NDA से महागठबंधन की जंग तो बहाना है, असल मुकाबला BJP vs नीतीश है, क्या चिराग पासवान बन गए हैं मोहरा! – Navbharat Times

पटना
यूं तो बिहार की धरती हमेशा से राजनीति के नए दांव-पेज की प्रयोगशाला बनती रही है, लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में पराकाष्ठा देखने को मिल रही है। कोरोना काल में हो रहे चुनाव में पहली बार गठबंधन के अंदर गठबंधन की राजनीति देखने को मिल रही है। महागठबंधन की बात हो या एनडीए की दोनों में सहयोगी दलों के बीच एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ दिख रही है। एनडीए सत्ताधारी दल है इसलिए जनता का ज्यादा फोकस इन्हीं के ऊपर है। तो आइए समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे बिहार विधानसभा चुनाव में असल लड़ाई बीजेपी vs नीतीश कुमार के बीच है। इस मुकाबले में चिराग पासवान और उनकी पार्टी एलजेपी मोहरा के रूप में यूज की जा रही है।

BJP और JDU में बड़ा भाई कौन?
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में स्पष्ट था कि जेडीयू बड़ा भाई और बीजेपी छोटे भाई के रोल में रहती थी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी एनडीए के नेताओं के सामने साफ कर दिया था कि बिहार में एनडीए का नेतृत्व नीतीश कुमार ही करेंगे। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हालात बदल गए हैं। इस चुनाव में नीतीश कुमार की उम्मीदों से विपरीत नरेंद्र मोदी की अगुवाई में देशभर की जनता ने बीजेपी को प्रचंड बहुमत दिया। इसके बाद जब 2016 में जब बीजेपी और जेडीयू साथ आए तो दोनों के बीच यह बात होने लगी कि बड़ा भाई कौन है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी और जेडीयू ने बराबर-बराबर सीटों पर प्रत्याशी उतारे। हालांकि इसके बाद भी बड़े भाई और छोटे भाई की बात बंद नहीं हुई। बिहार विधानसभा चुनाव आते-आते बीजेपी के नेता जेडीयू+बीजेपी को जुड़वा भाई कहकर संबोधित कर रहे हैं। हालांकि जेडीयू के नेता इस बयान पर चुप्पी साध जाते हैं। इसी बहस के बीच ये भी बहस जारी है कि बीजेपी और जेडीयू में कौन ज्यादा सीटों पर प्रत्याशी उतारेंगे।

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किसका होगा ज्यादा उम्मीदवार
इस बार के चुनाव में बीजेपी-जेडीयू में किसके ज्यादा उम्मीदवार होंगे, यह विवाद अब तक नहीं सुलझ पाया है। पहले चरण की वोटिंग के लिए नॉमिनशेन के लिए चार दिन का समय बीत चुका है लेकिन बीजेपी और जेडीयू ने सीटों के बंटवारे का औपचारिक ऐलान नहीं किया है। दोनों दलों के बीच जारी जंग के चलते लोकजनशक्ति पार्टी को एनडीए से अलग होना पड़ा है। दरअसल, बीजेपी और जेडीयू ने तय किया है कि वह आपस में 243 सीटों का बंटवारा करेंगे। इसके बाद जेडीयू अपने कोटे से जीतन राम मांझी की पार्टी हम और बीजेपी रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी को टिकट देगी। एलजेपी 42 सीटों से कम पर तैयार नहीं थी। अगर बीजेपी एलजेपी की मांग मान लेती तो उसे खुद 100 से कम सीटों पर प्रत्याशी उतारने का मौका मिलता। वहीं दूसरी तरफ जेडीयू किसी भी सूरत में एलजेपी के लिए सीटें छोड़ने को तैयार नहीं थी। आखिरकार एलजेपी गठबंधन से बाहर हो गई है।

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इस तरकीब से जेडीयू से ज्यादा सीटें जीतेगी बीजेपी!
एलजेपी बिहार में मणिपुर फॉर्म्युला अपना रही है। इस फॉर्म्युला के तहत बिहार चुनाव में एलजेपी एनडीए के घटक दल जेडीयू और हम के खिलाफ प्रत्याशी उतारेगी और बीजेपी के खिलाफ न्यूनतम सीटों पर दोस्ताना मुकाबला करेगी। एलजेपी ने पहले ही साफ कर दिया है कि उसकी दोस्ती बीजेपी से बनी हुई है। चुनाव परिणाम आने के बाद एलजेपी के सभी विधायक बीजेपी की सरकार बनाने में सहयोग और समर्थन करेंगे। इस फॉर्म्युले का मर्म समझें तो बीजेपी और जेडीयू के बीच अगर आधे-आधे सीटों का भी बंटवारा होता है तो दोनों के खाते में 122 या 121 सीटें जाएंगी। वहीं एलजेपी 143 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की बात कह रही है। इस लिहाज से 21 या 22 सीटों पर बीजेपी और एलजेपी में दोस्ताना मुकाबला देखने को मिल सकता है। ऐसी स्थिति में कुल मिलाकर देखें तो बिहार की सभी 243 सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी होंगे। क्योंकि चुनाव बाद एलजेपी के जीते हुए प्रत्याशी बीजेपी को सपोर्ट करेंगे इसकी घोषणा पहले ही हो चुकी है।

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एलजेपी के अलग होने से जेडीयू की सीटें कम होने का अनुमान
मणिपुर फॉर्म्युले से बिहार में जेडीयू को सीधा-सीधा नुकसान होगा। क्योंकि हर सीट पर जेडीयू और हम के प्रत्याशी को एलजेपी के प्रत्याशी से भी दो-दो हाथ करना होगा, वहीं बीजेपी के सामने वोट काटने के लिए एलजेपी के उम्मीदवार ना के बराबर होंगे। ऐसी स्थिति में चुनाव परिणाम आने के बाद अगर जेडीयू की सीटें कम आती है और बीजेपी की सीटें बढ़ जाती हैं तो देखना दिलचस्प होगा कि राज्य में किसका मुख्यमंत्री बनता है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा कई बार कह चुके हैं कि बिहार में एनडीए की अगुवाई नीतीश कुमार ही करेंगे। लेकिन जेडीयू की सीटें कम होने पर क्या हालात बनते हैं यह देखने वाली बात होगी।

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बीजेपी और जेडीयू में खुद को दलित प्रेमी दिखाने की होड़
2015 के विधानसभा चुनाव में आरक्षण पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के दिए बयान से बीजेपी को काफी नुकसान हुआ था। जनता के बीच संदेश गया था कि बीजेपी दलित विरोधी है। इस बार बीजेपी कोई गलती करने के मूड में नहीं है। ठीक उसी तरह नीतीश कुमार भी खुद को दलित प्रेमी देखाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी संदर्भ में उन्होंने दलितों की हत्या होने पर उन्हें सरकारी नौकरी का वादा किया है। इसके अलावा महादलित समाज से आने वाले अशोक चौधरी को जेडीयू का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है। साथ ही महादलितों के सबसे बड़ा चेहरा पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को अपने साथ खड़ा कर लिया है। वहीं बीजेपी खुद को चिराग पासवान के साथ खड़ा दिखाकर दलित प्रेमी साबित करने में लगी है। इसके अलावा बीजेपी के इशारे पर केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले की महाराष्ट्र में सक्रिय आरपीआई ने बिहार में दस्तक दी है। अठावले देश में दलितों के बड़े नेता माने जाते हैं।












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इन सारे खेल में एलजेपी के एनडीए से बाहर होने पर लगता है कि बीजेपी ने उसे मोहरा बनाकर तो यूज नहीं कर लिया है। हालांकि रामविलास पासवान भी मंजे हुए राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने भी कुछ सोच समझकर बेटे चिराग को यह फैसला लेने के लिए कहा होगा। क्योंकि बिहार में 2005 के बाद से रामविलास पासवान भी फुल फ्लैश अपनी अपनी राजनीतिक ताकत नहीं दिखा पाए हैं। उन्होंने तो अपने हिस्से की राजनीति कर ली है, लेकिन बेटे को लंबे समय तक सत्ता की जंग में कायम रखने के लिए एक ठोस आधार जरूर दिलाना चाहेंगे। इस तरह बिहार विधानसभा चुनाव में अब तक सामने आए खेल में यही कहा जा सकता है कि असल जंग बीजेपी बनाम जेडीयू की है बाकी तो बस मोहरे हैं।

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सीएम नीतीश कुमार, डिप्युटी सीएम सुशील कुमार मोदी और एलजेपी चीफ चिराग पासवान।

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