सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे साधुओं का अखाड़ा है निरंजनी, जिसने कुंभ से हटने की घोषणा की – News18 हिंदी

कोरोना महामारी के मद्देनजर निरंजनी अखाड़े ने महाकुंभ से हटने की घोषणा कर दी है. अगर साधुओं  की संख्या की बात की जाए तो निरंजनी अखाड़ा देश के सबसे बड़े और प्रमुख अखाड़ों में है. जूना अखाड़े के बाद उसे सबसे ताकतवर माना जाता है. वो देश के 13 प्रमुख अखाड़ों में एक है. इसका एक परिचय ये भी है कि इसमें सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे साधू हैं, जिसमें डॉक्टर, प्रोफेसर और प्रोफेशनल शामिल हैं.

हरिद्वार महाकुंभ शुरू होने के बाद से 70 के आसपास वरिष्ठ साधू कोरोना पाजिटीव हो चुके हैं. ये संख्या लगातार बढ़ रही है. निरंजनी अखाड़े की हमेशा एक अलग छवि रही है. जानते हैं निरंजनी अखाड़े के बारे में. जिसके बारे में कहा जाता है कि ये हजारों साल पुराना है.

हजारों साल पुराना है अखाड़े का इतिहास
निरंजनी अखाड़ा की स्थापना सन् 904 में विक्रम संवत 960 कार्तिक कृष्णपक्ष दिन सोमवार को गुजरात की मांडवी नाम की जगह पर हुई थी. महंत अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर अखाड़ा की नींव रखी. अखाड़ा का मुख्यालय तीर्थराज प्रयाग में है. उज्जैन, हरिद्वार, त्रयंबकेश्वर व उदयपुर में अखाड़े के आश्रम हैं.माना जाता है सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे साधु-संतों का अखाड़ा

एक रिपोर्ट की मानें तो शैव परंपरा के निरंजनी अखाड़े के करीब 70 फीसदी साधु-संतों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है. इनमें से कुछ डॉक्टर, कुछ वकील, प्रोफेसर, संस्कृत के विद्वान और आचार्य शामिल हैं.

निरंजनी अखाड़े के 70 फीसदी साधू उच्च शिक्षित हैं. इसमें कुछ आईआईटी में पढ़े लोग भी हैं.

इस अखाड़े के एक संत स्वामी आनंदगिरि नेट क्वालिफाइड हैं. वह आईआईटी खड़गपुर, आईआईएम शिलांग में लेक्चर भी दे चुके हैं. अभी वे बनारस से पीएचडी कर रहे हैं.

कौन बन सकता है महामंडलेश्वर
अखाड़े का महामंडलेश्वर बनने के लिए कोई निश्चित शैक्षणिक योग्यता की जरूरत नहीं होती है. इन अखाड़ों में महामंडलेश्वर बनने के लिए व्यक्ति में वैराग्य और संन्यास का होना सबसे जरूरी माना जाता है. महामंडलेश्वर का घर-परिवार और पारिवारिक संबंध नहीं होने चाहिए.

हालांकि इसके लिए आयु का कोई बंधन नहीं है लेकिन यह जरूरी होता है कि जिस व्यक्ति को यह पद मिले उसे संस्कृत, वेद-पुराणों का ज्ञान हो और वह कथा-प्रवचन दे सकता हो. कोई व्यक्ति या तो बचपन में अथवा जीवन के चौथे चरण यानी वानप्रस्थाश्रम में महामंडलेश्वर बन सकता है. लेकिन इसके लिए अखाड़ों में परीक्षा ली जाती है

अखाड़े के वर्तमान पीठाधीश्वर हैं स्वामी पुण्यानंद गिरि जी महाराज
निरंजनी अखाड़ा के इष्टदेव कार्तिकेय स्वामी जी व धर्मध्वजा का रंग गेरुआ है. अखाड़ा के वर्तमान आचार्य पीठाधीश्वर स्वामी पुण्यानंद गिरि जी महाराज हैं. अखाड़ा के सचिव महंत नरेंद्र गिरि ने एक बार इंटरव्यू के दौरान कहा था किृ सनातन धर्म की रक्षा एवं प्रचार-प्रसार के लिए वे निरंतर कोशिशें करते रहते हैं. संस्कृत विद्यालयों में गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षित दिलाते हैं. वहीं गौ, गंगा व गायत्री की रक्षा के लिए भी अखाड़े के महंत निरंतर जनजागरण करते हैं.

निरंजनी अखाड़े का आश्रम हरिद्वार में ही स्थित है.

विवादों में भी घिर चुका है यह अखाड़ा
कुछ सालों पहले डिस्कोथेक और बार संचालक रियल इस्टेट कारोबारी सचिन दत्ता को इस अखाड़े का महामंडलेश्वर सच्चिदानंद गिरि बनाया गया था. जिसके बाद निरंजनी अखाड़ा विवादों में घिर गया था.

फिलहाल इस अखाड़े में दस हजार से अधिक नागा संन्यासी हैं. जबकि महामंडलेश्वरों की संख्या 33 है. जबकि महंत व श्रीमहंत की संख्या एक हजार से अधिक है.

वैसे निरंजनी अखाड़े ने भव्य पेशवाई के साथ कुंभ में अपनी शुरुआत की थी. इसमें कई रथ, हाथी और ऊंट शामिल हुए थे. करीब 50 रथों पर चांदी के सिंहासन पर आचार्य महामंडलेश्वर और महामंडलेश्वर विराजमान थे. बड़ी संख्या में नागा साधुओं ने भगवान शिव का तांडव किया था.

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