नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली में हिंसा फैलाने का जिम्मेदार कौन है? पुलिस की बैरिकेडिंग तोड़कर ट्रैक्टर परेड (Tractor Parade) के लिए पहले से तय रूट की जगह लाल किले तक पहुंचने के लिए किसानों को उकसाने वाले कौन हैं? लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराने के पीछे किसकी साजिश है? ये सवाल हर कोई पूछ रहा है. इस खबर में जानिए किस तरह तथाकथित किसान नेताओं ने अपना वादा तोड़ा और मूक दर्शक बने रहे.
किसानों के नाम पर हिंसा का जिम्मेदार कौन
बता दें कि 25 जनवरी को किसान नेता दर्शन पाल सिंह ने कहा था, ‘हम गणतंत्र परेड किसी और दिन कैसे करते हैं? हम तो दिल्ली में बैठे हैं. गणतंत्र दिवस 26 को आता है तो हम गणतंत्र परेड भी 26 को करेंगे.’
गणतंत्र दिवस (Republic Day) के एक दिन पहले किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने कहा था, ‘किसी भी स्मारक पर कब्जा करने का प्रोग्राम हमारा नहीं है, अगर दिल्ली पुलिस को लगता है कि आदमी दिल्ली के अंदर घुसेंगे, जो रिंग रोड के बैक साइड में है तो वो बैरिकेंडिंग कर लें. हमें इसमें कोई आपत्ति नहीं है.’
किसने वादा किया था ‘नहीं होगी हिंसा’
बता दें कि दिल्ली (Delhi) में ट्रैक्टर परेड से पहले किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने कहा था कि ट्रैक्टर परेड (Tractor Parade) में किसी तरह की गड़बड़ी की आशंका नहीं है. सब शांतिपूर्ण तरीके से होगा.
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जान लें कि बीते 11 जनवरी को किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा था, ’26 तारीख को जो दिल्ली का प्रोग्राम है, दिल्ली ट्रैक्टर परेड का वो करेंगे और उसके लिए हमने रणनीति बनाई है कि 24 तारीख तक जो सारे किसान भाई हैं, वो ट्रैक्टर लेकर दिल्ली बॉर्डर पर पहुंच जाएं.’
देश से माफी मांगेगे किसान नेता?
अब सवाल उठता है कि जिन्होंने सरकार से वार्ता की, जिन्होंने किसानों के नाम पर उपद्रवियों को इकट्ठा किया, जिन्होंने 26 जनवरी के दिन ट्रैक्टर मार्च रखा, क्या वो किसान नेता अब देश से माफी मांगेंगे? इनकी तरह के वो तमाम चेहरे जिन्होंने वार्ता के नाम पर और किसान आंदोलन के नाम पर अपने चेहरे चमकाएं हैं, क्या वो देश से माफी मांगेंगे?
सच्चाई ये है कि दिल्ली पुलिस ने इन्हीं किसान नेताओं के आश्वासन और बातचीत के आधार पर ट्रैक्टर परेड की इजाजत दी थी. इन्हीं किसान नेताओं पर भरोसा किया था. लेकिन वादा भी टूटा और भरोसा भी. दिल्ली पुलिस ने ट्रैक्टर परेड के लिए कई शतें रखीं थीं लेकिन सारी शर्तों को तोड़ दिया गया. इतना ही नहीं किसानों ने एडिशनल पुलिस कमिश्नर को भी ट्रैक्टर से कुचलने की कोशिश की.
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गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में पुलिसकर्मियों को जान से मारने की कोशिश, तोड़फोड, लाल किले पर कब्जा, तिरंगे का अपमान, अराजकता और गुंडागर्दी सब कुछ हुई. हर दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले, सरकार से वार्ता करके अपना चेहरा चमकाने वाले और खुद को किसानों को नेता कहने वाले चेहरे हिंसा के बाद कहीं नजर नहीं आए.
गौरतलब है कि जब आंदोलन दंगे में तब्दील हो गया तो कहा गया कि आंदोलन में बाहरी लोग आ गए हैं. किसान नेताओं ने कहा कि हम इस हिंसा का विरोध करते हैं. जबकि इन्हीं नेताओं से दिल्ली पुलिस ने बार-बार इस बात की आशंका जाहिर करके रैली ना करने की अपील की थी.
हालांकि कुछ किसान नेता तो बड़ी बेशर्मी के साथ इस हिंसा के लिए भी दिल्ली पुलिस को जिम्मेदार ठहराने लगे, जो दंगाइयों की लाठियां खा रही थीं. जिसने इस हिंसा के बावजूद गोलियां नहीं चलाईं और लाठीचार्ज नहीं किया.
Zee News पहले ही आंदोलन में खालिस्तान की एंट्री की बात को दोहराता रहा है. Zee News ये भी बता चुका है कि ये आंदोलन अब किसानों का आंदोलन नहीं रहा. लेकिन इस हिंसा के बाद सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या दंगाइयों के साथ-साथ इस पूरी ट्रैक्टर परेड का नेतृत्व करने वाले चेहरों की जवाबदेही भी तय होगी.
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