नक्सलियों ने ऐसे ही नहीं छोड़ा कोबरा जवान, बुलाई थी ‘जन अदालत’, पत्रकार ने बताई पूरी कहानी – Jansatta

राकेश्वर सिंह ने बताया कि उन्हें 15 किलोमीटर के दायरे में कई गांवों में घुमाया गया। हालांकि उनके साथ कोई बुरा सलूक नहीं किया गया।

जब जवान राकेश्वर सिंह को ‘जन अदालत’ में पेश किया गया। फोटो- पीटीआई

सुकमा-बीजापुर बॉर्डर पर हुए एनकाउंटर के बाद नक्सलियों द्वारा किडनैप किए गए कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह को आखिरकार छुड़ा लिया गया। जंगल से उन्हें लेने के लिए चार लोगों की टीम गई थी जिसमें कुछ स्थानीय पत्रकार शामिल थे। बस्तर के गांधी कहे जाने वाले धर्मपाल सैनी, गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलम बौरैय्या, रिटायर्ड शिक्षक जयरूद्र करे और मुरतुंडा की पूर्व सरपंच सुखमती हपका ने जवान की रिहाई में अहम भूमिका निभाई।

उनके साथ पत्रकार गणेश मिश्रा और मुकेश चंद्राकर भी लगातार कोशिश में लगे थे। इन पत्रकारों ने नक्सलियों के साथ संवाद में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। राकेश्वर सिंह की तस्वीर भी नक्सलियों ने इन्हीं के पास भेजी थी और अपना संदेश दिया था। नक्सलियों ने कहा था कि सरकार वार्ताकारों की घोषणा करे तभी जवान को छोड़ा जाएगा। इसके बाद मध्यस्थता के लिए चार लोगों को चयन किया गया। कई और पत्रकार भी जवान की रिहाई के लिए नक्सलियों के साथ टच में थे।

न्यूज 18 के मुताबिक पत्रकार चंद्राकर से नक्सलियों ने कहा कि वे जगरगोंडा के जंगल में पहुंचें जहां पर एनकाउंटर हुआ था। वार्ताकारों के साथ कुछ पत्रकार भी घने जंगल में पहुंचे। यहां 20 गांव के हजारों लोगों को इकट्ठा कर ‘जन अदालत’ चल रही थी। इसी बीच जवान राकेश्वर को रस्सी से बांधकर लाया गया और मौजूद लोगों से पूछा गया कि क्या उन्हें छोड़ देना चाहिए। लोगों ने जब हामी भरी तब उनकी रस्सियां खोली गईं।

रिहाई के बाद जवान राकेश्वर सिंह ने बताया कि हमले के दौरान वह बेहोश हो गए थे और तभी नक्सली उन्हें उठा ले गए। इसके बाद छह दिनों तक उन्हें अलग-अलग गांव में घुमाया गया। हालांकि कोई बुरा सलूक नहीं किया गया। खाने-पीने और सोने की उचित व्यवस्था की गई। जहां उन्हें ले जाया गया वह इलाका 15 किलोमीटर के अंदर ही था। जवान को छुड़ाने गए पत्रकार ने बताया कि जन अदालत के दौरान काफी देर तक नक्सली भाषण देते रहे। इसके बाद ही उन्हें छोड़ा गया। चारों मध्यस्थ जवान के साथ तरेंम के रास्ते बासागुड़ा थाने पहुंचे।

राकेश्वर सिंह के सही सलामत छूटने के बाद उनके परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। पिछले कई दिनों से उनका परिवार रिहाई का इंतजार कर रहा था और लगातार सरकार से अपनी अर्जी लगा रहा था। उनकी पत्नी ने सरकार को शुक्रिया अदा किया।

कौन हैं जवान की रिहाई के हीरो

जवान को छुड़ाने के लिए ऐसे लोगों की जरूरत थी जो कि सरकार और माओवादियों दोनों के लिए भरोसेमंद हों। इसमें दंतेवाड़ा के रिटायर्ड शिक्षक जय रूद्र करे को शामिल किया गया। वह रिटायरमेंट के बाद धर्मपाल सैनी के साथ ही काम कर रहे हैं। पद्मश्री धर्मपाल सैनी सालों से बस्तर के आदिवासियों के लिए काम कर रहे हैं। उन्हें बस्तर का गांधी कहते हैं। इसके अलावा तैलम बौरैया भी एक पूर्व शिक्षक हैं और गोंडवाना समाज के अध्यक्ष हैं। इस ग्रुप में सुखमती हपका को शामिल किया गया जो कि सामाजिक कार्यकर्ता हैं और गोंडवाना समाज की उपाध्यक्ष हैं।

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