आजादी के बाद यहां सड़क नहीं बनी, दूसरे गांव वाले बेटी की शादी करने से डरते हैं, 10 साल पहले नीतीश ने कहा था- यहां दो महीने में रोड बनवा देंगे

बक्सर जिले की मझवारी पंचायत में एक गांव है मुकुंदपुर। करीब 1400 लोगों की आबादी। सभी के सभी महादलित और पिछड़ा वर्ग के लोग, सवर्ण एक भी नहीं। भोजपुर मेन रोड से गांव की तरफ अभी मुड़ा ही था कि बाइक चलाते हुए मुझे अपनी नाक बंद करनी पड़ी। वजह रोड के दोनों तरफ जलजमाव, जिसमें 4-5 मवेशियों की लाशें पड़ी हैं। भयंकर बदबू आ रही है। आते-जाते लोग नाक ढंककर रास्ते से गुजर रहे हैं।

थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर एक महिला मिली, जो सिर पर कुछ सामान लेकर जा रही थी। उनसे पूछा कि मुकुंदपुर जाना है, हाथ उठाकर वो बोली, उका हऊवे न मुकुनपुर ह ( वो सामने मुकुंदपुर है)। जैसे ही गांव के अंदर जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ा बाइक खुद-ब-खुद रुक गई। सामने कोई रोड ही नहीं थी।

दोनों तरफ खेत, बीच में गड्ढों वाली उबड़-खाबड़ जमीन। साथ में एक मित्र भी थे, जो बाइक पर पीछे बैठे थे। उनसे कहा कि कोई सड़क तो है नहीं, जाएंगे कैसे? कहीं गलत रूट तो नहीं पकड़ लिया हमने। उन्होंने कहा, ‘कोई गलत रूट नहीं है, दिल बहलाने के लिए इसे सड़क ही समझ लें’।

बड़ी मुश्किल से गिरते-संभलते गांव पहुंचे। बीच-बीच में बाइक से उतरकर धक्के भी लगाना पड़ा। यह तब के हालात हैं, जब बरसात नहीं हो रही है। बारिश हो जाए तो समझिए गांव में लॉकडाउन ही लग गया। गांव में ज्यादातर घर मिट्टी के बने हैं या झोपड़ियां हैं, पक्के मकान कम ही हैं। 4×10 की एक छोटी सी झोपड़ी में एक बुजुर्ग बैठे हैं। हमें देखकर कुछ सोच में पड़ गए हैं।

परिचय देने के बाद पत्नी को आवाज देते हैं। वो इधर-उधर नजर दौड़ाती हैं कि कहीं कुछ बैठने के लिए मिल जाए! उनकी विवशता आंखों में साफ झलकती है। फिर हम लोग नीचे जमीन पर ही बैठ जाते हैं और उनसे बात करने लगते हैं। बुजुर्ग का नाम भुवनेश्वर साह है, उम्र करीब 70 साल होगी। गांव के लोग इन्हें भुनेसरी कहते हैं।

कुछ दिन पहले इनके भाई ने डंडे से मारकर हाथ-पैर तोड़ दिए थे, उसके साफ-साफ निशान अभी भी हैं, चल फिर नहीं पाते हैं। वृद्ध पत्नी ही इनका सहारा हैं।

70 साल के भुवनेश्वर के भाई ने डंडे से मारकर इनका हाथ-पैर तोड़ दिया था, उसके साफ-साफ निशान अभी भी हैं, चल फिर नहीं पाते हैं। वृद्धा पत्नी ही इनका सहारा हैं।

भुवनेश्वर को कई वर्षों से राशन नहीं मिला है। 400 रुपए वृद्धावस्था पेंशन मिलती है और उनकी पत्नी सरस्वती इधर-उधर से मांगकर कुछ राशन जुटाती हैं तो दोनों का खर्च चलता है। गांव के प्रधान या प्रशासन से इन्हें किसी तरह की मदद नहीं मिली है। कई बार इन्होंने दूसरे से प्रधान को फोन भी करवाया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। सरस्वती कहती हैं कि गांव में घूम कर मजदूरी से कुछ पैसे जुटाती हूं। उसमें से 50-100 रु. राशन बांटने वाले को देती हूं, तो मुझे राशन देता है।

पीएम आवास योजना के बारे में नहीं जानते

पीएम आवास योजना का तो ये नाम तक नहीं जानते हैं। भुवनेश्वर कहते हैं,’ हमनी के कउनो कोलोनी-वोलोनी नइखे मिलल (कोई कॉलोनी नहीं बनी है)। गांव में बिजली है, लेकिन इनके घर न पंखा है, न बल्ब। 6 महीने से बल्ब फ्यूज हुआ पड़ा है, उसे बदलने के लिए भी इनके पास पैसे नहीं हैं। एक छोटी सी लालटेन सामने टंगी है, जिसमें तेल पेंदी से लग चुका है।

भुवनेश्वर बताते हैं कि जब रात में बारिश होने लगती है तो झोपड़ी के ऊपर से पानी गिरने लगता है, पूरा बिस्तर भीग जाता है। वो और उनकी पत्नी एक कोने में प्लास्टिक ओढ़कर तब तक बैठे रहते हैं, जब तक बारिश न थम जाए। जाते-जाते सरस्वती हाथ जोड़ लेती हैं, कहती हैं,’ बबुआ तहन लोग कुछ कर लो न त हमनी के अब और जी न पाईब जा। (आप लोग कुछ करिए नहीं तो हम लोग जिंदा नहीं रह पाएंगे)

यहां से दूसरी गली में आगे बढ़े तो 45-50 साल के एक अधेड़ उमाशंकर मल्लाह मिले, जो गड्ढा खोद रहे थे। हमें देखते ही बोल पड़े, का बबुआ कहां जईब लोग (कहां जाएंगे)। जब हमने अपने बारे में बताया तो हाथ जोड़कर बोले ए बाबू कुछु कइके हमनी के रोडवा बनवा द लो, बहुत दिक्कत बा, बुनी पड़ जाला त गांव से पैदलो बाहर गईल मुश्किल हो जाला। (कुछ भी करके हमारे गांव का रोड बनवा दीजिए, बरसात में पैदल चलने में भी दिक्कत होती है।)

गांव में ज्यादातर लोगों के पास पक्का मकान नहीं है, पीएम आवास योजना का तो ये लोग नाम भी नहीं जानते हैं।

तभी पास खड़ी एक महिला बोल पड़ीं, तहन लोग जा लो बबुआ कुछु फायदा नइखे, लालू, नीतीश आ केतन नेता अइले गईले, कुछु केहू ना कईल। सब लोग चुनौवे के बेर गोहरावे ल लो। उमाशंकर, महिला को डांटते हुए बोले, इहां सब हमनिये खातिर आइल बानी जा, अइसे मत बोल। (ये लोग हमारे लिए ही आए हैं, ऐसे नहीं बोलो इन्हें)।

जब हमने पूछा कि लालू यादव और नीतीश कब आए थे। उमाशंकर सिंह बोले, ‘ई त हमरा याद नइखे बाबू, हऊ सामने जऊन घर लौकता नु ओइजे जा लो, हरिशंकर यादव बंगाल पुलिस में साहेब रहलेहा ऊ सब बता दीहें। (वो जो सामने घर है वहां जाइए, बंगाल पुलिस में अधिकारी थे, वे इस बारे में सबकुछ बता देंगे।)

पांडे जी नीतीश के लिए रैकी करने आये थे!

यहां से हम हरिशंकर यादव के घर पहुंचे। इनका घर ठीक-ठाक है, पक्का मकान है। घर पर हरिशंकर नहीं थे, उनकी बेटी जो अभी 12वीं पास की है, पीछे से बुलाकर लाती हैं। हरिशंकर यादव को लालू और नीतीश के आने की तारीख और पूरा वाकया याद है।

वो कहते हैं,’ साल 2010 में गांववालों की पुलिस के साथ किसी बात को लेकर झड़प हो गई थी। इसके बाद पुलिस ने रात में पूरे गांव को घेर लिया और खूब लाठियां भांजी, जो जहां मिला खूब पीटा। तब दो-तीन बुजुर्गों की मौत भी हो गई थी।’

उसी समय लालू यादव, तब के बक्सर के सांसद जगदानंद सिंह, रामकृपाल यादव आए थे। हमारे घर ही वे लोग खाना खाए थे। उसी दौरान पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे भी यहां आए थे, उस समय भी वे वीआरएस लिए थे। हरिशंकर कहते हैं कि वे नीतीश कुमार के लिए रैकी करने आए थे। उसके चार-पांच दिन बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आए। वो सामने एक खेत की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं कि उसी जगह पर उनका खेत में हेलीपैड बना था।

गांव में नल जल योजना के तहत पानी तो आ गया है, लेकिन कोई रखरखाव नहीं है, भारी मात्रा में पानी व्यर्थ ही बह जा रहा है।

वो बताते हैं कि नीतीश कुमार द्वार पर खड़े होकर लोगों से कहे थे कि दो महीना के भीतर गांव के लिए रोड बनवा देंगे। इसके लिए नोटिफिकेशन 2010 में ही जारी हुआ, लगा कि काम हो जाएगा। लेकिन, आप लोग देख ही रहे हैं कि 10 साल बाद भी कुछ नहीं बदला। इस गांव में आज तक सड़क नहीं बनी है। हम लोग बक्सर से पटना चक्कर लगाते-लगाते थक गए हैं।

कोई कहता है कि फंड नहीं है तो कोई कह रहा है कि कागज आगे नहीं बढ़ा है। हरिशंकर और उनके साथ ही बैठा एक युवक कहता है कि रोड नहीं होने के चलते इस गांव में कोई आना नहीं चाहता है, बाहर से किसी गाड़ी वाले से बोलिए कि मुकुंदपुर जाना है तो पहले ही मना कर देता है।

इतना ही नहीं अब तो लड़की वाले इस गांव में अपनी बेटी की शादी भी नहीं कर रहे हैं। जिसके पास थोड़ा बहुत पैसा है, वो गांव से पलायन कर गया है। अभी कुछ ही महीना पहले समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने से एक गर्भवती महिला और एक बच्चे की जान चली गई। खैर, छोड़िए आप लोग पानी-वानी पीजिए, कुछ बदलने वाला नहीं है, हम लोग कोशिश करके थक गए हैं।

राशन सबको मिलता नहीं, आवास कौन देगा

जब हमने गांव की झोपड़ियों को लेकर पीएम आवास योजना के बारे में पूछा तो कहते हैं कि बाबू यहां राशन सबको नहीं मिलता है, आवास कौन देने वाला है। इसके बाद हम उनके घर पहुंचे, जिनके बच्चे की हाल ही में समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने से मौत हो गई थी। उस बच्चे के पिता अपनी छोटी सी दुकान की गुमटी पर बैठे थे, पूछा तो बोले कि रहने दीजिए, जो हो गया वो हो गया।

हमको किसी से शिकायत नहीं है। पास खड़े एक युवक ने बताया कि प्रशासन के डर से कुछ नहीं बोल रहे हैं, इन्हें लगता है कि कहीं फंस नहीं जाएं। हमने उन्हें भरोसा दिया कि कुछ नहीं होगा। डरिये नहीं, अपनी बात रखिए, लेकिन उन्होंने हाथ जोड़ लिए।

इन दिक्कतों पर हमने जब गांव के मुखिया को फोन किया तो उन्होंने सब कुछ गांव वालों पर ही थोप दिया। कहते हैं कि गांव के लोग ही जमीन नहीं देते हैं तो हम क्या कर सकते हैं, कैसे रोड बनवा दें। वो राशन नहीं मिलने की शिकायतों को भी सिरे से नकार देते हैं।

इसी खेत में 2010 में जब सीएम नीतीश कुमार आए थे तब हेलीपैड बनाया गया था।

यह गांव ब्रह्मपुर विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है। यहां से राजद से शंभू नाथ यादव अभी विधायक हैं। इससे पहले भाजपा की दिलमणी देवी विधायक थीं। 2015 में वो चुनाव हार गईं थीं। उसके पहले 1995 से 2010 तक राजद के अजीत चौधरी लगातार चार बार विधायक रहे। गांव वालों का आरोप है कि किसी ने कुछ नहीं किया। चुनाव बाद कोई गांव में मुंह दिखाने नहीं आता था।

जब हमने शंभू नाथ यादव को फोन किया तो उन्होंने सारा ठीकरा नीतीश और मोदी पर फोड़ दिया। कहते हैं कि हमारी बात कोई अधिकारी सुनता ही नहीं है, तो हम क्या कर सकते हैं। सड़क बनाना सरकार का काम है और सरकार सोई हुई है। जनता इसका जवाब देगी।

लेकिन, हमने 2015 से 2017 के उनके कार्यकाल को लेकर सवाल किया कि जब राजद नीतीश के साथ सत्ता में थी? तब वो असहज हो गए, जवाब देते नहीं बना। कहते हैं, हमने दो ट्रैक्टर ईंट भेजी थी, फाइल भी आगे बढ़वाई थी, लेकिन नीतीश धोखा दे दिए तो क्या कर सकते हैं।

ऐतिहासिक रूप से सम्पन्न बक्सर जिले में कुल चार विधानसभा सीटें हैं- बक्सर सदर, डुमरांव, राजपुर और ब्रह्मपुर। इन सभी क्षेत्रों में एक जैसी ही स्थिति है। आजादी के 73 साल बाद भी विकास रहनुमाओं की फाइलों में ही दब कर रह गया है।

ज्यादातर गांवों में आज भी न तो सड़क है, न पक्के मकान हैं। कई लोगों को पीने के लिए साफ पानी भी नसीब नहीं हो रहा है। हेल्थ सिस्टम तो और भी लचर है। अस्पतालों में न तो पर्याप्त डॉक्टर हैं और न ही आपातकाल की सुविधा है। कभी कुछ हो जाए तो पटना या वाराणसी ही भागना पड़ता है।

गांव से लौटते वक्त पगडंडियों से गुजरते हुए हम यही बात कर रहे थे कि इस खबर को पढ़ने के बाद प्रशासन और सरकार थोड़ा-बहुत तो संज्ञान लेगी ही, तभी हमारी बाइक फिसल गई। वो तो ऊपरवाले की मेहरबानी थी कि बच गए। अब पता नहीं इन गांव वालों का ऊपरवाला कब इनपर मेहरबान होगा…?

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Bihar Assembly Election 2020 : Ground Report from Mukundpur, Buxar where Nitish kumar and lalu Yadav arrived in 2010

Source: DainikBhaskar.com

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