पुष्पम प्रिया बोलीं- अगर ये देखना है कि बिहार के नेताओं ने लोकतंत्र को कितना चौपट किया तो एक बार चुनाव लड़िए

पुष्पम प्रिया चौधरी। लंदन से पढ़ाई-लिखाई हुई। बिहार से ताल्लुक रखती हैं। इस साल मार्च में बिहार के अखबारों के पहले पन्ने पर एक ऐड छपा। ऐड में खुद पुष्पम प्रिया चौधरी थीं और लिखा था- बिहार में मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं। इसके बाद पार्टी बनी। नाम रखा गया प्लूरल्स पार्टी। अभी वो घूम-घूमकर अपने उम्मीदवारों के लिए प्रचार कर रही हैं। इसी दौरान औरंगाबाद के नबीनगर में हमारी उनसे बातचीत हुई। पढ़िए इंटरव्यू…

आप 6-7 महीनों से बिहार में सक्रिय हैं। कई इलाकों में घूम चुकी हैं। आपके लिए इस चुनाव के मुद्दे क्या हैं?

मैं अभी ही बिहार नहीं घूम रही। एक तो मैं बिहार में पैदा हुई हूं। यहीं पर बड़ी भी हुई और मेरा जो रिसर्च एरिया था, वो बिहार ही था। पिछले पंद्रह साल में बिहार को लेकर जो नीतियां बनी हैं, उन सब को मैंने पढ़ा है। वो सब क्यों फेल हुई हैं वो भी पढ़ा है। वो सारी प्राइमरी रिसर्च वाली नीतियां होती हैं। लोगों से बात करके उसे तैयार किया जाता है। जब भी हम किसी फेल्ड पॉलिसी की बात करते हैं तो उसमें बिहार का जिक्र आता है। ये समस्याएं तो मुझे पता थीं। काम बस इतना है कि लोगों को बताना है कि इनके बारे में मुझे पता है और मैं ठीक कर सकती हूं। यही बताने के लिए घूम रही हूं।

आपने आते ही खुद को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया। ये कॉन्फिडेंस है या ओवर कॉन्फिडेंस?

बिहार में बहुत सारी चीजें हैं जिसका अनुभव किया है। देखा है कि चीजें कैसे अफेक्ट होती है यहां पर। मैं जब भी बात करती हूं तो लंदन का जिक्र आ जाता है। आना चाहिए क्योंकि वो भी हमारे ही प्लेनेट का एक हिस्सा है। वहां जिंदगी बहुत आसान है। खुशनुमा है। जब वहां ऐसा है तो दुनिया के किसी भी कोने में बसे देश या राज्य में भी ऐसा हो सकता है। मैं ये बात पहली बार कह रही हूं। यहां लोगों की जिंदगी बहुत खराब है। उनकी स्थिति खराब है।

यहां कोई लोकतंत्र नहीं है। कोई संस्था नहीं है। कुछ ही दिन पहले मैंने कहा था कि अगर आप बिहार में रहते हैं। आपके पास किसी का नंबर नहीं है, पहुंच नहीं है तो आप तड़प-तड़प के मर जाएंगे। कोई आपकी सुनने वाला नहीं है। पूरा एक तंत्र है जो चल रहा है। आम आदमी के खिलाफ चल रहा है। यही सब देख-देख कर हिम्मत मिलती है।

आपको नहीं लगता कि बिहार जैसे राज्य में चुनाव लड़ने के लिए आपने खुद को जितना समय दिया है वो कम है?

मार्च में अगर लॉकडाउन नहीं हुआ होता तो काफी समय था। इस बारे में हमने सोचा नहीं था। हमने क्या दुनिया में किसी ने सोचा नहीं था। उस लॉकडाउन में इन लोगों ने अपने लिए एक अवसर तलाश कर लिया। पूरे देश से लॉकडाउन हट गया था तब भी हमारे सीएम नीतीश कुमार ने लॉकडाउन को बढ़ा दिया। बिहार में पूरी तरह से लॉकडाउन तब हटा, जब चुनाव की घोषणा हो गई। जब इन सब ने अपने लिए चॉपर के इंतजाम कर लिए तो सारी बंदिशें हट गईं।

हमें तो अभी भी दिक्कत हो रही है। परमिशन नहीं मिल रही है। हमारे साथ बहुत सी अनफेयर चीजें हो रही हैं। इसी अनफेयरनेस को खत्म करने के लिए ये सब करना जरूरी था। हमने 243 उम्मीदवार उतारने का सोचा था लेकिन नहीं हो पाया। इसलिए मैं कह रही हूं कि अगर आपको देखना है कि इन्होंने लोकतंत्र को कितना चौपट कर दिया है तो एक चुनाव लड़ लीजिए।

अभी जो आरक्षण व्यवस्था है उस पर आपकी क्या राय है?

ये मैंने पहले भी कहा है कि ये आजकल के नकली नेता कैसे हैं, जैसे भी हैं। ये आरक्षण की व्यवस्था जब लागू हुई थी तो हमारे देश के कुछ बहुत समझदार लोगों ने बैठकर बनाई थी। मैं इस व्यवस्था से बिल्कुल सहमत हूं। अम्बेडकर ने तो मेरे ही कालेज में पढ़ाई की थी। यहां पर उनका कितना सम्मान है वो तो दिखता ही है। जगह-जगह बस मूर्तियां बनी हैं। कई बार तो मैं उससे धूल हटा चुकी हूं। हमारे कैंपस में उनका बड़ा सा स्टैच्यू लगा है और मैं उसी सोच में दखल रखती हूं।

उन्होंने एबॉलिशन ऑफ कास्ट सिस्टम के बारे में सोचा था। मैं भी वही सोच रखती हूं। उन्होंने एक किताब भी लिखी थी कि कास्ट सिस्टम खत्म होना चाहिए। आरक्षण की व्यवस्था हुई थी ताकि समाज के जिन वर्गों के पास सामाजिक और आर्थिक मजबूती नहीं है वो उन्हें आरक्षण से मिलेगी। जिन लोगों ने तब ये व्यवस्था बनाई थी उन्होंने ये नहीं सोचा होगा कि आगे चलकर इसपर केवल आइडेंटिटी पॉलिटिक्स होगी और प्रतिनिधित्व खत्म हो जाएगा।

एक सीधा सवाल, क्या आप आरक्षण खत्म करने के पक्ष में हैं?

नहीं। मैंने अभी सीधा ही तो जवाब दिया। बिलकुल नहीं। ये किसी खास ग्रुप से संबंधित नहीं है। मेरी सोच ये है कि हर व्यक्ति को बराबर होने की जरूरत है। जो मैंने आपको तंत्र के बारे में बताया। वो क्यों बताया? इसीलिए क्योंकि असमानता बहुत ज्यादा है। सबको बराबर होने की पहली शर्त यही है कि हर तरह की डेपरिवेशन को खत्म करना होगा और मैं बिल्कुल इसके पक्ष में हूं।

अगर आप चुनाव हार जाती हैं, आपका एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीतता है तो क्या करेंगी? क्या उसकी कोई प्लानिंग है? क्या आप तब भी बिहार में रहकर संघर्ष करेंगी?

ये बहुत सारे लोगों को लगता है। इस पूरी चुनावी प्रक्रिया में हमारा रजिस्ट्रेशन भी बहुत लेट से हुआ। इसमें भी कई तरह से रोक-टोक करने की कोशिश हुई। ऐसा सोचने वाले आप अकेले नहीं हैं। बहुत से लोग सोच रहे हैं कि ये चुनाव नहीं लड़ सकीं तो चली जाएंगी। अब लोग सोच रहे हैं कि हार गईं तो चली जाएंगी। मैंने आज उन सब को बता दूं कि मैं कहीं नहीं जाने वाली। उनको भी मैसेज मिल जाना चाहिए कि मैं यहीं हूं।

आपने मंच से कहा कि फिलहाल बिहार में मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार हैं। एक ने पंद्रह साल शासन किया है और बिहार की क्या हालत की है वो आप देख रहे हैं। दूसरे जो हैं उन्हें तो मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी नहीं होना चाहिए था। ये दूसरे कौन हैं और अपने ऐसा क्यों कहा?

निश्चित तौर पर मैंने ये आरजेडी नेता तेजस्वी यादव जी के बारे में कह रही हूं। लालू जी नेता थे राजद के। उनके लिए बहुत से लोगों बहुत दिनों तक झंडा ढोया है। संघर्ष किया है। तो कायदे से लालू जी की विरासत इन कार्यकर्ताओं को मिलनी चाहिए थी। इन में से किसी एक कार्यकर्ता को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाते।

आप लालू यादव के बेटे हैं, एक खास परिवार में पैदा हुए और इस वजह से बिहार के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हो गए तो ये लोकतंत्र पर बड़ा सवाल है। इसका मतलब है कि लोकतंत्र है ही नहीं, राजतंत्र है। तो इन चीजों को खत्म करना चाहिए और उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार होना भी नहीं चाहिए।

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Source: DainikBhaskar.com

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