बिहार में बने ऐसे समीकरण कि उद्धव जैसे नीतीश की लगेगी लॉटरी, हार हो या जीत, बने रहेंगे मुख्यमंत्री! – नवभारत टाइम्स

बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखें जैसे-जैसे करीब आ रही हैं, सियासी घटनाक्रम भी बेहद दिलचस्प होते जा रहे हैं। खास तौर से सत्ताधारी एनडीए में एलजेपी के अलग होने के बाद पूरे समीकरण बदल गए हैं। जिस तरह से एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान ने जेडीयू के खिलाफ मोर्चा खोला और अब उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं, उससे पार्टी की मुश्किलें थोड़ी बढ़ सकती हैं। वहीं, बदले हालात में अब जेडीयू और बीजेपी सूबे में बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। ऐसे में माना जा रहा कि आगामी चुनाव के नतीजे सीएम नीतीश कुमार के भविष्य को लेकर बेहद अहम रहने वाले हैं। चर्चा इस बात की भी हो रही है कि क्या बिहार में चुनाव के बाद महाराष्ट्र जैसा कोई खेल हो सकता है?

चुनाव बाद सूबे में बदल सकते हैं सियासी समीकरण



सियासी जानकारों की मानें तो चुनाव के बाद का बिहार बहुत बदला-बदला नजर आ सकता है। एलजेपी ने एनडीए से नाता तोड़कर ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी हैं जिसमें कई तरह की अटकलें हवा में तैर रही हैं। हालात पक्ष में रहे तो बीजेपी सीएम पद पर दावेदारी कर सकती है। हालांकि, सियासत के माहिर खिलाड़ी नीतीश कुमार को इस बात का इल्म पहले से ही है। यही वजह है कि पार्टी फूंक-फूंककर कदम उठा रही है। अटकलें ये भी हैं कि नीतीश कुमार ने पहले से ही ‘प्लान बी’ तैयार कर रखी है। यह रणनीति बिल्कुल महाराष्ट्र चुनाव के बाद उत्पन्न हुए हालात जैसी है, जिसमें उद्धव ठाकरे के हाथ सीएम पद लग गया था।

बदले हालात में क्या नीतीश कर रहे नई प्लानिंग?



दरअसल, नीतीश कुमार की कवायद यही है कि उनकी पार्टी बिहार चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करे, इसके लिए वो एक-एक सीट पर उम्मीदवारों के चयन में खुद दिलचस्पी ले रहे हैं। इसके साथ ही उनकी रणनीति यही है कि जेडीयू की सीटें बीजेपी से ज्यादा ही रहें। उम्मीद के मुताबिक, बिहार में जेडीयू और बीजेपी आधी-आधी सीटों पर उम्मीदवार उतार सकते हैं और इसमें जेडीयू अगर 80 से ज्यादा सीटें लाने में कामयाब रहती है तो बदले हालात में पार्टी दूसरे दलों के साथ सरकार बनाने की संभावना टटोल सकती है। इसमें प्रमुख कांग्रेस है जिसने पिछले विधानसभा चुनाव में 27 सीटें अपने नाम की थीं।

कांग्रेस के प्रदर्शन पर रहेंगी सभी की निगाहें



पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस महागठबंधन में आरजेडी-जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव में उतरी थी। उस समय में जहां जेडीयू और आरजेडी ने 101-101 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, वहीं कांग्रेस ने 41 सीटों पर ताल ठोंकी थी। उस समय पार्टी ने 27 सीटें अपने नाम की। इस बार महागठबंधन के सीट बंटवारे में कांग्रेस को 70 सीटें आई हैं। अगर पार्टी का प्रदर्शन पिछले चुनाव जैसा ही रहा और इस बार उनकी सीटें बढ़ती हैं तो नए राजनीतिक समीकरण उभर कर सामने आ सकते हैं। ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता और नीतीश कुमार का कांग्रेस से कोई परहेज भी नहीं है।

चुनाव बाद क्या बिहार में भी हो सकता है महाराष्ट्र जैसा खेल?



बीजेपी भी इस राजनीति को भांप चुकी है, इसीलिए पार्टी महाराष्ट्र की गलती दोहराना नहीं चाहती है। यही वजह है कि पार्टी के दिग्गज नेता लगातार नीतीश कुमार का नाम बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर आगे बढ़ाते रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नीतीश कुमार की तारीफ कर चुके हैं। इससे पहले महाराष्ट्र चुनाव के समय ऐसा नहीं था। उस समय बीजेपी और शिवसेना ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा जिसमें शिवसेना लगातार अपनी पार्टी से सीएम पद की मांग कर रही थी लेकिन बीजेपी ने कभी इसके लिए हामी नहीं भरी। चुनाव नतीजों के बाद इसी पर पेच फंसा और फिर शिवसेना ने बीजेपी से अलग एनसीपी और कांग्रेस के साथ समर्थन में सरकार बनाई और उद्धव ठाकरे सीएम बने। बीजेपी इन्हीं हालात से परहेज के लिए पहले से ही पूरी सतर्कता बरत रही है।

एलजेपी के अलग राह पकड़ने के बाद बीजेपी की खास रणनीति



यही वजह है कि बीजेपी ने एलजेपी को साफ संदेश दे दिया है कि वह बिहार चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का नाम लेकर वोट नहीं मांग सकती है। बीजेपी सूत्रों का कहना है कि एलजेपी से साफ तौर से कहा गया है कि वह बिहार चुनाव में किसी भी किस्म से बीजेपी का नाम नहीं लेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि बिहार में दोनों पार्टियां अलग-अलग दमखम दिखा रही हैं। हाल ही में एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान ने कहा था कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को अपना नेता मानते हैं, इसलिए वह उनके नाम पर वोट मांगेंगे। इस घोषणा के बाद चिराग पासवान ने ट्विटर पर एक तस्वीर शेयर की थी जिसमें वह पीएम मोदी के साथ दिख रहे हैं।

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