Bihar Election: LJP के NDA से अलग चुनाव लड़ने के फैसले ने तैयार किए नए सियासी समीकरण – Navbharat Times

ई दिल्ली/पटना
बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Vidhansabha Chunav 2020) में पहले चरण की वोटिंग में अब एक महीने से भी कम समय बचा है, लेकिन राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन बनने और टूटने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। लोकजनशक्ति पार्टी (Lok Janshakti Party) ने रविवार को नया फॉर्म्युला लेकर आई है। एलेजपी एनडीए के घटक दल के रूप में बनी रहेगी, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में वह इस गठबंधन के नेता मुख्यमंत्री नीतीश के चेहरे के खिलाफ वोट मांगेगी। एलेजपी के इस फैसले ने 28 अक्टूबर से शुरू होने वाले तीन चरण के बिहार विधानसभा चुनावों में नई संभावनाओं को खोल दिया है।

दरअसल एलजेपी के सूत्रों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे किसी भी विपक्षी गठबंधन में प्रवेश नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि एलजेपी की घोषणा कई कारकों से प्रेरित है, जिसमें सबसे पहले चिराग पासवान की इच्छा शामिल है, जो उनके बीमार पिता रामविलास पासवान के बाद पार्टी का नेतृत्व संभालन रहे हैं। माना जाता है कि नीतिश कुमार अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा को कम करने के लिए समय के साथ काम कर रहे थे। हालांकि, लालू प्रसाद यादव के आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के मुख्य प्रतिद्वंद्वी गठबंधन का मानना है कि एलजेपी के फैसले से इसकी संभावनाएं बढ़ गई हैं, क्योंकि केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी एनडीए के वोटों को अपने पाले में कर लेगी।

बन रहे कई नए समीकरण
बता दें कि एनडीए को अपने गठबंधन और राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और राज्य में नीतिश कुमार के कारण विपक्षी गठबंधन पर बढ़त दिखाई गई थी, लेकिन एलजेपी के फैसले ने नए समीकरणों को जन्म दे दिया है। दरअसल रामविलास पासवान की पार्टी लगातार मोदी के नेतृत्व की सराहना कर रही है और राज्य में गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए बीजेपी को प्रेरित कर रही है। वहीं एनडीए मतदाताओं को भ्रमित करने वाले संकेत भेज सकता है, खासकर उन निर्वाचन क्षेत्रों में जहां जेडीयू और एलजेपी दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे।

लगाए जा रहें हैं कई कयास
जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता मुताबिक बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह सहित बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व का समर्थन किया है। इसके अलावा पीएम मोदी ने भी उनका भी स्वागत किया है। जेडीयू नेता के मुताबिक एलजेपी अपनी ताकत को कम कर रही है। उनका मानना है कि एक बार जब पीएम मोदी और नीतिश कुमार के अभियान के दौरान राज्य में संयुक्त जनसभाओं को संबोधित करेंगे, तो सभी भ्रम गायब हो जाएंगे।












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नीतीश के चेहरे के खिलाफ वोट मांगेगी एलजेपी
वहीं लोकजनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने रविवार को तय कर दिया कि एलजेपी एनडीए के घटक दल के रूप में बनी रहेगी, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में वह इस गठबंधन के नेता मुख्यमंत्री नीतीश के चेहरे के खिलाफ वोट मांगेगी। इसके लिए एलजेपी बिहार में मणिपुर फॉर्म्युला आजमाएगी। दिल्ली में हुई बैठक में एलजेपी ने तय कर लिया है कि वह बिहार विधानसभा चुनाव में अपने विजन डॉक्यूमेंट के साथ उतरेगी। पार्टी जेडीयू के विजन के साथ चुनाव में वोट नहीं मांगेगी। लोजपा और बीजेपी में कोई कटुता नहीं है। एनडीए के घटक दलों के बीच कई सीटों पर फ्रेंडली फाइट हो सकती है।












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एलजेपी को दलित मतदाताओं का बड़ा समर्थन
बता देें कि एलजेपी पारंपरिक रूप से दलित मतदाताओं के एक बड़े समूह से अपना समर्थन प्राप्त करती है। इसके साथ ही उसके पास कई उच्च जाति के नेता हैं, जो राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली हैं। बिहार में फरवरी 2005 के विधानसभा चुनावों में एलजेपी ने इसी तरह की रणनीति लागू की थी, जब वह केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन का हिस्सा थी, लेकिन राजद के खिलाफ बिहार में प्रमुख यूपीए सदस्य के रूप में चुनाव लड़ा था।

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क्या है 15 साल पुराना सियासी फॉर्मूला
साल 2004 में यूपीए में आरजेडी और एलजीपी दोनों शामिल थे। फरवरी, 2005 में राम विलास पासवान ने कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए का हिस्सा होते हुए भी बिहार चुनाव में आरजेडी के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशियों के खिलाफ ऐसा नहीं किया। राम विलास पासवान ने कांग्रेस प्रत्याशियों को समर्थन किया था। आरजेडी (RJD) के सियासी समीकरण को एलजेपी (LJP) ने बिगाड़ दिया था, जिसके चलते सरकार में नहीं आ सकी।

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लालू प्रसाद यादव की हुई थी विदाई
फरवरी 2005 के चुनाव में आरजेडी (RJD) ने 210 सीटों पर चुनाव लड़कर 75 सीटें हासिल की थी और एलजेपी (LJP)178 सीटों पर लड़कर 29 सीटें जीती थी। वहीं, जेडीयू को 55 और बीजेपी को 37 सीटें मिली थी। बिहार में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल सका था. जिसके बाद राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ गया था। इसके कुछ महीने बाद दोबारा चुनाव हुए तो नीतीश कुमार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रहे थे। जिसके बाद 2005 में राज्य में लालू प्रसाद यादव के राजद के 15 साल के शासनकाल को समाप्त कर दिया। ये देखने लायक होगा कि चिराग पासवान अपने पिता के 15 साल पुराने फॉर्मूले पर चलकर एनडीए का हिस्सा रहते हुए। केंद्रीय मंत्री की सीट भी मचा लेंगे। एनडीए गठबंधन में बने भी रहेंगे।

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