शोध के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।
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शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। इसके पीछे कारण यह है कि चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। खीर की रस्म के अलावा शरद पूर्णिमा के दिन को लेकर एक और मान्यता है। कहते हैं कि इस दिन प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। इसके लिए रात 10 से 12 बजे तक का समय मुफीद होता है। मान्यता है कि इस समय सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।जानें किस तरह शुरू हुई करवा चौथ व्रत की परंपरा, किसने रखा था सबसे पहले यह व्रत