आर्मेनिया में तबाही मचा रहा इजरायली किलर ड्रोन, भारत भी खरीदने की ताक में – नवभारत टाइम्स

आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच जारी युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा। सोमवार से शुरू हुई इस लड़ाई में अभी तक दोनों पक्षों के 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। अजरबैजान की सेना आर्मेनिया के सैनिकों और टैंकों को निशाना बनाने के लिए इजरायली Harop Kamikaze Drones का इस्तेमाल कर रही है। ये ड्रोन आत्मघाती होते हैं, जो दुश्मन के क्षेत्र की रेकी करने के अलावा अगर टॉरगेट दिखाई दे दिया तो उससे भिड़कर खुद को उड़ा लेते हैं। इस कारण आर्मेनिया की सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। उनके कई सैनिक इस ड्रोन के हमलों में मारे गए हैं। माना जा रहा है कि यह युद्ध भविष्य में होने वाले युद्धों में ड्रोन्स के उपयोग की पटकथा लिख सकता है।

अजरबैजान के 60 फीसदी हथियार इजरायली



आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच जारी जंग में तुर्की और पाकिस्तान भी शाामिल हैं। ये दोनों देश अपने यहां से आतंकियों को अरजबैजान की तरफ से लड़ने के लिए उकसा रहे हैं। वहीं, इजरायल अजरबैजान को हथियारों की सप्लाई कर रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, अजरबैजान के कुल हथियार खरीद का 60 फीसदी हिस्सा इजरायल से आता है। ऐसे में इजरायली हथियारों की बदौलत वह आर्मेनिया की सेना पर भारी पड़ रहा है। उधर, रूस अपने करीबी आर्मेनिया का खुलकर समर्थन करने से कतरा रहा है। ऐसे में एक पक्ष के मजबूत होने से अजरबैजान का पड़ला भारी पड़ता दिखाई दे रहा है।

बहुत घातक है यह इजरायली ड्रोन



इजरायली Harop Kamikaze Drones को कई नाम से जाना जाता है। इसे हीरो-120 या किलर ड्रोन भी कहा जाता है। इसे इजरायली एयरोस्पेस इंडस्ट्री के एमबीटी डिविजन ने विकसित किया है। इस ड्रोन का उपयोग अजरबैजान की सेना 2016 की झड़प के दौरान भी कर चुकी है। इस ड्रोन में अलग से कोई मिसाइल नहीं होती है, बल्कि यह ड्रोन खुद में एक मिसाइल है। इसमे लगा हुआ एंटी-रडार होमिंग सिस्टम दुश्मन के रडार को भी जाम कर सकता है। जिससे अगर कोई इस मार नहीं गिराता या अगर इसे अपना लक्ष्य नहीं मिलता है तो यह वापस अपने बेस पर आ जाएगा। लेकिन, अगर इसे अपना लक्ष्य दिख गया तो यह ड्रोन उससे टकराकर खुद को उड़ा लेगा।

कितना खतरनाक है यह ड्रोन



इजरायली Harop ड्रोन एक बार में 6 घंटे की उड़ान भर सकता है। इसे बेस स्टेशन से 1000 किलोमीटर की दूरी तक ऑपरेट किया जा सकता है। इसका समुद्र या जमीन पर टोही गतिविधियों या दुश्मन के खिलाफ मिसाइल के रूप में उपयोग किया जा सकता है। यह ड्रोन पहले से तय प्रोग्रामिंग के हिसाब से खुद उड़ान भर सकता है या फिर ऑपरेटर भी इसके निर्धारिक रास्ते को बदल सकता है। इसमें मौजूद इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर के जरिए बेस पर मौजूद ऑपरेटर अपने निशाने को चुन सकता है।

भारत भी कर रहा बड़े पैमाने पर खरीद की तैयारी



भारत की स्पेशल फोर्स पहले से ही इस ड्रोन का उपयोग करती है। जिसमें एनएसजी और दूसरी स्पेशल फोर्सेज शामिल हैं। हालांकि सेना के लिए इसकी खरीद को लेकर अभी भी बातचीत चल रही है। भारत ने इस ड्रोन को लेकर रिकवेस्ट फॉर इंफॉर्मेशन भी जारी कर चुका है। चीन और पाकिस्तान से बढ़ते खतरे को देखते हुए भारत आने वाले दिनों में इस ड्रोन को इजरायल से खरीद सकता है। यह ड्रोन चीन के खिलाफ भी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बहुत कारगर होगा।

किस मुद्दे को लेकर दोनों देशों में छिड़ी जंग



दोनों देश 4400 वर्ग किलोमीटर में फैले नागोर्नो-काराबाख नाम के हिस्से पर कब्जा करना चाहते हैं। नागोर्नो-काराबाख इलाका अंतरराष्‍ट्रीय रूप से अजरबैजान का हिस्‍सा है लेकिन उस पर आर्मेनिया के जातीय गुटों का कब्‍जा है। 1991 में इस इलाके के लोगों ने खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मेनिया का हिस्सा घोषित कर दिया। उनके इस हरकत को अजरबैजान ने सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद दोनों देशों के बीच कुछ समय के अंतराल पर अक्सर संघर्ष होते रहते हैं।

क्या है इस संघर्ष का इतिहास



आर्मेनिया और अजरबैजान 1918 और 1921 के बीच आजाद हुए थे। आजादी के समय भी दोनों देशों में सीमा विवाद के कारण कोई खास मित्रता नहीं थी। पहले विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद इन दोनों देशों में से एक तीसरा हिस्सा Transcaucasian Federation अलग हो गया। जिसे अभी जार्जिया के रूप में जाना जाता है। 1922 में ये तीनों देश सोवियत यूनियन में शामिल हो गए। इस दौरान रूस के महान नेता जोसेफ स्टालिन ने अजरबैजान के एक हिस्से (नागोर्नो-काराबाख) को आर्मेनिया को दे दिया। यह हिस्सा पारंपरिक रूप से अजरबैजान के कब्जे में था लेकिन यहां रहने वाले लोग आर्मेनियाई मूल के थे।

दोनों देशों में 1991 से भड़का तनाव

-1991-


1991 में जब सोवियत यूनियन का विघटन हुआ तब अजरबैजान और आर्मेनिया भी स्वतंत्र हो गए। लेकिन, नागोर्नो-काराबाख के लोगों ने इसी साल खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मेनिया में शामिल हो गए। इसी के बाद दोनों देशों के बीच जंग के हालात बन गए। लोगों का मानना है कि जोसेफ स्टालिन ने आर्मेनिया को खुश करने के लिए नागोर्नो-काराबाख को सौंपा था।

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