Farmers Protest LIVE: आज भी किसानों ने जमीन पर बैठकर खाया अपना खाना – Navbharat Times

हाइलाइट्स:

  • नाराज किसानों के साथ शनिवार को 5वीं बार हो रही बैठक, पीएम मोदी ने भी मंत्रियों संग की मीटिंग
  • पीएम आवास पर बैठक में अमित शाह, राजनाथ सिंह, नरेंद्र सिंह तोमर, पीयूष गोयल भी रहे मौजूद
  • तोमर ने कहा, मुझे उम्मीद है कि किसान सकारात्मक तौर पर विचार करेंगे, मीटिंग में निष्कर्ष निकलेगा
  • किसान संगठन अपनी बात पर अड़े, कृषि कानूनों को वापस लेने से कम कुछ मंजूर नहीं

नई दिल्ली
नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर किसानों और केंद्र सरकार में टकराव बरकरार है। विज्ञान भवन में किसानों और सरकार के बीच आज पांचवें दौर की बातचीत चल रही है। किसानों ने साफ कर दिया है कि वे अपनी मांगों से टस से मस नहीं होंगे। शनिवार की बैठक में सरकार से दो टूक कह दिया गया कि अब आगे बातचीत नहीं होगी। इससे पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार सुबह कैबिनेट के वरिष्‍ठ साथियों को आवास पर बुलाया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कृषि नरेंद्र सिंह तोमर इस मीटिंग में मौजूद रहे। किसान आंदोलन से जुड़ी सभी ताजा अपडेट्स देखें…

@4 बजे अपडेट
सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय मंत्री सोम प्रकाश ने किसान नेताओं से कहा कि सरकार पंजाब की भावनाओं को समझती है और उनकी चिंताओं का समाधान करने के लिए तैयार है। उधर, किसान नेता आज की बैठक में भी कृषि कानूनों को रद्द किए जाने की मांग पर कायम हैं।

अब आगे सरकार से कोई बातचीत नहीं: किसान
पांचवें दौर की बैठक के दौरान, किसानों के प्रतिनिधियों ने केंद्र सरकार से पिछली बैठक का पॉइंटवाइज जवाब देने की मांग की। इसपर सरकार राजी हो गई है। सरकार अपने जवाब किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को उपलब्ध कराएगी। न्‍यूज एजेंसी ANI के मुताबिक, बैठक में किसानों ने कहा कि उन्‍हें इस पूरे विवाद का कोई हल/पक्‍का वादा चाहिए। उन्‍होंने कहा कि वे आगे चर्चा नहीं चाहते और यह भी नहीं जानना चाहते कि सरकार ने उनकी मांगों पर क्‍या फैसला किया है। इससे पहले, आजाद किसान संघर्ष समिति के पंजाब प्रमुख हरजिंदर सिंह टांडा ने ANI से बातचीत में कहा, “हम कानूनों का पूरी तरह से रोलबैक चाहते हैं। अगर सरकार हमारी मांग नहीं मानती तो हम धरना जारी रखेंगे।”

कुछ सुधारों को वापस ले सकती है सरकार
कृषि कानूनों पर मचे विवाद को देखते हुए केंद्र सरकार उसमें थोड़ा संशोधन कर सकती है। रॉयटर्स ने अधिकारियों के हवाले से जानकारी दी है कि सरकार समान अवसर बनाए रखने के लिए नई होलसेल मार्केट पर टैक्‍स लगाने पर विचार कर रही है। क्रेता और विक्रेताओं के बीच विवाद की स्थिति में सरकार किसानों को और ऊपरी अदालत में अपील की छूट दे सकती है।

सरकार को उम्‍मीद, आज निकल आएगा हल
किसान आंदोलन को विपक्ष का चौतरफा समर्थन मिलने से सरकार के लिए स्थिति विकट हो गई है। लेफ्ट दलों ने किसानों की मांगों को जायज ठहराया है। दूसरी तरफ, केंद्रीय कृषि राज्‍य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि आज की मीटिंग में किसानों के संदेहों को दूर किया जाएगा। उन्‍होंने कहा, “यह विपक्ष की राजनीति है। वे प्रदर्शन को और भड़का रहे हैं।’ उन्‍होंने उम्‍मीद जताई कि आज दोपहर होने वाली बैठक में कोई न कोई हल निकल आएगा और किसान आंदोलन वापस ले लेंगे।

दिल्‍ली के बॉर्डर्स पर जारी है किसानों का प्रदर्शन
हजारों किसानों ने दिल्‍ली की सीमाओं पर डेरा डाल रखा है। सिंघु बॉर्डर हो या फिर नोएडा से लगा चिल्‍ला बॉर्डर, किसान सड़कें जाम कर बैठे हुए हैं। चिल्ला बॉर्डर पर समाजवादी पार्टी के एक नेता किसानों के लिए खाने-पीने का सामान लेकर पहुंचे थे। किसानों ने किसी राजनीतिक पार्टी से मदद नहीं लेने की बात कहकर उन्हें वापस लौटाया।


नए कृषि कानून को लेकर किसानों को हैं ये 8 डर:

1. किसानों का मानना है कि कृषि बाजार और कंट्रैक्ट फार्मिंग पर कानून से बड़ी कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा। कृषि खरीद पर कंपनियों का नियंत्रण होगा। कृषि उत्पादों की सप्लाई और मूल्यों पर भी उनका कब्जा हो जाएगा। भंडारण, कोल्ड स्टोरेज, फूड प्रोसेसिंग और फसलों के ट्रांसपोटेशन पर भी एकाधिकार की आशंका। नए कानून से मंडी सिस्टम के खत्म हो जाएगा।

2. आवश्यक वस्तु कानून में संशोधन से जमाखोरी और ब्लैक मार्केटिंग को बढ़ावा मिलेगा। सभी शहरी और ग्रामीण गरीबों को बड़े किसानों और प्राइवेट फूड कॉर्पोरेशनों के हाथों में छोड़ देना होगा।

3. कृषि व्यापार कंपनियां, प्रोसेसिंग कंपनियां, होलसेलर्स, ऐक्सपोर्टर्स और बड़े रिटेलर्स अपने हिसाब से बाजार को चलाने की कोशिश करेंगे। इससे किसानों को नुकसान होगा।

4. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग वाले कानून से जमीन के मालिकाना हक खतरे में पड़ जाएगा। इससे कॉन्ट्रैक्ट और कंपनियों के बीच कर्ज का मकड़जाल फैलेगा। कर्ज वसूलने के लिए कंपनियों का अपना मैकनिजम होता है।












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5. किसान अपने हितों की रक्षा नहीं कर पाएंगे। ‘फ्रीडम ऑफ चॉइस’ के नाम पर बड़े कारोबारी इसका लाभ उठाएंगे।

6. इस कानून में विवादों के निपटारा के लिए SDM कोर्ट को फाइनल अथॉरिटी बनाया जा रहा है। किसानों की मांग है कि उन्हें उच्च अदालतों में अपील का अधिकार मिलना चाहिए।

7. कृषि अवशेषों के जलाने पर किसानों को सजा देने को लेकर भी किसानों में रोष है। किसानों का कहना है कि नए कानून में किसानों को आर्थिक तौर पर मजबूत किए बिना नियम बना दिए गए हैं।

8. प्रस्तावित इलेक्ट्रिसिटी (संशोधन) कानून के कारण किसानों को निजी बिजली कंपनियों के निर्धारित दर पर बिजली बिल देने को मजबूर होना पड़ेगा।

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