India-China Issue: तिब्बत में 300 अरब किलोवाट बिजली प्रोडक्शन के लिए विशाल बांध बनाने की तैयारी में है चीन, भारत की बढ़ सकती है चिंता – Navbharat Times

हाइलाइट्स:

  • चीन तिब्बत में एक विशाल बांध बनाने की योजना बना रहा है
  • यह चीन की यांग्सी नदी पर बने तीन बांधों से ज्यादा बड़ा होगा
  • यह चीन में खपत के लिए जरूरी से 3 गुना ज्यादा बिजली पैदा करेगा

पेइचिंग
चीन तिब्बत में एक विशाल बांध बनाने की योजना बना रहा है। यह चीन की यांग्सी नदी पर बने तीन बांधों से ज्यादा बड़ा होगा और चीन में खपत के लिए जरूरी बिजली से तीन गुना ज्यादा बिजली पैदा करेगा। इसकी वजह से पर्यावरणविदों के साथ-साथ भारत में चिंता देखी जा रही है। इससे चीन ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को हिमालय के इलाकों और भारत में बहने से पहले नियंत्रित करने की कोशिश करेगा। यह परियोजना तिब्बत के मेडोग काउंटी में शुरू होगी और मध्य चीन में यांग्सी नदी पर बने थ्री जॉर्ज बांध से भी कई गुना बड़ी होगी।

इसकी क्षमता हर साल 300 अरब किलोवाट बिजली का उत्पादन करने की होगी। इसका जिक्र चीन की रणनीतिक 14वीं पंचवर्षीय योजना में किया गया है, जिसे मार्च में जारी किया गया। हालांकि, इसमें विस्तार से जानकारी नहीं दी गई है। इसमें परियोजना की समयसीमा या फिर बजट के बारे में नहीं बताया गया है। चीन जिस नदी पर बांध बनाने की योजना बना रहा है, उसे तिब्बत में यालुंग जांग्बो नदी कहा जाता है। इस पर दो परियोजनाओं का काम शुरू होना है, जबकि छह अभी विचाराधीन हैं।

पर्यावरणविद कर सकते हैं विरोध
बता दें कि यालुंग जांग्बो नदी तिब्बत से बहते हुए ब्रह्मपुत्र बनकर भारत में प्रवेश करती है। पिछले साल तिब्बत की स्थानीय सरकार ने चीन की सरकारी कंपनी ‘पावर चाइना’ के साथ ‘रणनीतिक सहयोग समझौता’ किया था। इसके महाने भर बाद कंपनी के प्रमुख ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के यूथ विंग के सामने आंशिक तौर पर परियोजना की रूपरेखा रखी थी। चीन जीवाश्म ईंधन के लिए विकल्प के तौर पर इस परियोजना को सही ठहरा सकता है, लेकिन उसे पर्यावरणविदों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ सकता है।

जैसा कि 1994 और 2012 के बीच बने थ्री जॉर्ज बांध की वजह से करीब 14 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा था। अमेरिकी थिंकटैंक ब्रायन आइलर का कहना है, ‘इतने विशाल बांध को बनाना कई वजहों से बुरा विचार है।’ यह इलाका भूकंप की गतिविधियों के अलावा जैव विविधता वाला भी है। भारत के धर्मशाला में स्थित निर्वासित तिब्बती सरकार के थिंक टैंक का कहना है कि इसके पर्यावरण और राजनीतिक दोनों लिहाज से जोखिम हैं। कई लोगों को पलायन करना होगा। वहीं, भारत भी इस परियोजना को लेकर चिंतित है।



सांकेतिक तस्वीर

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