंदर से एक मजबूत एहसास हुआ कि जो होगा देखा जाएगा। मरीजों की सेवा करनी है अब। इलाज में पूरा सहयोग करना है। तब से लेकर अब तक कोरोना ड्यूटी कर रहा हूं। यह कहना है नर्सिंग ऑफिसर बलराम शर्मा का, जो इन दिनों एलएनजेपी अस्पताल में कोविड ड्यूटी में जुटे हुए हैं।

मूलरूप से राजस्थान के भीलवाढ़ा के रहने वाले बलराम शर्मा पिछले 12 साल से नर्सिंग ऑफिसर के रूप में काम कर रहे हैं। बलराम ने कहा कि पिछले साल जब अस्पताल में कोरोना का इलाज शुरू हुआ तो उनके परिवार के लोग यह सुनकर डर गए। उन्होंने कहा कि मेरे माता पिता काफी परेशान हो गए। जिस प्रकार अस्पताल में माहौल था, उससे मेरे मन में भी संशय था। सभी सहमे हुए थे। लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया, डर भी गायब हो गया और झिझक भी दूर हो गई। पिछले साल गर्मी में पीपीई किट में सांस लेना दूभर हो रहा था, इस बार भी ऐसा ही है। लेकिन, पिछले साल का अनुभव इस बार काम आ रहा है। पीपीई किट पहन कर कैसे काम करना है, कैसे अपने आपको डिहाइड्रेशन से बचाना है। यह सब अब हम सीख चुके हैं, इसलिए इस बार इतनी दिक्कत नहीं हो रही है।

उन्होंने कहा कि एक समय ऐसा आया था कि जब अस्पताल में गिनती के मरीज थे, तब हमें लगने लगा था कि अब कोरोना पुरानी बात हो गई, अब यह चला गया। लेकिन, जिस तरह से यह फैल रहा है और जितनी तेजी से फैल रहा है कि पिछले साल से भी ज्यादा है। मेरे कई साथी पॉजिटिव हो गए हैं। इस बार हमें भी डर लग रहा है है। लेकिन, मेरे लिए राहत की बात यह है कि मेरा पूरा परिवार राजस्थान में रहता है, इसलिए मेरे से परिवार को संक्रमण का डर नहीं है। मैं खुद को फिट रखने के लिए योगा व प्रणायाम करता हूं, इम्युनिटी बढ़ाने के लिए काढ़ा पीता हूं।

बलराम ने कहा कि कोरोना की यह लहर बहुत ही खतरनाक है, लेकिन लोग समझ नहीं रहे हैं। मैं जब लोगों को बाहर घूमते देखता हूं तो लगता है कि इन्हें अस्पताल दिखाया जाए, कैसे लोग बीमार हैं। एक एक जान बचाने के लिए कितनी मेहनत करते हैं डॉक्टर। और ये लोग बिना काम के मेट्रो, बस, पार्क, मॉल में घूम रहे हैं। मास्क लगा नहीं रहे हैं। इन्हें जान की कीमत का एहसास नहीं है। ऐसे लोगों को हॉस्पिटल दिखाओ, तब पता चलेगा कि किस प्रेशर में डॉक्टर, नर्स और बाकी स्टाफ इनके लिए दिन रात काम कर रहे हैं। अगर लोग समझ जाएं तो सरकार जितना प्रयास कर रही है, उससे बहुत जल्द यह पीक कंट्रोल हो सकता है।

ICU में रहा, हिम्मत नहीं हारी, डॉक्टरों की बात मानी और जीत गए



कोविड इन दिनों हैरान-परेशान कर रहा है। बीमारी को हराकर अस्पताल से एक दिन पहले ही लौटे हैं- ग्रेटर कैलाश एनक्लेव-1 के संजय सूद। वह फ्लैट ऑनर्स एंड रेजिडेंट असोसिएशन के सेकेट्री भी हैं। उन्होंने बताया कि इस पूरे इलाज के दौरान एक बात सीखी है, खुद पर विश्वास होना और पॉजिटिव रहना सबसे जरूरी है। इस दौरान कुछ पल ऐसे भी आए, जब थोड़ा डर लगा। लेकिन वह हताश नहीं हुए। इसी हिम्मत और उनके दोस्तों ने कोविड से उबरने में उनकी मदद की। उन्होंने कहा कि डर और घबराहट पर काबू पाना कोविड के दौरान सबसे ज्यादा जरूरी है।

65 साल के संजय सूद ने बताया कि होली से पहले ही राजधानी में कोरोना संक्रमण बढ़ रहा था। वह पूरी सावधानी बरत रहे थे। 19 मार्च को गले में खराश हुई। राहत नहीं मिलने पर दवाइयां लीं। पांच दिन का कोर्स था। इस दौरान हल्का सा बुखार आया, लेकिन दवाइयों से ठीक हो गया। संजय सूद ने बताया, मैंने 24 मार्च को कोविड टेस्ट करवाया। रिपोर्ट निगेटिव आई। 30 मार्च को पत्नी अमिता सूद (56) की तबीयत भी खराब होने लगी। उन्हें भी दवाइयां दिलवाईं। एक अप्रैल को दोनों ने कोविड का दोबारा टेस्ट करवाया। इस बार पत्नी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई, लेकिन मेरी निगेटिव ही आई। पत्नी का इलाज शुरू हो गया। 30 मार्च से मुझे सांस लेने में कुछ परेशानियां हो रही थीं। मुझे शक होने लगा था कि मुझे शायद कोविड ही हुआ है। दो अप्रैल को मेरा ऑक्सिजन लेवल गिरकर 74 पर आ गया। हम सिंघानिया अस्पताल गए। वहां लंबी बतार थी। मेरी हालत बिगड़ रही थी। अस्पताल के अंदर जगह नहीं थी। हम तीन से चार अस्पताल घूमे। कहीं जगह न मिलने पर एक बार तो हताश हो गया और डर भी लगा कि पता नहीं क्या होगा। लेकिन हिम्मत नहीं हारी और दोस्तों से लगातार बात की। धर्मशीला अस्पताल में हमें बेड मिल गया। वहां पर हम दोनों को एडमिट किया गया। मेरा ऑक्सिजन लेवल काफी कम था। मुझे आईसीयू में रखा गया। 24 घंटें तक ऑक्सिजन पर रहा। 5 दिन आईसीयू में रहा। स्टाफ बहुत अच्छी केयर कर रहा था, इसलिए कोई परेशानी नहीं हुई। खुद को पॉजिटिव रखने की पूरी कोशिश की। मुझे पूरा विश्वास था कि मैं अच्छे हाथों में हूं। डॉक्टर मुझे परामर्श देते रहे। मैं उनके अनुरूप ही चलता रहा। मेरी डाइट, दिनचर्या, पॉजिटिविटी बनाए रखने में अस्पताल के स्टाफ ने काफी साथ दिया। 5 दिन बाद मैं आईसीयू से बाहर आ गया। मन लगाने के लिए मैग्जीन पढ़ीं। पुराने गाने सुने। दोस्तों से बात होती रही। पत्नी भी ठीक हो गई। अब हम दोनों घर पर आ गए हैं और आराम कर रहे हैं।

एक महीने तक संक्रमण बढ़ता रहेगा, उसके बाद कम होगा: डॉक्टर



(डॉक्टर रोमेल टिक्कू, इंटरनल मेडिसिन, मैक्स हॉस्पिटल)

मैं डॉक्टर हूं। एक साल पहले मुझे भी कोरोना के बारे में ज्यादा पता नहीं था। यह नई बीमारी थी। उस समय दूसरे देशों में ही फैल रही थी। मुझे कभी नहीं लगा कि यह वायरस अपने देश में भी पहुंच जाएगा। पहले भी ऐसी कई बीमारियां दूसरे देशों में फैली थीं, लेकिन भारत में उसका असर नहीं देखा गया था। फिर मेरी सोच के विपरीत धीरे-धीरे कोरोना के मामले यहां भी आने लगे। स्थिति लॉकडाउन तक पहंच गई। बीमारी नई थी, इसलिए स्टडी भी ज्यादा नहीं थी। जितनी जानकारी मिल रही थी, उस पर भरोसा करना पड़ रहा था। शुरू में पता चला कि कोरोना, लंग्स को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। फिर जानकारी मिली कि रेसप्रेट्री फेल हो जाती है। मरीज को आईसीयू व वेंटिलेटर पर रखना होता है। लेकिन जब मैंने खुद ऐसे मरीजों का इलाज किया, तो पता चला कि बिना वेंटिलेटर के भी मरीज ठीक हो सकते हैं। अब तक हमारे पास इस वायरस के खिलाफ ना कोई दवा थी और ना ही इलाज का प्रोटोकॉल था। इमरजेंसी हालात को देखते हुए पुरानी दवाओं में से एक हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का खूब यूज किया गया। फिर स्टडी से यह साफ हुआ कि इस दवा का ज्यादा फायदा नहीं है। इसी तरह प्लाज्मा का भी इस्तेमाल भी हुआ और इसमें भी कुछ ठोस असर नहीं पाया गया। इलाज में स्टेरॉयड का इस्तेमाल शुरू हुआ और अब तक सबसे ज्यादा इसी का फायदा देखा जा रहा है। मेरा मानना है कि जिन मरीजों को न्यूमोनिया हो जाता है, उसकी जान बचाने में यह दवा काफी मदद कर रही है।

सितंबर-अक्टूबर में यह संक्रमण जोर पकड़ रहा था और नवंबर में यह पीक पर पहुंच गया। इस दौरान हमने कोविड के इलाज के लिए वर्चुअल तरीका अपनाया। मरीजों को होम आइसोलेशन में रहने, खुद की केयर करने, कौन सी दवा कब लेनी है, ऑक्सिजन सेचुरेशन कैसे जांच करें, ऑक्सिजन लेवल 94 पर्सेंट से कम नहीं होनी चाहिए, आदि के बारे में मरीजों को बताया। इससे खूब फायदा हुआ। मरीज परेशान कम हुए, अस्पताल की तरफ कम भागे। इससे धीरे-धीरे स्थिति नॉर्मल हुई। एक बार फिर से संक्रमण ने जोर पकड़ा है। पिछली बार से दो-तीन गुना ज्यादा मरीज संक्रमित हो रहे हैं। दोबारा इन्फेक्शन हो रहा है। वैक्सीन की पहली डोज के बाद भी लोग बहुत संक्रमित हो रहे हैं। कुछ लोग दो डोज के बाद भी इससे बच नहीं पा रहे हैं। वैक्सीनेशन का असर आने में अभी महीनों लग सकते हैं। मेरा मानना है कि अगले एक महीने यह पीक और ऊपर पर जा सकता है और उसके बाद कम होगा। यह कम तभी होगा, जब हम सभी मिलकर प्रयास करेंगे। सभी मास्क लगाएंगे। कोविड नियम व बिहेवियर का पालन करेंगे। काम के साथ-साथ इसे रोक पाना संभव नहीं है। सोशल व पॉलिटिकल भीड़ बंद करनी होगी। वरना, जिस प्रकार हेल्थ सेक्टर पर बोझ है और आगे भी ऐसा ही रहा, तो यह चरमरा जाएगा। इसलिए मास्क पहनें, दूरी बनाए रखें और बिना वजह घर से नहीं निकलें।

ऐप में मिलेगी हर जानकारी, बेड के लिए नहीं पड़ेगा भटकना



मयूर विहार में रहने वाले देवेश (बदला हुआ नाम) के दोस्त कोरोना पॉजिटिव निकले और उनकी तबियत खराब होने लगी। देवेश परेशान थे कि किस अस्पताल ले जाएं और कहां बिस्तर मिलेगा या नहीं। देवेश ने उन्हें उस ऐप के बारे में बताया जिसमें दिल्ली सरकार के अस्पतालों में खाली बिस्तर और आईसीयू के अपडेट मिलते हैं। ऐप में उन्हें दिखा कि राजीव गांधी सुपर स्पेशयलिटी अस्पताल में बिस्तर खाली है, कॉल करके कन्फर्म किया तो जानकारी सही निकली और वह मरीज को भर्ती कराने में कामयाब रहे।

सही जानकारी नहीं होना बीमारी के डर को बढ़ा देता है लेकिन अगर आप अपडेट हैं तो डरने के बजाय इससे लड़ना आसान हो जाता है। दिल्ली सरकार के इस कोरोना ऐप का सही इस्तेमाल लोगों के लिए मददगार साबित हो रहा है। आप इस ऐप को डाउनलोड कर सकते हैं। गूगल एंड्रॉयड फोन पर प्ले स्टोर पर जाकर Delhi Corona नाम से ऐप को सर्च करें, जिसके डिवेलपर के तौर पर Delhi E-governance society IT Department का नाम है। आईफोन यूजर ऐप स्टोर में भी यह इसी नाम से है। इसमें सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह के अस्पतालों की जानकारी है।

जो भी बेडस के बारे में जानना चाहते हैं वो इस ऐप के जरिए यह पता कर सकते हैं कि किस अस्पताल में कब, कितना बेड्स खाली हैं और कहां पर कितने बेड्स भरे हैं। इस ऐप पर बेड्स के साथ साथ आईसीयू, वेंटिलेटर बेड्स के अपडेट भी उपलब्ध हैं। यही नहीं, अस्पताल के नाम के साथ वहां पर कुल कोविड रिजर्व बेड की संख्या, कितने बेड भरे हैं, कितने खाली हैं, सब जानकारी उपलब्ध है। अस्पताल के नाम के साथ फोन नंबर भी दिया है, जिस पर आप फोन कर पता कर सकते हैं कि जो ऐप में अपडेट दिया गया है वह सही है या नहीं। इसके बाद ही आप अस्पताल जाएं ताकि अस्पताल जाने पर आपको बेड के लिए भटकना न पड़े।

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन बार बार कह रहे हैं कि दिल्ली में कोरोना बेड्स की कमी नहीं है, सरकार लगातार बेड्स बढ़ा रही है। बेड्स की उपलब्धता को लेकर सारी जानकारी कोरोना ऐप के जरिए जनता तक पहुंचाई जा रही है।

कंटेनमेंट जोन में मदद की डिलिवरी



कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में लोग तेजी से इसके शिकार हो रहे हैं। इस कारण कंटेनमेंट जोन भी ज्यादा बने हैं। ऐसी जगहों पर संक्रमितों को जरूरी सामान पहुंचाया जा रहा है। इसमें सरकारी कर्मचारियों के साथ निजी स्टोर के कर्मचारी और डिलिवरी बॉय भी काम कर रहे हैं। ऐसे करीब 170 कर्मचारी कोरोना संक्रमण के खतरे के बावजूद हर वक्त मदद की डिलिवरी में जुटे हैं। यही नहीं, संक्रमित होने के बाद होम आइसोलेट हुए अफसर भी मोबाइल से ही पूरी व्यवस्था की मॉनिटरिंग कर रहे हैं।

होम आइसोलेट मरीजों के घर तक दूध और खाद्य पदार्थ पहुंचाने के लिए 50 से अधिक टीमें बनी हैं। इसके साथ किस घर में किस चीज की जरूरत है, इसकी मॉनिटरिंग के लिए पर्यवेक्षक तैनात हैं। इन इलाकों में जनरल और रिटेल स्टोर से एक कॉल पर सामान की सप्लाई हो रही है। इसी तरह दवा पहुंचाने के लिए भी कई मेडिकल स्टोर के कर्मचारियों को जिम्मा सौंपा गया है। ये सभी कर्मचारी संक्रमण के खतरे के बावजूद एक कॉल पर जरूरत का हर सामान पहुंचा रहे हैं।

संक्रमित होने के बाद भी कर रहे निगरानी

संक्रमितों के घर तक जरूरी सामान की सप्लाई की निगरानी का जिम्मा एफएसडीए के डीओ डॉ. एसपी सिंह और सीएफएसओ एसके मिश्रा को सौंपा गया है। फिलहाल दोनों संक्रमित होने के बाद होम आइसोलेट हैं। दोनों के कई परिवारीजन भी संक्रमित हो चुके हैं। इसके बावजूद दोनों अफसर मोबाइल से पूरी व्यवस्था की निगरानी कर रहे हैं।

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