सुबह के करीब 7 बजे 13 साल के मोनू अपना मच्छरदानी हटाते हैं और बिस्तर छोड़ देते हैं। इसी दौरान उनकी मां चूल्हे पर नाश्ता बना रही होती हैं। मोनू के घर से कुछ दूर पर 11 साल की आम्या रहती हैं। आम्या बिस्तर से उतरती हैं, हॉल में आती हैं और वहां पर लगे एक एयर प्यूरीफायर में प्रदूषण का स्तर देखती हैं, जो जाहिर तौर पर सामान्य से कहीं ज्यादा होता है।
आम्या दिल्ली के ग्रेटर कैलाश के फेज-2 में अपर मिडिल क्लास पड़ोसियों के साथ रहती हैं। ग्रेटर कैलाश एक पॉश इलाका है। आम्या के अपार्टमेंट में लगे फिट दरवाजों और खिड़कियों से हवा में मौजूद जहरीले पार्टिकल्स अंदर नहीं आ पाते और जो कुछ आ भी जाते हैं, उनको फिल्टर करने के लिए घर में तीन एयर प्यूरीफायर लगे हैं।
लेकिन मोनू के घर में ऐसा कुछ नहीं लगा हुआ है। वह यमुना के किनारे एक झोपडी में रहते हैं। घर खुला-खुला है। घर के आसपास प्रदूषण है। घर में खाना भी लकड़ियों को जलाकर बनाया जाता है। मोनू जहरीली हवा में सांस लेते हैं। आज की सुबह मोनू अपने खुले हुए घर की चौखट पर हाथ में चाय लिए बैठे बाहर अपने भाई को देख रहे हैं, जो कुल्हाड़ी से खाना बनाने के लिए लकड़ियों को काट रहा है।
भारत में पिछले साल यानी 2019 में सभी रिस्क फैक्टर्स में से जहरीली या प्रदूषित हवा सबसे ज्यादा जानलेवा साबित हुई है। लेकिन सभी को इससे एक जैसा रिस्क नहीं है। जो लोग सक्षम हैं और अच्छे घरों में रहते हैं, उन्हें रिस्क कम है और जो लोग खुले में या झुग्गियों में रहने को मजबूर हैं, उन्हें इससे ज्यादा रिस्क है।
दिल्ली में गरीब घरों के बच्चे अपना ज्यादा समय आउटडोर में गुजारते हैं। ज्यादातर परिवारों में खाना बनाने के लिए लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है। गरीब लोग एयर-फिल्टर अफोर्ड नहीं कर सकते जो कि दिल्ली में रह रहे सक्षम लोगों के घरों में बहुत आम हो चुका है। और सब तो छोड़िये गरीब एयर पॉल्यूशन के बारे में सोचते ही नहीं, उन्हें पता है कि उन्हें रोटी की तलाश में दिन भर सड़कों पर ही दौड़ना है।
पैसे से खरीदी जा सकती है साफ हवा
एयर प्यूरीफायर काफी महंगे आते हैं। गरीब तो छोड़िए लोअर मिडिल क्लास भी इसके बारे में सोच नहीं सकता। अगर किसी तरह से ले भी लिया तो इलेक्ट्रिक बिल भरना मुश्किल हो जाएगा। दूसरी चुनौती यह है कि एयर प्यूरीफायर एक अच्छे और ठीक से सील्ड रूम में ही लग सकता है। यानी गरीबों के लिए काफी दूर की कौड़ी है एयर प्यूरीफायर।
मोनू के आसपास एक दिन में आम्या से 4 गुना ज्यादा प्रदूषित हवा एक्सपोज की गई। मोनू जैसे दिल्ली में रह रहे लाखों गरीब बच्चों की लाइफ इस प्रदूषण से आम्या की तुलना में कम-से-कम 5 साल कम हो सकती है। यानी कि दिल्ली में साफ हवा के लिए पैसों की जरूरत है, जो गरीबों के पास नहीं है।
लेकिन मोनू के घर में ऐसा कुछ नहीं लगा हुआ है। वह यमुना के किनारे एक झोपडी में रहते हैं। घर खुला-खुला है। घर के आसपास प्रदूषण है। घर में खाना भी लकड़ियों को जलाकर बनाया जाता है। मोनू जहरीली हवा में सांस लेते हैं। आज की सुबह मोनू अपने खुले हुए घर की चौखट पर हाथ में चाय लिए बैठे बाहर अपने भाई को देख रहे हैं, जो कुल्हाड़ी से खाना बनाने के लिए लकड़ियों को काट रहा है।
भारत में पिछले साल यानी 2019 में सभी रिस्क फैक्टर्स में से जहरीली या प्रदूषित हवा सबसे ज्यादा जानलेवा साबित हुई है। लेकिन सभी को इससे एक जैसा रिस्क नहीं है। जो लोग सक्षम हैं और अच्छे घरों में रहते हैं, उन्हें रिस्क कम है और जो लोग खुले में या झुग्गियों में रहने को मजबूर हैं, उन्हें इससे ज्यादा रिस्क है।
दिल्ली में गरीब घरों के बच्चे अपना ज्यादा समय आउटडोर में गुजारते हैं। ज्यादातर परिवारों में खाना बनाने के लिए लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है। गरीब लोग एयर-फिल्टर अफोर्ड नहीं कर सकते जो कि दिल्ली में रह रहे सक्षम लोगों के घरों में बहुत आम हो चुका है। और सब तो छोड़िये गरीब एयर पॉल्यूशन के बारे में सोचते ही नहीं, उन्हें पता है कि उन्हें रोटी की तलाश में दिन भर सड़कों पर ही दौड़ना है।
पैसे से खरीदी जा सकती है साफ हवा
एयर प्यूरीफायर काफी महंगे आते हैं। गरीब तो छोड़िए लोअर मिडिल क्लास भी इसके बारे में सोच नहीं सकता। अगर किसी तरह से ले भी लिया तो इलेक्ट्रिक बिल भरना मुश्किल हो जाएगा। दूसरी चुनौती यह है कि एयर प्यूरीफायर एक अच्छे और ठीक से सील्ड रूम में ही लग सकता है। यानी गरीबों के लिए काफी दूर की कौड़ी है एयर प्यूरीफायर।
मोनू के आसपास एक दिन में आम्या से 4 गुना ज्यादा प्रदूषित हवा एक्सपोज की गई। मोनू जैसे दिल्ली में रह रहे लाखों गरीब बच्चों की लाइफ इस प्रदूषण से आम्या की तुलना में कम-से-कम 5 साल कम हो सकती है। यानी कि दिल्ली में साफ हवा के लिए पैसों की जरूरत है, जो गरीबों के पास नहीं है।
कारों में स्मॉग का खतरा कम, लेकिन जिनके पास कार नहीं उनका क्या?
दिल्ली का जहरीला स्मॉग सबके लिए खतरनाक है, लेकिन बंद गाड़ियों की तुलना में बाइक, साइकिल और पैदल वालों का पॉल्यूशन एक्सपोजर दोगुना होता है। यानी इनपर असर दोगुना होता है।
मोनू हर सुबह 5 मिनट धूल वाली सड़क पर साइकल चलाकर अपने स्कूल पहुंचते हैं। जो एक मेट्रो अंडरब्रिज के नीचे खुले में मौजूद है। मोनू को फिजिकल एक्टिविटी खूब पसंद है और वह इंडियन आर्मी में ऑफिसर बनना चाहते हैं।
आम्या को भी स्पोर्ट पसंद है वह सिंगर बनना चाहती हैं। वह अपनी मां के साथ एक एयर-कंडीशन ह्यूंडई कार में स्कूल जाती हैं। जाहिर है आम्या की तुलना में मोनू को दोगुना रिस्क है।
कारों में स्मॉग का खतरा कम, लेकिन जिनके पास कार नहीं उनका क्या?
दिल्ली का जहरीला स्मॉग सबके लिए खतरनाक है, लेकिन बंद गाड़ियों की तुलना में बाइक, साइकिल और पैदल वालों का पॉल्यूशन एक्सपोजर दोगुना होता है। यानी इनपर असर दोगुना होता है।
मोनू हर सुबह 5 मिनट धूल वाली सड़क पर साइकल चलाकर अपने स्कूल पहुंचते हैं। जो एक मेट्रो अंडरब्रिज के नीचे खुले में मौजूद है। मोनू को फिजिकल एक्टिविटी खूब पसंद है और वह इंडियन आर्मी में ऑफिसर बनना चाहते हैं।
आम्या को भी स्पोर्ट पसंद है वह सिंगर बनना चाहती हैं। वह अपनी मां के साथ एक एयर-कंडीशन ह्यूंडई कार में स्कूल जाती हैं। जाहिर है आम्या की तुलना में मोनू को दोगुना रिस्क है।
कारों में स्मॉग का खतरा कम, लेकिन जिनके पास कार नहीं उनका क्या?
दिल्ली का जहरीला स्मॉग सबके लिए खतरनाक है, लेकिन बंद गाड़ियों की तुलना में बाइक, साइकिल और पैदल वालों का पॉल्यूशन एक्सपोजर दोगुना होता है। यानी इनपर असर दोगुना होता है।
मोनू हर सुबह 5 मिनट धूल वाली सड़क पर साइकल चलाकर अपने स्कूल पहुंचते हैं। जो एक मेट्रो अंडरब्रिज के नीचे खुले में मौजूद है। मोनू को फिजिकल एक्टिविटी खूब पसंद है और वह इंडियन आर्मी में ऑफिसर बनना चाहते हैं।
आम्या को भी स्पोर्ट पसंद है वह सिंगर बनना चाहती हैं। वह अपनी मां के साथ एक एयर-कंडीशन ह्यूंडई कार में स्कूल जाती हैं। जाहिर है आम्या की तुलना में मोनू को दोगुना रिस्क है।
आम्या के स्कूल में एक बहुत बड़ी एयर प्यूरीफायर मशीन लगी है। जो हर क्लास रूम, कॉमन एरिया और ऑडिटोरियम से कनेक्टेड है। जो बाहर से आने वाली जहरीली हवा में मौजूद खतरनाक पार्टिकल्स को फिल्टर करती है। इससे स्कूल के वातावरण में मौजूद सांस लेने की हवा साफ रहती है।
मोनू के उलट आम्या के घर से लेकर स्कूल तक जहरीली हवा से बचने की पूरी व्यवस्था है। जिस वक्त आम्या और मोनू अपनी क्लास अटेंड कर रहे होते हैं, उस वक्त आम्या पर पॉल्यूशन एक्सपोजर 23 होता है और मोनू पर पॉल्यूशन एक्सपोजर लगभग 4 गुना ज्यादा 91 रहता है।
एयर के साथ नॉइज पॉल्यूशन भी
जहां मोनू का स्कूल खुले में है वहीं आम्या का स्कूल पूरी तरह से सील है। आम्या के स्कूल में लगा एयर प्यूरीफायर कितनी हवा साफ कर रहा है और क्लासरूम में एयर क्वालिटी क्या है? इसे मॉनिटर करने के लिए सभी टीचर्स के मोबाइल में एक ऐप है, जिसके जरिए टीचर्स पॉल्यूशन के स्तर को लगातार चेक करते रहते हैं।
खुले में स्कूल होने के कारण न केवल एयर बल्कि नॉइज पॉल्यूशन भी मोनू जैसों की जिंदगी का हिस्सा है। स्कूल के ऊपर से मेट्रो, सामने से दिल्ली की सड़कों पर हॉर्न बजाकर निकलती हजारों गाड़ियों का शोर ऐसे बच्चों के लिए बहुत आम है।
एयर के साथ नॉइज पॉल्यूशन भी
जहां मोनू का स्कूल खुले में है वहीं आम्या का स्कूल पूरी तरह से सील है। आम्या के स्कूल में लगा एयर प्यूरीफायर कितनी हवा साफ कर रहा है और क्लासरूम में एयर क्वालिटी क्या है? इसे मॉनिटर करने के लिए सभी टीचर्स के मोबाइल में एक ऐप है, जिसके जरिए टीचर्स पॉल्यूशन के स्तर को लगातार चेक करते रहते हैं।
खुले में स्कूल होने के कारण न केवल एयर बल्कि नॉइज पॉल्यूशन भी मोनू जैसों की जिंदगी का हिस्सा है। स्कूल के ऊपर से मेट्रो, सामने से दिल्ली की सड़कों पर हॉर्न बजाकर निकलती हजारों गाड़ियों का शोर ऐसे बच्चों के लिए बहुत आम है।
पॉल्यूशन को लेकर आम्या और मोनू की सोच एक जैसी
मोनू का कहना है, यह एयर पॉल्यूशन घटने के बजाए बढ़ रहा है और यह बढ़ता रहेगा। आज अगर यह 10 को बीमार कर रहा है तो कल 20 को बीमार करेगा। और सब यही कहते रहेंगे कि इसकी वजह पॉल्यूशन है। हमें वजह पता है लेकिन हम कुछ नहीं कर रहे हैं। आम्या कहती हैं कि गवर्नमेंट को सिर्फ ब्लेम किया जाता है, जबकि इस समस्या का समाधान किसी एक पास नहीं हो सकता। इसमें हम सबको लगना होगा।
विडंबना यह है कि आम्या और मोनू पॉल्यूशन की रोकथाम को लेकर लगभग एक जैसी सोच रखते हैं लेकिन इसका ज्यादा रिस्क सिर्फ मोनू के हिस्से है।
दोपहर के बाद दिल्ली में थम जाता है पॉल्यूशन
मोनू लंच के लिए स्कूल से घर जाते हैं और लंच करने के बाद वह एक दूसरे स्कूल में क्लास लेने जाते हैं। जबकि आम्या अपने स्कूल में ही लंच करती हैं। लंच के दौरान सुबह की ट्रैफिक से निकला हुआ पॉल्यूशन कम हो जाता है। हवा साफ होने से स्मॉग भी लगभग छट जाता है। इसलिए इस दौरान पॉल्यूशन का स्तर कम रहता है। लंच के दौरान आम्या के आसपास पॉल्यूशन का एक्सपोजर 36 जबकि मोनू के आस-पास पॉल्यूशन का एक्सपोजर 72 रहता है।
शाम को जहरीली होने लगती है दिल्ली की हवा
स्कूल खत्म होने होने के बाद आम्या और मोनू अपने घर वापस आते हैं और अपने होम वर्क में लग जाते हैं। उस दौरान दिल्ली में ट्रैफिक फिर बढ़ जाती है, मौसम में नमी हो जाती है और पॉल्यूशन का स्तर और भी बढ़ जाता है। इस दौरान मोनू के आसपास पॉल्यूशन का स्तर 262 होता है, जबकि आम्या के आसपास पॉल्यूशन का स्तर 44-45 होता है।
मोनू के घर में इंटरनल पॉल्यूशन भी होता है, क्योंकि उनकी मां लकड़ी से खाना बनाती हैं। जबकि आम्या के घर में इंटरनल पॉल्यूशन लेवल बहुत कम होता है, क्योंकि आम्या का कुक गैस स्टोव से खाना बनाता है। मोनू अपनी मां के पास लकड़ी के जलते हुए चूल्हे के सामने डिनर करते हैं, जबकि आम्या एयर प्यूरीफायर के सामने लगे डाइनिंग टेबल पर। खाना बनाने के दौरान मोनू की मां के आसपास पॉल्यूशन एक्सपोजर 276 रहता है, जबकि आम्या के कुक के आसपास यह एक्सपोजर 100 या 100 से कम रहता है।
सोने के वक्त दिल्ली में सबसे ज्यादा जहरीली हो जाती है हवा
जब मोनू अपनी मच्छरदानी को फिर से अपने बिस्तर पर लगाकर लेटते हैं, तो उस वक्त तक दिल्ली का पॉल्यूशन अपने सबाब पर होता है और स्मॉग फिर से छाने लगता है। जिनके पास एयर प्यूरीफायर और अच्छे घर हैं, वो तो बच जाते हैं लेकिन मोनू की तरह लाखों लोग और बच्चे तो इसी जहरीली हवा में गहरी नींद लेने को मजबूर हैं। इस दौरान मोनू के आसपास पॉल्यूशन आम्या की तुलना में दोगुना है।
यह बात साफ है दिल्ली जैसे भारत के तमाम शहरों में आज करोड़ों लोग जहरीली हवा में गुजर-बसर को मजबूर हैं। साफ हवा अब देश के करोड़ों आबादी के लिए पैसे का सौदा बन चुकी है। अमीर हो तो खरीद लो गरीब हो तो जहरीली हवा में सांस लो।
एक ही शहर दिल्ली में कुछ घंटे की दूरी पर रहने वाले मोनू और आम्या कभी नहीं मिले, लेकिन दोनों एक दूसरे को जानते हैं। आम्या जानती हैं कि मोनू की मां हवा खरीद नहीं सकतीं जबकि मोनू जानते हैं कि आम्या की मां को जहरीली हवा से आम्या को बचाने के लिए लाखों पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। मोनू आम्या के लिए हमारा साथ दे रहे थे जिससे कि आम्या को हवा खरीदनी न पड़े और आम्या मोनू के लिए जिससे कि मोनू जहरीली हवा से छुटकारा पा सकें।
सोने के वक्त दिल्ली में सबसे ज्यादा जहरीली हो जाती है हवा
जब मोनू अपनी मच्छरदानी को फिर से अपने बिस्तर पर लगाकर लेटते हैं, तो उस वक्त तक दिल्ली का पॉल्यूशन अपने सबाब पर होता है और स्मॉग फिर से छाने लगता है। जिनके पास एयर प्यूरीफायर और अच्छे घर हैं, वो तो बच जाते हैं लेकिन मोनू की तरह लाखों लोग और बच्चे तो इसी जहरीली हवा में गहरी नींद लेने को मजबूर हैं। इस दौरान मोनू के आसपास पॉल्यूशन आम्या की तुलना में दोगुना है।
यह बात साफ है दिल्ली जैसे भारत के तमाम शहरों में आज करोड़ों लोग जहरीली हवा में गुजर-बसर को मजबूर हैं। साफ हवा अब देश के करोड़ों आबादी के लिए पैसे का सौदा बन चुकी है। अमीर हो तो खरीद लो गरीब हो तो जहरीली हवा में सांस लो।
एक ही शहर दिल्ली में कुछ घंटे की दूरी पर रहने वाले मोनू और आम्या कभी नहीं मिले, लेकिन दोनों एक दूसरे को जानते हैं। आम्या जानती हैं कि मोनू की मां हवा खरीद नहीं सकतीं जबकि मोनू जानते हैं कि आम्या की मां को जहरीली हवा से आम्या को बचाने के लिए लाखों पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। मोनू आम्या के लिए हमारा साथ दे रहे थे जिससे कि आम्या को हवा खरीदनी न पड़े और आम्या मोनू के लिए जिससे कि मोनू जहरीली हवा से छुटकारा पा सकें।
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Source: DainikBhaskar.com