किसान आंदोलन पर ब्रितानी सांसदों की चर्चा: विदेश मंत्रालय ने ब्रितानी उच्चायुक्त को तलब किया – BBC हिंदी

ब्रिटेन की संसद के वेस्टमिंस्टर कमिटी रूम में सोमवार को भारत में ‘किसानों की सुरक्षा’ और ‘प्रेस की आज़ादी’ से जुड़े ई-पीटिशन अभियान पर हुई चर्चा पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है.

समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार मंगलवार को भारतीय विदेश सचिव ने भारत स्थित ब्रितानी उच्चायुक्त एलेक्स एलिस को तलब किया और भारत की नाराज़गी जताई.

भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार विदेश सचिव ने ब्रितानी उच्चायुक्त से कहा कि भारत में हुए कृषि सुधारों पर ब्रितानी संसद में हुई बहस ग़ैर-ज़रूरी और पक्षपातपूर्ण थी.

विदेश सचिव ने स्पष्ट कहा कि यह एक दूसरे लोकतांत्रिक देश के अंदुरुनी मामले में दख़लअंदाज़ी है. उन्होंने कहा कि ब्रितानी सांसदों को एक दूसरे लोकतांत्रिक देश की घटना को तोड़-मरोड़कर पेश करके वोट बैंक की राजनीति करने से परहेज़ करना चाहिए.

इससे पहले ब्रिटेन में लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग ने कहा था कि वह लगातार पीटिशन से जुड़े मुद्दों को लेकर सूचित करता रहा है.

भारतीय उच्चायोग के बयान में कहा गया है, “हमें बेहद अफ़सोस है कि एक संतुलित बहस की जगह बिना किसी सत्यता या तथ्यों के झूठे दावे किए जा रहे हैं. दुनिया के सबसे बड़े कामकाजी लोकतंत्र और उसके संस्थानों पर आक्षेप लगाए जा रहे हैं.”

बयान में कहा गया है, “जिन सभी मुद्दों को उठाया गया वे भारत में स्थापित स्वतंत्र लोकतांत्रिक संस्थाओं पर चोट है. एक बार फिर यह भी चिंता का विषय है कि भारत में अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार पर संदेह पैदा करके, ‘कश्मीर’ में कथित मानवाधिकार उल्लंघनों का दावा करके ब्रिटिश-भारतीय समुदाय को गुमराह किया जा रहा है.”

“ब्रिटिश मीडिया समेत विदेशी मीडिया भारत में मौजूद है और वे उन सभी घटनाओं को देख चुके हैं जिसकी चर्चा हुई है. भारत में मीडिया की स्वतंत्रता का सवाल कभी उठा ही नहीं है.”

किसान आंदोलन

आख़िर क्या है मामला?

सोमवार को ब्रिटिश संसद कैंपस में 90 मिनट भारत में ‘किसानों की सुरक्षा’ और ‘प्रेस की स्वतंत्रता’ पर चर्चा के लिए रखे गए थे.

लेबर पार्टी, लिबरल डेमोक्रेट्स और स्कॉटिश नेशनल पार्टी के कई सांसदों ने विरोध प्रदर्शनों पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया को लेकर चिंता जताई थी.

इसके जवाब में ब्रिटिश सरकार ने कहा, “इन चिंताओं को भारत के सामने तब उठाया जाएगा जब दोनों देश के प्रधानमंत्री व्यक्तिगत रूप से मिलेंगे.”

यह चर्चा मैडेनहेड के भारतीय मूल के लिबरल डेमोक्रेट नेता गुरच सिंह की पीटिशन के जवाब में हुई थी. इस पीटिशन पर कुछ ही हफ़्तों में एक लाख से अधिक ब्रिटिश नागरिक हस्ताक्षर कर चुके हैं.

स्कॉटिशन नेशनल पार्टी के मार्टिन डे ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा, “ब्रिटिश सरकार पहले ही साफ़ कर चुकी है कि कृषि सुधार भारत सरकार का फ़ैसला है इसलिए कृषि सुधार पर हम चर्चा नहीं कर रहे हैं. हम चर्चा प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा को लेकर कर रहे हैं.”

“वाटर कैनन, आँसू गैस का इस्तेमाल, पुलिस और किसानों के बीच कई बार झड़प और इंटरनेट पर बार-बार लगने वाली रोक चिंता का विषय है. कई किसानों ने कथित तौर पर आत्महत्या की है.”

कई विपक्षी सांसदों की भारत में किसानों और पत्रकारों को लेकर चिंताओं का जवाब देते हुए एशियाई राष्ट्रों के लिए ब्रिटेन के मंत्री नाइजल एडम्स ने कहा कि ब्रिटेन के ‘भारत के साथ क़रीबी रिश्ते किसी राष्ट्र को अपनी चिंता ज़ाहिर करने से रोक नहीं सकते हैं.’

लेबर पार्टी के सांसद जर्मी कोर्बिन ने कहा, “ऐसे अभूतपूर्व प्रदर्शनों के कारण यह सोचने पर मजबूर होना चाहिए कि क्या वजह है कि इतने लोग क्यों सामने आ रहे हैं. पत्रकारों की गिरफ़्तारी बहुत बड़ा चिंता का विषय है. किसानों का पूरा अधिकार है कि वे अपने हक़ के लिए विरोध प्रदर्शन करें. हम उनके साथ पूरी मज़बूती से खड़े हैं.”

किस

भारतीय उच्चायोग ने और क्या कहा?

इस मामले पर भारतीय उच्चायोग ने अपने बयान में कहा है, “भारतीय उच्चायोग आमतौर पर आंतरिक चर्चा पर टिप्पणी करने से बचता है जिसमें सांसदों का एक छोटा समूह सीमित संख्या में शामिल होता है.”

“लेकिन जब दोस्ती और भारत के लिए प्यार के दावों के बीच कोई भारत पर आक्षेप लगाता है तब बात को सीधे तरह से सामने रखा जाना चाहिए.”

ग़ौरतलब है कि तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली से लगी सीमाओं पर नवंबर से प्रदर्शन जारी हैं.

पिछले महीने इन प्रदर्शनों को लेकर पॉप स्टार रिहाना, पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग और कुछ अमेरिकी और ब्रिटिश सांसदों ने टिप्पणियां की थीं जिसके बाद भारत सरकार ने इस पर बयान जारी किया था.

भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा था, “हम इस बात पर ज़ोर देना चाहेंगे कि इन विरोधों को भारत के लोकतांत्रिक विचार, राजनीति और गतिरोध को हल करने के लिए सरकार और संबंधित किसान समूहों के प्रयास के संदर्भ में देखा जाना चाहिए.”

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