संजय मिश्र, नई दिल्ली। बिहार चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग हुई लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की हर गतिविधि पर महागठबंधन की नजर है। जिस तरह वह नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है और एक के बाद एक कई पूर्व भाजपा नेताओं को मैदान में उतार रही है उससे महागठबंधन को लगने लगा है कि लोजपा सवर्ण वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। कांग्रेस का आकलन है कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से दूरी रखने वाले सवर्ण वोटरों को लोजपा के रूप में मिला नया विकल्प परोक्ष रूप से महागठबंधन को चुनावी फायदा पहुंचा सकता है।
कांग्रेस वार रूम में बिहार की चुनावी रणनीति की लगातार समीक्षा कर रहे पार्टी रणनीतिकारों ने बीते तीन-चार दिनों में लोजपा में शामिल हो रहे नेताओं के सियासी प्रोफाइल का आकलन किया है। इसी आधार पर पार्टी का मानना है कि राजग खेमे से अगड़ी जाति के तमाम नेता चुनाव लड़ने के लिए लोजपा का दामन थाम रहे हैं। प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाने वाले राजेंद्र सिंह और उषा विद्यार्थी जैसे नाम इसके उदाहरण हैं जो अब लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे।
लोजपा चुनाव को त्रिकोणीय बनाएगी
महागठबंधन का मानना है कि चिराग पासवान के अकेले मैदान में आने से कुछ दर्जन सीटों पर उम्मीदवारों की व्यक्तिगत हैसियत और दलित समुदाय के एक वर्ग से जुड़ाव के कारण लोजपा चुनाव को त्रिकोणीय बनाएगी। त्रिकोणीय मुकाबले वाली ऐसी अधिकांश सीटें जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के खाते वाली होंगी। कांग्रेस के अनुसार, जदयू और राजद के बीच जिन सीटों पर सीधे मुकाबला होना है वहां महागठबंधन को तीसरे उम्मीदवार के आने का फायदा मिलेगा।
अगड़े वोटों में हो सकता है बंटवारा
बिहार के कई दौर के अपने आंतरिक सर्वेक्षणों के आधार पर पार्टी के केंद्रीय नेताओं का आकलन है कि वर्तमान प्रदेश सरकार से नाराजगी तो है, लेकिन सवर्ण मतदाता तेजस्वी यादव के नेतृत्व को सहज स्वीकार करने को तैयार नहीं दिखते। भविष्य में बिहार की राजनीति पर अपनी पकड़ बनाए रखने के साथ ही नीतीश को कमजोर करने की लोजपा की सियासत में महागठबंधन को अपना फायदा दिख रहा है। रणनीतिकारों का कहना है कि जदयू की सभी सीटों पर लोजपा के चुनाव लड़ने से अब अगड़े वोटों में बंटवारा तय है। इस बंटवारे का फायदा राजद और कांग्रेस दोनों को मिलेगा।
भाजपा से सीधे मुकाबले
कांग्रेस के हिसाब से महागठबंधन के सामाजिक समीकरणों का एक ठोस आधार पहले से है और वामदलों के आने से इसका दायरा कहीं ज्यादा बढ़ गया है। ऐसे में जदयू के खाते वाली तमाम सीटों पर सवर्ण वोटों में जो भी सेंध लगाए, फायदा महागठबंधन को ही मिलेगा। राजद और कांग्रेस ने बिहार के इन्हीं सियासी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए सीटों का बंटवारा किया था। भाजपा से सीधे मुकाबले वाली ज्यादातर सीटें राजद ने कांग्रेस के लिए छोड़ी हैं जिनमें काफी शहरी सीटें शामिल हैं।