हाइलाइट्स:
- सबसे खूनी संघर्ष का गवाह बना नंदीग्राम सांप्रदायिक आधार पर बंट गया है
- ममता बनर्जी के यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद होगा व्यापक असर
- नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में करीब 70 प्रतिशत हिंदू जबकि शेष मुसलमान हैं
नंदीग्राम
पश्चिम बंगाल में रक्तरंजित नंदीग्राम के संघर्ष ने टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी को एक जुझारू जन नेता की पहचान दी है। अब इसी जमीन पर उन्हें कभी उन्हीं के सिपहसालार रहे सुवेंदु अधिकारी से कड़ी चुनौती मिल रही है। आम तौर पर ग्रामीण और शहरी पश्चिम बंगाल की विशेषताओं को अपने में समेटे सामान्य कृषि क्षेत्र नजर आने वाले इस इलाके को भू-अधिग्रहण विरोधी संघर्ष ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में ला दिया था। विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, एक बार फिर यहां संघर्ष का खतरा मंडराने लगा है जिससे नंदीग्राम की शांति भंग होने का अंदेशा है। नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में करीब 70 प्रतिशत हिंदू हैं जबकि शेष मुसलमान हैं।
औद्योगीकरण के लिए सरकारी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ कभी काफी हद तक एकजुट होकर सबसे खूनी संघर्ष का गवाह बना नंदीग्राम आज सांप्रदायिक आधार पर बंटा हुआ नजर आता है। पश्चिम बंगाल में तत्कालीन वामपंथी सरकार की तरफ से यहां विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) बनाने के लिये भूमि अधिग्रहण के खिलाफ 2007 में हर तरफ सुनाई देने वाले नारे ‘तोमर नाम, अमार नाम…नंदीग्राम, नंदीग्राम’ (तुम्हारा नाम, मेरा नाम नंदीग्राम, नंदीग्राम) से यह इलाका अब काफी आगे निकल आया है। आज नंदीग्राम की दीवारों पर धुंधले दिखाई देते ‘तोमार नाम अमार नाम, नंदीग्राम, नंदीग्राम’ की जगह ‘जय श्री राम’ के नारे प्रमुखता से दिखते हैं।
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ममता भी लड़ेगी नंदीग्राम से, होगा व्यापक असर
इस सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की सबसे बड़ी वजह क्षेत्र के कद्दावर नेता और तृणमूल कांग्रेस में अहम जिम्मेदारियां संभाल चुके सुवेंदु अधिकारी का बीजेपी में शामिल होना और फिर ममता बनर्जी का यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा करना है। बनर्जी की घोषणा का पूरे पूर्वी मिदनापूर्व जिले में असर होगा। बनर्जी और अधिकारी दोनों ही नंदीग्राम आंदोलन के नायक रहे हैं। टीएमसी सुप्रीमो पथ प्रदर्शक के तौर पर रहीं तो अधिकारी जमीनी स्तर पर उनके सिपहसालार रहे जो SEZ के खिलाफ जन रैलियों का आयोजन करते थे। इस एसईजेड में इंडोनेशिया के सलीम समूह की तरफ से रसायनिक केंद्र स्थापित किया जाना था। टीएमसी के लोकसभा सदस्य और सुवेंदु अधिकारी के पिता शिशिर अधिकारी तब बीयूपीसी (भूमि उच्छेद प्रतिरोध समिति) के संयोजक थे। इस समिति में विभिन्न राजनीतिक विचारधारा के लोग शामिल थे। टीएमसी, कांग्रेस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और यहां तक की वाम दलों के असंतुष्ट सदस्यों ने भी सरकार के साथ एकजुट होकर यह संघर्ष किया।
पूरी तरह राजनीतिक थे पहले के मतभेद
पश्चिम बंगाल की सियासत में वामदलों और कांग्रेस के हाशिये पर जाने के बाद नंदीग्राम में ममता बनर्जी की टीएमसी और बीजेपी के बीच कड़वाहट भरी सियासी जंग के आसार बन रहे हैं। विरोधी दलों की रैलियों पर हमले हो रहे हैं, लोग जख्मी हो रहे हैं। बीयूपीसी के संघर्ष के बाद इस क्षेत्र में कोई उद्योग नहीं आया और नंदीग्राम की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि उत्पादों, चावल व सब्जियों और आसपास के इलाकों में ताजा मछली की आपूर्ति पर टिकी है। नंदीग्राम में वर्ष 2007-11 के बीच संघर्ष से यहां की शांति भंग हुई जब बीयूपीसी और सीपीएम समर्थकों के बीच हुई झड़प में कई लोग मारे गए। लेकिन इसके बावजूद इलाके में कभी धार्मिक या सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण नहीं हुआ और मतभेद पूरी तरह राजनीतिक ही थे।
‘अब यहां होती है धार्मिक राजनीति’
भू-अधिग्रहण विरोधी आंदोलन में हिस्सा ले चुके स्थानीय निवासी रसूल काजी ने बताया, ‘बीते छह-सात सालों में नंदीग्राम काफी बदल गया है। पहले सभी समुदाय यहां मिलजुल कर शांति से रहते थे। मतभेद और हिंसा पहले भी होती थी, लेकिन वे धार्मिक नहीं राजनीति आधारित होती थीं। अब यह धर्म से उपजती है जहां एक तरफ बहुसंख्य हिंदू होते हैं तो दूसरी तरफ मुसलमान। हमनें पहले कभी यहां ऐसी स्थिति नहीं देखी।’
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‘टीएमसी सरकार ने अति कर दी तुष्टिकरण की’
नंदीग्राम में गोकुलपुर गांव के बामदेव मंडल सांप्रदायिक विभाजन के लिए टीएमसी को आरोपी ठहराते हैं। मंडल ने कहा, ‘टीएमसी सरकार ने मुस्लिम तुष्टिकरण की अपनी नीति की अति कर दी जिससे एक समुदाय दूसरे के सामने आ खड़ा हुआ।’ भू-अधिग्रहण विरोधी आंदोलन के बाद से इलाके में विकास नहीं होने को लेकर भी मंडल नाराज हैं। उन्होंने कहा, ‘हिंदू और मुसलमान साथ मिलकर लड़े लेकिन हमें क्या मिला?…कुछ मुट्ठीभर नेताओं और एक समुदाय विशेष के लोगों को सभी फायदा मिला। अब लोग नाराज हैं और टीएमसी को सबक सिखाएंगे।’
‘मुसलमानों को छात्रवृत्तियों में भी दी जा रही वरीयता’
टीएमसी पंचायत समिति के एक सदस्य ने आरोप लगाया कि मुसलमानों को छात्रवृत्तियों में भी वरीयता दी जा रही है। उन्होंने कहा, ‘सीपीएम कभी धर्म के आधार पर लोगों में भेदभाव नहीं करती थी। बताइए हमें कि हिंदू क्यों बीजेपी के साथ नहीं जाएं? हमने पार्टी को भेदभाव को लेकर चेताया था लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।’ वहीं, बीयूपीसी से जुड़े रहे शेख सूफियन हालांकि इन दावों को बीजेपी के भ्रामक प्रचार अभियान का हिस्सा करार देते हैं।
अपना धर्मनिरपेक्ष चरित्र नहीं खोएगा नंदीग्राम: टीएमसी
तामलुक जिले के बीजेपी महासचिव गौर हरि मैती ने बताया, ‘नंदीग्राम विस्फोटक के मुहाने पर बैठा है और इसके लिए सिर्फ टीएमसी की तुष्टिकरण की राजनीति जिम्मेदार है। अगर आप बहुसंख्य समुदाय को उसके अधिकार देने से इनकार कर देंगे तो आपको परिणाम भुगतने होंगे।’ वहीं, टीएमसी के पूर्वी मिदनापुर के प्रमुख अखिल गिरि को भरोसा है कि नंदीग्राम अपना धर्मनिरपेक्ष चरित्र नहीं खोएगा। उन्होंने कहा, ‘शुभेंदु और उनके दरबारी नेता कहते हैं कि नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में करीब 2.12 लाख हिंदू और 70 हजार मुसलमान मतदाता हैं। लेकिन हम उनके सांप्रदायिक डिजाइन को परास्त कर देंगे। नंदीग्राम धर्मनिरपेक्षता का केंद्र है और हमेशा रहेगा।’