उत्तर प्रदेश के मथुरा के सिविल कोर्ट में दायर इस परिवाद में एडवोकेट विष्णु जैन ने संपूर्ण कृष्ण जन्मभूमि पर दावा ठोकते हुए कहा है कि भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए यह पूरी भूमि पवित्र स्थान है. परिवाद में कृष्ण जन्मस्थान की पूरी 13.37 एकड़ की ज़मीन पर नए सिरे से दावा ठोकते हुए कहा गया है कि 1968 में समझौता हुआ था, जो मान्य नहीं हो सकता और यहां से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाया जाना चाहिए.
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आइए इस पूरे मामले को बारीकी से समझते हैं और जानते हैं कि यह दावा क्या कहता है और क्या हैं कृष्ण जन्मभूमि से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य.
मथुरा कोर्ट में परिवाद से श्रीकृष्ण जन्मस्थान का मुद्दा फिर खड़ा हुआ. (Symbolic Image)
क्या है इस दावे का दावा?
दावा किया गया है कि श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागार में हुआ था और वह पूरा इलाका ‘कटरा केशव देव’ के नाम से जाना जाता है. कृष्ण जन्म की वास्तविक जगह वहां है, जहां मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट की प्रबंधन कमेटी ने निर्माण किया हुआ है. दावे में यह भी कहा गया है कि मुगल शासक औरंगज़ेब ने मथुरा में कृष्ण मंदिर को नष्ट करवाया था. जहां केशव देव मंदिर था, वहीं जो मस्जिद बनवाई गई, उसे ईदगाह के नाम से जाना जाता है.
क्या चाहता है ये परिवाद?
इस परिवाद में मांग की गई है कि ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह की प्रबंधन कमेटी ने जो भी निर्माण इस इलाके में करवाए हैं, उन्हें हटवाया जाए. सुन्नी सेंट्रल बोर्ड की सहमति से कमेटी के निर्माणों को अतिक्रमण कहते हुए दावा है कि कटरा केशव देव बस्ती पूरी तरह से ‘श्रीकृष्ण विराजमान’ की है. इन निर्माणों को अवैध बताते हुए हटवाने की मांग के साथ ही इस परिवाद में यह भी मांग है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड, ट्रस्ट ईदगाह और उससे जुड़े तमाम कर्मियों को यहां से हटाने की कवायद की जाए.
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यह परिवाद भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और उनके श्रद्धालुओं की ओर से दायर किया गया है. इसमें संविधान के आर्टिकल 25 के तहत पूजा अर्चना के अधिकार के हवाले दिए गए हैं.
ओवैसी ने किया ट्वीट
चार बार सांसद रह चुके ओवैसी ने इस मामले में ट्वीट करते हुए कहा ‘पूजास्थल एक्ट 1991 पूजास्थल के कन्वर्जन को प्रतिबंधित करता है. इस एक्ट को लागू करवाने और इसकी हिफाज़त करने का ज़िम्मा गृह मंत्रालय का है तो मंत्रालय कोर्ट में क्या प्रतिक्रिया देगा? शाही ईदगाह ट्रस्ट और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ जब 1968 में इस विवाद को निपटा चुके, तो इसे फिर क्यों उठाया जा रहा है?’
अपने ट्वीट में ओवैसी ने समझौते संबंधी दस्तावेज़ चस्पा किया.
क्या कहता है इतिहास?
श्रीकृष्ण जन्मभूमि का इतिहास समझना ज़रूरी है ताकि यह पूरा मामला साफ हो सके. बहुत पुरानी बात न करते हुए 1804 से समझते हैं, जब मथुरा ब्रिटिश नियंत्रण में आया. ईस्ट इंडिया कंपनी ने कटरा की ज़मीन नीलाम की, जिसे 1815 में बनारस के राजा पटनीमल ने खरीदा. राजा यहां मंदिर बनवाना चाहते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका. उनके वारिसों के पास ये ज़मीन रही.
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राजा के वारिस राज कृष्ण दास के सामने इस ज़मीन को लेकर विवाद खड़ा हुआ. 13.37 एकड़ की इस ज़मीन पर मथुरा के मुस्लिमों ने केस लड़ा लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1935 में राज कृष्ण दास के हक में फैसला दिया. 1944 में यह ज़मीन दास से पंडित मदनमोहन मालवीय ने 13000 रुपये में ली, जिसमें जुगलकिशोर बिड़ला ने आर्थिक मदद दी. मालवीय की मृत्यु के बाद बिड़ला ने यहां श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाया, जिसे बाद में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से जाना गया.
जयदयाल डालमिया के सहयोग से बिड़ला ने इस ज़मीन पर मंदिर कॉम्प्लेक्स का निर्माण 1953 में शुरू करवाया. फरवरी 1982 में यह निर्माण पूरा हो सका. तीसरी पीढ़ी के अनुराग डालमिया ट्रस्ट के जॉइंट ट्रस्टी हैं. इस मंदिर कॉम्प्लेक्स में एक और उद्योगपति रामनाथ गोयनका का भी वित्तीय सहयोग रहा.
क्या था 1968 में हुआ करार?
साल 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने इस ज़मीन पर मालिकाना हक न होने के बावजूद कई तरह के फैसले शुरू किए. 1964 में पूरी ज़मीन पर नियंत्रण के लिए सिविल केस दायर करने के बाद इस संस्था ने खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया था. समझौते के तहत दोनों पक्षों ने अपने हिस्से की कुछ ज़मीन एक दूसरे को सौंप दी. अब जिस जगह मस्जिद है, वह जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है.
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इसके बाद मथुरा की सिविल कोर्ट में एक और वाद दायर हुआ था, जो श्रीकृष्ण जन्म सेवा संस्थान और ट्रस्ट के बीच समझौता हो जाने पर बंद हो गया था. खबरों की मानें तो 20 जुलाई 1973 को कोर्ट ने यह निर्णय दिया था. अब ताज़ा परिवाद में कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देकर उसे रद्द किए जाने की मांग है और यह भी कि विवादित जगह को बाल श्रीकृष्ण का जन्मस्थान माना जाए.
अयोध्या से करीब 530 किमी दूर मथुरा में श्रीकृष्ण के 5000 से ज़्यादा मंदिर होने का दावा किया जाता है. (File Photo)
बाबरी विध्वंस के बाद
1992 में बाबरी मस्जिद गिराये जाने के बाद वृंदावन निवासी मनोहर लाल शर्मा ने मथुरा जिला अदालत में एक याचिका दाखिल कर 1968 के समझौते को चुनौती दी थी और धार्मिक पूजा स्थल एक्ट 1991 को अमान्य करने की मांग की थी, जिसके तहत 15 अगस्त 1947 के बाद से पूजास्थलों को यथास्थिति में रखने के प्रावधान हैं.
बाबरी विध्वंस के बाद ये कयास लगाए गए थे कि विश्व हिंदू परिषद व हिंदुत्व एजेंडा वाली संस्थाओं का अगला निशाना ईदगाह मस्जिद हो सकती है, जो कृष्ण जन्मस्थान के पास स्थित है. 1992 में विहिप का ‘अयोध्या, मथुरा, काशी’ का नारा एक योजना के तहत देखा गया था. उसके बाद से समय समय पर मथुरा का यह स्थल हिंदुत्व की चर्चाओं में बना रहा है.