बिहार चुनाव से पहले एनडीए में हो सकती है इस पुराने ‘दोस्त’ की एंट्री, एलजेपी पर सस्पेंस बरकरार – Navbharat Times

हाइलाइट्स:

  • बिहार चुनाव से पहले एनडीए और महागठबंधन में लगातार बदल रहे सियासी समीकरण
  • महागठबंधन से अलग कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी जल्द बन सकती है एनडीए में सहयोगी
  • चिराग पासवान को बदले तेवर से एलजेपी की रणनीति पर सस्पेंस बरकरार
  • बिहार में तीन चरणों में चुनाव, 28 अक्टूबर, 3 और 7 नवंबर को वोटिंग, 10 को आएंगे नतीजे

पटना
बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों (Bihar Election Date Announced) का ऐलान हो चुका है, एक अक्टूबर को पहले चरण की अधिसूचना भी चुनाव आयोग की ओर से जारी करने की तैयारी है। बावजूद इसके प्रदेश के दोनों बड़े गठबंधनों NDA और महागठबंधन में सियासी समीकरण पूरी तरह से साफ नहीं हो पाया है। दोनों ही गठबंधन में कौन-कौन से दल शामिल होंगे, किसे-कितनी सीटें मिलेंगी, इसको लेकर सस्पेंस बरकरार है। एनडीए में एलजेपी (LJP) के जेडीयू को लेकर बदले रुख की वजह से सब कुछ ठीक नहीं होने की चर्चा हो रही। दूसरी ओर महागठबंधन से उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) की पार्टी आरएलएसपी के अलग होने का औपचारिक ऐलान होना बाकी है। इसके साथ ही सीट शेयरिंग फॉर्म्यूला दोनों गठबंधन में क्या रहेगा इस पर भी सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।

NDA में शामिल हो सकती है कुशवाहा की पार्टी
बिहार चुनाव से पहले बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के स्वरूप और आकार अगले एक या दो दिन में बदलाव देखने को मिल सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की नेतृत्व वाली आरएलएसपी एक या दो दिन में एनडीए में शामिल होने का फैसला कर चुकी है। आरएलएसपी के महागठबंधन से अलग होने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव माधव आनंद ने कहा कि एनडीए से बातचीत चल रही है। आरएलएसपी, एनडीए का एक स्वाभाविक पार्टनर है। एक-दो दिन में फैसला हो जाएगा। दूसरी ओर बीजेपी भी चुनाव से पहले अपने किसी सहयोगी का साथ नहीं छोड़ना चाहती है ऐसे पार्टी के अंदरुनी सूत्रों के मुताबिक, आरएलएसपी के गठबंधन में आने का पार्टी पूरी तरह से कोशिश करेगी।

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महागठबंधन से क्या VIP भी हो जाएगी अलग
महागठबंधन की बात करें तो पहले जीतनराम मांझी की पार्टी HAM ने नाता तोड़ा और एनडीए में शामिल हो गई। फिर सीट बंटवारे में खास तवज्जों नहीं मिलने पर आरएलएसपी ने बगावती तेवर अख्तियार किया। यही नहीं अब मुकेश सहनी के नेतृत्व वाले VIP ने भी विकल्पों की तलाश शुरू कर दी है, चर्चा ये भी है कि जल्द ही वो भी आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन का साथ छोड़ सकते हैं। इस तरह से महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस के साथ-साथ सीपीआई-एमएल ही फिलहाल प्रमुखता से नजर आ रहे हैं।











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चिराग पासवान की क्या होगी रणनीति?
दूसरी ओर चिराग पासवान के नेतृत्व वाले एलजेपी के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं, बदले सियासी हालात में में देखना होगा कि आखिर चिराग पासवान की अगली रणनीति क्या होगी? बात करें लोक जनशक्ति पार्टी की तो इससे जुड़े विश्वसनीय सूत्र ने बताया कि संसदीय बोर्ड की ओर से रविवार रात को अपनी रिपोर्ट सौंप पार्टी आलाकमान को सौंप दी गई है, जिसके बाद आगे की रणनीति को लेकर फैसला जल्द ही लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बीजेपी बिहार के सीएम नीतीश कुमार को नाराज नहीं कर सकती है। दूसरी ओर चिराग पासवान की ओर से प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली पर लगातार सवाल उठाए गए हैं, फिर चाहे वो कोरोना संक्रमण का मामला हो, बाढ़ प्रबंधन या प्रवासी श्रमिक का मामला हो या स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे का मुद्दा। पार्टी अध्यक्ष ने प्रमुख मुद्दों को गंभीरता से उठाया।












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2005 की तर्ज पर कोई फैसला लेगी एलजेपी!
यही नहीं एलजेपी की 7 सितंबर को दिल्ली में हुई संसदीय दल की बैठक में इस बात संकेत मिले थे कि LJP बिहार की 243 सीटों में से 143 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। पार्टी ने 2015 के चुनावों में 42 उम्मीदवार उतारे थे। अब पार्टी को उम्मीद है कि वो 2020 में बदले तेवर के साथ फरवरी 2005 जैसा प्रदर्शन कर सकती है। चुनाव के बाद त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में एलजेपी किंगमेकर की भूमिका में नजर आ सकती है। दरअसल 2005 विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के पिता एलजेपी के दिग्गज नेता रामविलास पासवान के नेतृत्व में पार्टी आरजेडी के खिलाफ उम्मीदवारी की थी, उस समय दोनों ही दल केंद्र में तत्कालीन यूपीए सरकार में सहयोगी थे।












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2005 में एलजेपी ने जीती थी 29 सीटें, 2015 में आई महज दो सीटें
2005 और 2010 एलजेपी कांग्रेस के साथ थी और 2015 में जेडीयू एनडीए में नहीं था। 2005 के चुनाव में 17 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव जीता था। उस समय आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार नहीं बना सकी। एलजेपी उस समय आरजेडी से अलग कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरी थी। उसने 178 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिसमें से 29 सीटें जीती थीं, वहीं कांग्रेस ने 84 सीट पर उम्मीदवारी करते हुए केवल 10 सीटें हासिल की थीं। बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने 92 सीटें अपने नाम की थी।

बिहार में आठ महीने के बाद अक्टूबर 2005 में फिर से चुनाव हुए। इस बार बीजेपी-जेडीयू ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 143 विधायकों के साथ सरकार बनाई। उस चुनाव में एलजेपी 10 और आरजेडी 54 सीटों पर सिमट गई। 2010 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी की सीटें घटकर 3 रह गई। वोट प्रतिशत के साथ-साथ सीटों के लिहाज से भी पार्टी को नुकसान हुआ। 2015 में बीजेपी के साथ गठबंधन में एलजेपी ने 42 सीटों पर उम्मीदवारी की, उस समय पार्टी को दो सीटें ही जीतने में कामयाबी मिली।

एनडीए के सीट शेयरिंग फॉर्म्यूले पर सभी की निगाहें
पिछले चार विधानसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन को देखते हुए, एलजेपी की कोशिश केंद्र में बीजेपी के साथ सहयोगी की भूमिका में बनी रहना चाहती है, हालांकि, बिहार को लेकर पार्टी का प्लान बिल्कुल अलग है। चिराग कई बार कह चुके हैं कि एलजेपी का प्रदेश में जेडीयू के साथ कोई समझौता नहीं है। इसी तरह, जेडीयू नेता भी यह कह चुके हैं कि उन्होंने कभी भी एलजेपी के साथ मिलकर राज्य विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा है। 2015 के चुनाव एलजेपी जब एनडीए के साथ उस समय नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने आरजेडी के साथ महागठबंधन में चुनाव लड़ा था। बाद में ये महागठबंधन टूट गया था। ऐसे में बदले हालात में सभी की निगाहें चिराग पासवान पर है कि आखिर उनकी आगे की रणनीति क्या होगी?

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