GDP in Q2: कोरोना से इकॉनमी का बुरा हाल, देश में आर्थिक मंदी की आहट – Navbharat Times

हाइलाइट्स:

  • दूसरी तिमाही में देश की जीडीपी में 7.5 फीसदी की गिरावट रही है
  • पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 फीसदी की ऐतिहासिक गिरावट आई थी
  • लगातार दो तिमाही में निगेटिव ग्रोथ को तकनीकी तौर पर मंदी माना जाता है

नई दिल्ली
सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही यानी जुलाई-सितंबर तिमाही के आंकड़े जारी कर दिए हैं। दूसरी तिमाही में देश की जीडीपी (GDP) में 7.5 फीसदी की गिरावट रही है। ये आंकडे पहली तिमाही के मुकाबले काफी बेहतर हैं। लेकिन लगातार दो तिमाही में निगेटिव ग्रोथ को तकनीकी तौर पर मंदी माना जाता है। कोविड-19 महामारी और इससे जुड़े लॉकडाउन के कारण पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 फीसदी की ऐतिहासिक गिरावट आई थी।

शुक्रवार शाम सरकार ने जीडीपी के आंकड़े जारी किए। पिछले 40 साल में पहली बार जीडीपी में इतनी कमी आई है जिसके चलते आंकड़ों पर सबकी नजरें टिकी हुई थीं। लगातार दो तिमाही जीडीपी में कमी आने से देश मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही में टेक्निकल रिसेशन के दौर में चला गया है। यानी सरकार ने आधिकारिक तौर पर मंदी को स्वीकार कर लिया है। हालांकि आरबीआई गवर्नर समेत दुनिया भर की रेटिंग एजेंसी का मानना है कि भारत की विकासदर आने वाले समय में बेहतर हो जाएगी।

GDP में दूसरी तिमाही में 7.5 फीसदी की गिरावट

यदि किसी अर्थव्यवस्था की विकास दर या जीडीपी तिमाही-दर-तिमाही लगातार घट रही है, तो इसे आर्थिक मंदी का बड़ा संकेत माना जाता है। अर्थव्यवस्था के मंदी की तरफ बढ़ने पर आर्थिक गतिविधियों में चौतरफा गिरावट आती है। ऐसे कई दूसरे पैमाने भी हैं, जो अर्थव्यवस्था के मंदी की तरफ बढ़ने का संकेत देते हैं। इससे पहले आर्थिक मंदी ने साल 2007-2009 में पूरी दुनिया में तांडव मचाया था। यह साल 1930 की मंदी के बाद सबसे बड़ा आर्थिक संकट था। जानते हैं क्या हैं मंदी के संकेत-

1. आर्थिक विकास दर का लगातार गिरना
यदि किसी अर्थव्यवस्था की विकास दर या जीडीपी तिमाही-दर-तिमाही लगातार घट रही है, तो इसे आर्थिक मंदी का बड़ा संकेत माना जाता है। किसी देश की अर्थव्यवस्था या किसी खास क्षेत्र के उत्पादन में बढ़ोतरी की दर को विकास दर कहा जाता है। यदि देश की विकास दर का जिक्र हो रहा हो, तो इसका मतलब देश की अर्थव्यवस्था या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ने की रफ्तार से है। जीडीपी एक निर्धारित अवधि में किसी देश में बने सभी उत्पादों और सेवाओं के मूल्य का जोड़ है।

2. खपत में गिरावट
आर्थिक मंदी का एक दूसरा बड़ा संकेत यह है कि लोग खपत यानी कंजम्प्शन कम कर देते हैं। इस दौरान बिस्कुट, तेल, साबुन, कपड़ा, धातु जैसी सामान्य चीजों के साथ-साथ घरों और वाहनों की बिक्री घट जाती है। दरअसल, मंदी के दौरान लोग जरूरत की चीजों पर खर्च को भी काबू में करने का प्रयास करते हैं। कुछ जानकार वाहनों की बिक्री घटने को मंदी का शुरुआती संकेत मानते हैं। उनका तर्क है कि जब लोगों के पास अतिरिक्त पैसा होता है, तभी वे गाड़ी खरीदना पसंद करते हैं। यदि गाड़ियों की बिक्री कम हो रही है, इसका अर्थ है कि लोगों के पैसा कम पैसा बच रहा है।

जानिए Deloitte के सीईओ पुनीत रंजन को, जिनकी 5 बातों का लोहा मानने को तैयार है पूरी दुनिया

3. औद्योगिक उत्पादन में गिरावट
अर्थव्यवस्था में यदि उद्योग का पहिया रुकेगा तो नए उत्पाद नहीं बनेंगे। इसमें निजी सेक्टर की बड़ी भूमिका होती है। मंदी के दौर में उद्योगों का उत्पादन कम हो जाता। मिलों और फैक्ट्रियों पर ताले लग जाते हैं, क्योंकि बाजार में बिक्री घट जाती है। यदि बाजार में औद्योगिक उत्पादन कम होता है तो कई सेवाएं भी प्रभावित होती है। इसमें माल ढुलाई, बीमा, गोदाम, वितरण जैसी तमाम सेवाएं शामिल हैं। कई कारोबार जैसे टेलिकॉम, टूरिज्म सिर्फ सेवा आधारित हैं, मगर व्यापक रूप से बिक्री घटने पर उनका बिजनेस भी प्रभावित होता है।

4. बेरोजगारी बढ़ जाती है
अर्थव्यवस्था में मंदी आने पर रोजगार के अवसर घट जाते हैं। उत्पादन न होने की वजह से उद्योग बंद हो जाते हैं, ढुलाई नहीं होती है, बिक्री ठप पड़ जाती है। इसके चलते कंपनियां कर्मचारियों की छंटनी करने लगती हैं। इससे अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी बढ़ जाती है। कोरोना के कारण इकॉनमी बुरी तरह प्रभावित हुई है और कंपनियों ने बड़ी संख्या में छंटनी की है।

5. बचत और निवेश में कमी
कमाई की रकम से खर्च निकाल दें तो लोगों के पास जो पैसा बचेगा वह बचत के लिए इस्तेमाल होगा। लोग उसका निवेश भी करते हैं। बैंक में रखा पैसा भी इसी दायरे में आता है। मंदी के दौर में निवेश कम हो जाता है क्योंकि लोग कम कमाते हैं। इस स्थिति में उनकी खरीदने की क्षमता घट जाती है और वे बचत भी कम कर पाते हैं. इससे अर्थव्यवस्था में पैसे का प्रवाह घट जाता है।

LTC Cash voucher scheme: बीमा प्रीमियम का भी मिलेगा फायदा

6. कर्ज की मांग घट जाती है
लोग जब कम बचाएंगे, तो वे बैंक या निवेश के अन्य साधनों में भी कम पैसा लगाएंगे। ऐसे में बैंकों या वित्तीय संस्थानों के पास कर्ज देने के लिए पैसा घट जाएगा। अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए कर्ज की मांग और आपूर्ति, दोनों होना जरूरी है। इसका दूसरा पहलू है कि जब कम बिक्री के चलते उद्योग उत्पादन घटा रहे हैं, तो वे कर्ज क्यों लेंगे। कर्ज की मांग न होने पर भी कर्ज चक्र प्रभावित होगा। इसलिए कर्ज की मांग और आपूर्ति, दोनों की ही गिरावट को मंदी का बड़ा संकेत माना जा सकता है।

7. शेयर बाजार में गिरावट
शेयर बाजार में उन्हीं कंपनियों के शेयर बढ़ते हैं, जिनकी कमाई और मुनाफा बढ़ रहा होता है। यदि कंपनियों की कमाई का अनुमान लगातार कम हो रहे हैं और वे उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहीं, तो इसे भी आर्थिक मंदी के रूप में ही देखा जाता है। उनका मार्जिन, मुनाफा और प्रदर्शन लगातार घटता है। शेयर बाजार भी निवेशक का एक माध्यम है। लोगों के पास पैसा कम होगा, तो वे बाजार में निवेश भी कम कर देंगे। इस वजह से भी शेयरों के दाम गिर सकते हैं।

8. घटती लिक्विडिटी
अर्थव्यवस्था में जब लिक्विडिटी घटती है, तो इसे भी आर्थिक मंदी का संकेत माना जा सकता है। इसे सामान्य भाषा से समझें, तो लोग पैसा खर्च करने या निवेश करने से परहेज करते हैं ताकि उसका इस्तेमाल बुरे वक्त में कर सकें। इसलिए वे पैसा अपने पास रखते हैं। मौजूदा हालात भी कुछ ऐसी ही हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो अर्थव्यवस्था की मंदी के सभी कारणों का एक-दूसरे से ताल्लुक है। इनमें से कई कारण मौजूदा समय में हमारी अर्थव्यवस्था में मौजूद हैं। इसी वजह से लोगों के बीच आर्थिक मंदी का भय लगातार घर कर रहा है।

Related posts