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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शनिवार को एक विस्तृत एडवाइजरी जारी करके महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के संबंध में पुलिस द्वारा की जाने वाली अनिवार्य कार्रवाई के बारे में बताया है.
यह एडवाइजरी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जारी की गई है.
उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 साल की दलित लड़की के साथ हुए कथित गैंगरेप और हत्या के मामले में पुलिस की शिथिलता और कार्यशैली को लेकर गंभीर सवाल पैदा हुए थे. मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में छाया रहा और इसे लेकर राज्य सरकार की भी बड़ी किरकिरी हुई.
इस मामले के बाद केंद्र और राज्य सरकार पर आरोप लग रहे थे कि वे महिला सुरक्षा और महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के मामलों में न्याय दिलाने को लेकर गंभीर नहीं हैं.
इसका संज्ञान लेते हुए शनिवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने एक विस्तृत एडवाइजरी जारी की है. यह एडवाइजरी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जारी की गई है जिसमें महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के संबंध में पुलिस की अनिवार्य कार्रवाई के बारे में बताया गया है.
इस एडवाइजरी में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों के मामलों में कार्रवाई नहीं करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं.

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इसमें ‘आईपीसी के सेक्शन 166ए के तहत दंडनीय अपराध के लिए सीआरपीसी के सेक्शन 154 के सब सेक्शन (1) के तहत सूचना दर्ज नहीं करने’ के संबंध में 16 मई 2019 की गृह मंत्रालय की एडवाइजरी का संदर्भ दिया गया है.
इस एडवाइजरी में गृह मंत्रालय की पांच दिसंबर 2019 की एडवाइजरी का भी संदर्भ दिया गया है जिसमें महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों में समय पर और सक्रिय रूप से कार्रवाई की बात की गई थी.
इसके अलावा इसमें रेप मामलों की जांच के एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) और यौन अपराध के साक्ष्यों को इकट्ठा करने की किट के संबंध में जारी की गई गाइडलाइंस का भी संदर्भ दिया गया है.

इस एडवाइजरी में क्या कहा गया है?
इसमें कहा गया है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने कानूनी प्रावधानों को और मजबूत किया है.
एडवाइजरी के मुताबिक, “केंद्र ने समय-समय पर राज्यों के लिए कई एडवाइजरी जारी की हैं ताकि पुलिस महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर सख्त कार्रवाई करे. इनमें एफआईआर दर्ज करने, साक्ष्य इकट्ठा करने और सेक्शुअल असॉल्ट एविडेंस कलेक्शन (एसएईसी) किट, दो महीनों में जांच पूरी करने और यौन अपराधियों का नेशन डेटाबेस बनाना शामिल है.”

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इस एडवाइजरी के मुताबिकः
1. संज्ञेय अपराधों के मामलों में अनिवार्य रूप से एफआईआर दर्ज की जाए. कानून के मुताबिक, पुलिस अपने थाने के बाहर हुई घटना के मामले में जीरो एफआईआर भी दर्ज कर सकती है.
2. संज्ञेय अपराधों के सिलसिले में एफआईआर दर्ज करने में नाकाम रहने पर सरकारी कर्मचारी के ख़िलाफ़ आईपीसी के सेक्शन 166 के तहत दंड का प्रावधान है.
3. सीआरपीसी का सेक्शन 173 रेप के मामलों में दो महीनों में जांच पूरी करने की बात करता है. इस सिलसिले में गृह मंत्रालय ने एक ऑनलाइन पोर्टल भी बनाया हुआ है जहां ऐसे मामलों को ट्रैक किया जा सकता है.
4. यौन हमले/रेप पीड़िता का परीक्षण 24 घंटे के भीतर सहमति से किसी रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर से कराया जाना चाहिए.
5. मृतका का लिखित या मौखिक बयान एक साक्ष्य के तौर पर लिया जाएगा.
6. यौन हमलों के मामलों में फॉरेंसिक साक्ष्य इकट्ठे करने के संबंध में गृह मंत्रालय ने गाइडलाइंस जारी की हैं. ऐसे मामलों की जांच के लिए पुलिस को एसएईसी किट्स दी गई हैं.
7. कानूनी तौर पर सख्त प्रावधानों और कैपेसिटी बढ़ाने के उपायों के बावजूद पुलिस की ओर से अगर इन अनिवार्य आवश्यकताओं का पालन नहीं किया जाता है तो यह देश में आपराधिक न्याय देने को प्रभावित कर सकता है. अगर इस तरह की खामियां पाई जाती हैं तो इनकी जांच होनी चाहिए और इनके लिए जिम्मेदार संबंधित अधिकारियों के ख़िलाफ़ तत्काल सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए.
8. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश सभी संबंधित अधिकारियों को इस दिशा में जरूरी दिशानिर्देश जारी कर सकते हैं ताकि इन नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित हो सके.

क्या है मकसद?
दरअसल, हाथरस मामले में पुलिस अधिकारियों की शिथिलता और असंवेदनशीलता को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की बड़ी किरकिरी हुई थी. इसके लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए योगी सरकार को विपक्षी पार्टियों की आलोचना का सामना करना पड़ा है.
ऐसे में मुमकिन है कि इस एडवाइजरी के जरिए केंद्र सरकार यह साबित करना चाहती हो कि वह महिला सुरक्षा को लेकर बेहद गंभीर है.