नए कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनरत किसान 20 दिन बाद भी धरने पर बैठे हुए हैं। किसान संगठनों की मांग है कि इन तीनों कानूनों को वापस लिया जाए। वहीं केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि कानून वापस नहीं होगा। सरकार और किसान नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन पर सुनवाई की थी और आज कोर्ट के आदेशानुसार कमेटी का गठन किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने संभाली कमान
किसान आंदोलन के 20 दिन गुजर चुके हैं। सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बात बेनतीजा होने के बाद बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के आंदोलन को लेकर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर सरकार और किसानों के बीच समझौता कराने की पहल की है जिसके लिए कमेटी का गठन किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को फिर इस पर फिर सुनवाई होनी है।
आज होगी अहम सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई के दौरान कहा कि ये राष्ट्रीय स्तर का मसला है, ऐसे में इसमें आपसी सहमति होनी जरूरी है। अदालत की ओर से दिल्ली की सीमाओं और देश के अन्य हिस्सों में प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों की लिस्ट मांगी गई, जिससे पता चल सके कि बात किससे होनी है। देश के सर्वोच्च अदालत आज DMK के तिरुचि सिवा, आरजेडी के मनोज झा और छत्तीसगढ़ कांग्रेस के राकेश वैष्णव की अर्जी पर अदालत सुनवाई करेगी। इनकी मांग है कि कृषि कानूनों को रद्द किया जाए।
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किसान संघों ने नकारी कमेटी की सलाह
किसान संघों के नेताओं ने यह भी कहा है कि सरकार को संसद में ये कानून पारित करने से पहले किसानों और अन्य की एक समिति गठित करनी चाहिए थी। प्रदर्शन कर रहे 40 किसान संघों में शामिल राष्ट्रीय किसान मजदूर सभा के नेता अभिमन्यु कहार ने कहा कि वे लोग इस तरह की एक समिति गठित किए जाने के सरकार के प्रस्ताव को हाल ही में खारिज कर चुके हैं। उन्होने कहा कि न्यायालय द्वारा एक नई समिति गठित किया जाना कोई समाधान नहीं है।
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राजनीति भी चरम पर
संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य एवं स्वराज इंडिया पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने अपने एक ट्वीट में कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट यह फैसला कर सकता है कि ये कानून संवैधानिक है, या नहीं। लेकिन इनसे किसानों का हित होगा या नहीं, यह एक कानूनी मामला नहीं है। इसे किसानों और जनप्रतिनिधियों को ही सुलझाना होगा। समझौता करवाना अदालत का काम नहीं है। कमेटी के विचार (समिति गठित करने के प्रस्ताव) को किसान संगठन एक दिसंबर को ही खारिज कर चुके हैं।