Bihar Assembly Election 2020: बिहार में बजी चुनाव आयोग की सीटी, अखाड़ा तैयार नहीं – दैनिक जागरण

पटना, आलोक मिश्र। बिहार के चुनावी अखाड़े में पहलवान अभी अपना पाला दुरुस्त करने में ही उलझे हैं कि चुनाव आयोग की सीटी बज गई। अब यह तय हो गया है कि दस नवंबर को नई सरकार की सूरत सामने आ जाएगी। अब वह स्पष्ट होगी या धुंधली, यह समय ही बताएगा। अचानक तारीखों की घोषणा से बहुतों को संभलने का मौका भी नहीं मिल सका है, क्योंकि एनडीए और महागठबंधन में सीटों को लेकर अभी तक दलों के जुड़ने-टूटने का सिलसिला अभी जारी है। टीमें बन पातीं, इससे पहले ही यह घोषणा हो गई। अब इस घोषणा के बाद तेजी से समीकरण बदलने की उम्मीद है।

बिहार में चुनाव को लेकर तरह-तरह की अटकलें जारी थीं। एक कोने से यह हवा भी उड़ रही थी कि चुनाव टल भी सकते हैं। लेकिन शुक्रवार की सुबह जब किसान बिल के विरोध में विपक्षी दल अपने आंदोलन को धार देने में जुटे थे, उसी समय चुनाव आयोग की दोपहर में प्रेस कांफ्रेंस की आई सूचना से माहौल बदल गया। दोपहर को मुख्य चुनाव आयुक्त सामने आए और तीन चरणों में चुनाव की घोषणा कर गए। चूंकि यह चुनाव कोरोना काल में हो रहा है, इसलिए तमाम नियम-कायदे व दिशा-निर्देश भी तय कर दिए गए हैं। द्वारे-द्वारे जाने व सभाओं को लेकर पुरानी प्रेक्टिस काम नहीं आने वाली। वर्चुअल रैली ही सहारा है। हालांकि सभी दलों ने इसको लेकर अपनी तैयारी कर रखी है। छोटे-छोटे वाट्सएप ग्रुप के जरिये मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने में लगे हैं, लेकिन इसकी सफलता को लेकर सभी में संशय बरकरार है।

कोरोना काल में सुरक्षात्मक चुनाव के लिए मुजफ्फरपुर में रिहर्सल करती टीम। जागरण

बहरहाल चुनाव की घोषणा होते ही सभी ने इसका स्वागत किया है कि वे लड़ाई को तैयार हैं। आज से तीन महीने पहले यह समझा जा रहा था कि बिहार में लड़ाई आमने-सामने की होगी। एक तरफ एनडीए तो दूसरी तरफ महागठबंधन में अधिकांश दल लामबंद थे। एनडीए में लोजपा के ही थोड़े-बहुत नीतीश विरोधी स्वर उभर रहे थे, लेकिन उसे भी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था। समझा जा रहा था कि सत्तारूढ़ नीतीश को बनाए रखने और हटाने के मुद्दे पर ही चुनाव होगा। वैसी ही बिसात बिछी दिख भी रही थी, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा इस समीकरण पर भारी पड़ने लगी। बड़े दलों के आगे सीटों पर बात न बनने से किले दरकने लगे। महागठबंधन में तेजस्वी यादव का विरोध करके पहले हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा अलग होकर नीतीश के साथ जा बैठा और उसके बाद अब राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समता पार्टी (रालोसपा) के उपेंद्र कुशवाहा तेजस्वी को नीतीश की टक्कर का न मानते हुए गुरुवार को अलग राह निकल लिए।

एनडीए में लोक जनशक्ति पार्टी नीतीश विरोध पर तुली है और 143 सीटों पर अकेले लड़ने की बात कह रही है। लोजपा की मांग विधानसभा में 36 और विधान परिषद में दो सीटों की है। एनडीए में उनका मामला बिगड़ता देख रालोसपा ने अपनी संभावना टटोलने के लिए भाजपा से संपर्क साधा, लेकिन पांच से ज्यादा वहां भी मिलती नहीं दिख रही। जबकि इससे ज्यादा वह महागठबंधन में छोड़कर आई है।

अभी तक आमने-सामने के मोर्च पर डटे एनडीए और महागठबंधन में पड़ती दरारों से तीसरे मोर्चे की तस्वीर उभरती दिखने लगी है। इन बड़े दो गठबंधनों में आपसी खींचतान के बीच छोटे दल अपनी संभावनाएं तलाशने में जुट गए हैं। जनअधिकार पार्टी (जाप) के पप्पू यादव छोटी पार्टयिों को एकजुट करने में जुटे हैं। वह पहले ही चिराग पासवान को मुख्यमंत्री का दावेदार बता उनकी महत्वाकांक्षा को हवा दे चुके हैं, जो अब गुल खिलाती नजर आ रही है और एनडीए में दरार का कारण बन रही है। वहीं महागठबंधन से दूरी बनाने और एनडीए में संभावनाओं के द्वार बंद होते देख रालोसपा का ठौर भी इनके साथ ही दिखने लगा है।

असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम पहले ही समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक) देवेंद्र यादव की पार्टी से गठबंधन कर चुकी है। यह खेमा भी आगे इनके साथ जुड़ जाए तो ताज्जुब नहीं होगा। दरअसल छोटे दलों का एकमात्र मकसद सदन में अपनी छोटी ऐसी हिस्सेदारी का है, जिसके बिना सरकार का गठन मुश्किल हो। इन्हीं कवायदों के बीच आज चुनाव आयोग की बजी घंटी ने अस्त-व्यस्त पहलवानों को सावधान की मुद्रा में ला दिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सप्ताह भर के सीमित समय में कौन से समीकरण बनते हैं और किसके बिगड़ते हैं?

[स्थानीय संपादक, बिहार]

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