हाइलाइट्स:
- रामविलास पासवान कहा था उनका लक्ष्य 2020 नहीं है, बल्कि 2025 का विधानसभा चुनाव है,तो क्या 2025 की नींव रख रहे हैं चिराग पासवान
- चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी एनडीए में रहेगी या नहीं आज शाम हो जाएगा इसका फैसला
- क्या रामविलास पासवान के मुस्लिम – दलित गठजोड़ की राजनीति चिराग पासवान को दिला सकती है सत्ता की चाभी
- रामविलास पासवान के रहते 2015 में एलजेपी को मिली थी मात्र 2 सीट
नीलकमल, पटना
रामविलास पासवान कहा था उनका लक्ष्य 2020 नहीं है, बल्कि 2025 का विधानसभा चुनाव है, तो क्या 2025 की नींव रख रहे हैं चिराग पासवान। तो क्या यह मान लिया जाए कि चिराग पासवान अपने बीमार पिता रामविलास पासवान के उस इच्छा को पूरी करने की तैयारी में लगे हैं जिसे, उनके पिता ने एलजेपी के कार्यकर्ताओं के सामने रखा था। क्योंकि मौजूदा परिस्थिति में यह सभी जानते हैं कि एलजेपी का अकेले 143 सीटों पर चुनाव लड़ना, चिराग पासवान के लिए आत्मघाती कदम हो सकता है। बावजूद इसके चिराग पासवान ना सिर्फ नीतीश पर हमलावर रुख अपनाए रखा बल्कि दलित मुस्लिम गठजोड़ की राजनीति वो भी हवा देने की कोशिश में लगे हैं।
पार्टी के स्थापना दिवस पर रामविलास पासवान ने जताई थी इच्छा
28 नवंबर 2019 को लोकजनशक्ति पार्टी के 20वें स्थापना दिवस पर पटना में रामविलास पासवान ने यह जताने की कोशिश की मुस्लिमों के असली हितैषी वही हैं। रामविलास पासवान एलजेपी कार्यकार्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था 2005 में अगर लालू प्रसाद यादव ने उनकी बात मानी होती तो उसी समय बिहार का मुख्यमंत्री कोई मुस्लिम समुदाय का व्यक्ति होता। रामविलास पासवान ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए यह भी कहा था कि, उनका लक्ष्य 2020 का विधानसभा चुनाव नहीं है, बल्कि 2025 का विधानसभा चुनाव है, जिसकी तैयारी अभी से ही शुरू करनी होगी।
रामविलास पासवान ने पार्टी कार्यकर्ताओ से किया था वादा
रामविलास पासवान ने नवंबर 2019 में ही कार्यकर्ताओं से बिहार के सभी 243 सीटों पर अपनी तैयारी रखने की बात कही थी। इसके अलावा उन्होंने सभी कार्यकर्ताओं से कहा था कि वो अपने क्षेत्र में जाए और अधिक से अधिक सदस्य बनाए। रामविलास पासवान ने यह भी वादा किया था कि जो कार्यकर्ता ज्यादा सदस्य बनाएगा टिकट उसे ही दिया जाएगा। बता दें कि फरवरी 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में लोकजनशक्ति पार्टी को 29 सीटें मिली थीं और सत्ता की चाबी रामविलास पासवान के हाथ में थी। रामविलास पासवान चाहते तो लालू प्रसाद यादव की आरजेडी की सरकार बनवा सकते थे, लेकिन उन्होंने किसी मुस्लिम को मुख्यमंत्री घोषित करने की मांग की थी जिसे आरजेडी ने नहीं माना था। तब राज्यपाल बूटा सिंह नवंबर में दोबारा चुनाव कराया था, उस चुनाव में एनडीए की सरकार बनी और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री चुना गया था। बिहार में बदलाव के साथ ही रामविलास पासवान कमजोर पड़ गए और दोबारा केंद्र की राजनीति में लौट गए थे।
चिराग को है दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर विश्वास
क्या इस बार के चुनाव में रामविलास पासवान के मुस्लिम – दलित गठजोड़ की राजनीति चिराग पासवान को राजनीतिक पहचान दिला सकती है। क्योंकि 2011 की जनगणना के मुताबिक बिहार की आबादी में 14. 4% यादव, 6.4% कुशवाहा (कोयरी), 4% कुर्मी, 26% अतिपिछड़ा, 16% दलित और महादलित, आदिवासी 1.3%, मुस्लिम 16.9% और 17% ऊंची जातियां हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो रामविलास पासवान की नजर से चिराग पासवान को करीब 33 फीसदी वोट का समर्थन मिल सकता है। बताया जाता है कि रामविलास पासवान की सोच यह है कि इन 33 फीसदी वोट में से 10 प्रतिशत वोट भी अगर एलजेपी के खाते में आ जाए तो, सत्ता की चाभी एक बार फिर एलजेपी के पास आ सकती है। आपको यह भी बता दें कि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 23.6 फीसदी (53 सीट पर जीत), आरजेडी को 19.9 (80 जीते), जेडीयू को 14.7 फीसदी (71 जीते) कांग्रेस को 6.5 फीसदी (27 सीट पर जीत) और एलजेपी को 5.7 फीसदी वोट मिले थे लेकिन मात्र 2 सीट पर ही जीत हासिल हुई थी। इसके अलावा जीतनराम मांझी को 2.3 फीसदी मत मिले थे और वो अपनी पार्टी से अकेले जीत हासिल करने वाले उम्मीदवार थे।
सभी राजनीतिक दल चाहते है एलजेपी का साथ
एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान का लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमलावर होने के बावजूद, बीजेपी की हर सभंव कोशिश है कि रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी उनके खेमे में रहे। इसका सीधा कारण यह है कि रामविलास पासवान का करीब छह फीसदी का वोट एक तरह से कंप्लीट ट्रांसफ़रबल माना जाता है। यही वजह है कि राष्ट्रीय राजनीति में भी रामविलास पासवान को हमेशा महत्व दिया जाता रहा है। वर्तमान में, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने अपनी पार्टी के तमाम फैसलों को लेने के लिए चिराग को अधिकृत कर दिया है। अब देखना है कि आने वाले समय में चुनौतियों का सामना चिराग पासवान कैसे करते हैं।
चिराग के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए नीतीश चल चुके है चाल
चिराग पासवान का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला आज भी जारी है। सीट बंटवारे को लेकर एनडीए में जो बिखराव नजर आ रहा था, वह आज भी बरकरार है। इधर चिराग पासवान के तेवर को ठंडा करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले से ही दलित चेहरों को आगे करना शुरू कर दिया था। सबसे पहले नीतीश कुमार ने दलितों की हत्या होने पर पीड़ित परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया। इसके बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन से जीतन राम मांझी को निकालकर एनडीए में शामिल कराया। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष इतने पर ही नहीं रुके बल्कि बिहार के 16 प्रतिशत दलितों की आबादी को रिझाने के लिए, कांग्रेस से आए अशोक चौधरी को जेडीयू का कार्यकारी अध्यक्ष भी बना दिया।
रामविलास पासवान के रहते 2015 में एलजेपी को मिली थी मात्र 2 सीट पर जीत
बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में मात्र दो सीटों पर जीत दर्ज करने वाली एलजेपी इस बार फिर 42 सीटों पर दावा ठोक रही थी। बता दें कि 2015 में एलजेपी के 42 उम्मीदवार में से मात्र दो को ही जीत का स्वाद चखने का मिला था। अब एनडीए में 42 सीट नही मिलने पर एलजेपी ने 2020 के चुनाव में 143 सीटों पर लड़ने का मन बनाया है। आपको यह भी बता दें कि सत्ता की चाभी लेकर घुमने वाले रामविलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी ने 2005 में 10 सीट 2010 में 3 और 2015 में मात्र 2 सीट पर जीत हासिल कर सकी थी। अब एलजेपी की बागडोर चिराग पासवान के हाथ में है और बताया जा रहा है कि वो इस बार 143 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने जा रहे हैं। एलजेपी के नेता का यह भी कहना है कि चिराग पासवान ने यह भी फैसला लिया है कि, अगर एलजेपी अकेले चुनाव लड़ती है तो बीजेपी के खिलाफ अपने उम्मीदवार नही खड़ा करेगी।