Bihar Election Dates: बिहार में पड़ रही तीसरे मोर्चे की बुनियाद, क्‍या चिराग व कुशवाहा भी आएंगे साथ? – दैनिक जागरण

पटना, अरुण अशेष। Bihar Election 2020 Dates: अबतक यही माना जा रहा था कि बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) दो बड़े गठबंधनों (Alliances) के बीच होगा। माना जा रहा था कि कुछ इलाके और खास जातियों में असर रखने वाले छोटे दल दो बड़ी गोलबंदी में किसी एक के साथ जुड़ जाएंगे। लेकिन अब यह स्थिति नहीं रही। राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) और महागठबंधन (Grand Alliance) से राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के मोहभंग से तीसरे मोर्चे (Third Front) की बुनियाद पड़ गई लगती है। एलजेपी, पप्पू यादव (Pappu Yadav) की जन अधिकार पार्टी (JAP) और मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) अगर इन दोनों दलों से जुड़ती है तो कुछ और छोटे दलों को मिलाकर असरदार तीसरे मोर्चे का निर्माण हो सकता है। फिर भी यह संभावना ही है। पल-पल बदलते नेताओं के मन-मिजाज और किसी सिद्धांत के प्रति कठोर प्रतिबद्धता की अनुपस्थिति में पक्के तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है।

कुशवाहा के सामने अकेले लड़ने या तीसरे मोर्चे के विकल्‍प

लोकसभा चुनाव के समय आरएलएसपी विपक्षी महागठबंधन (Mahagathbandhan) से जुड़ गई। सब ठीक चला रहा था। एक समय में पार्टी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने कहा कि उन्हें तेजस्वी (Tejaswi Yadav) के नेतृत्व से परहेज नहीं है। अब कह रहे हैं कि तेजस्वी के नेतृत्व वाले राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) से उनका समझौता नहीं हो सकता है। उनकी बात मान ली जाए तेजस्वी के बदले किसी और को आरजेडी का नेता बनाना पड़ेगा। यह असंभव है। इसका सीधा हिसाब यह है कि वे आरजेडी की अगुआई वाले किसी मोर्चा में शामिल नहीं होंगे। कुशवाहा को तेजस्वी की तरह उन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) से भी परहेज रहेगा। वहां भी उनकी बात नहीं मानी जा सकती है कि एनडीए पहले नीतीश की जगह दूसरा चेहरा लाए, तब उससे जुड़ेंगे। दोनों बड़े गठबंधन से मिलने वाली संभावित नकार को देखते हुए उपेंद्र कुशवाहा के सामने दो रास्ते बचते हैं। पहला- अकेले चुनाव मैदान में जाएं। दूसरा- तीसरे मोर्चे की संभावना की तलाश करें।

चिराग पासवान जगा रहे तीसरे मोर्चे की उम्मीद

तीसरे मोर्चे की उम्मीद चिराग पासवान (Chirag Paswan) भी जगा रहे हैं। उनके मन में भी राज्य की राजनीति करने का भाव पनप रहा है। वे युवा हैं और चुनाव में उनके पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं है। धारणा यह है कि चिराग के मुंह से अभी तक जो कुछ निकल रहा था, उसकी आपूर्ति भारतीय जनता पार्टी (BJP) की ओर से हो रही थी, लेकिन कुछ अपने मन से बोल गए तो बीजेपी भी पीछे हट गई। उपेंद्र और पप्पू यादव की तरह चिराग को भी नीतीश कुमार पसंद नहीं हैं। जाहिर है, वे तीसरे मोर्चे की संभावना को मजबूत कर रहे हैं।

पप्पू को भी करीब लाता नीतीश व तेजस्‍वी का विरोध

उपेंद्र कुशवाहा के लिए अच्छी बात यह है कि उन्हीं की तरह जन अधिकार पार्टी (JAP) के संस्थापक राजेश रंजन ऊर्फ पप्पू यादव (Pappu Yadav) के मन में भी तेजस्वी और नीतीश के प्रति नकार का भाव है। एक ही विषय पर समान भाव उपेंद्र कुशवाहा को पप्पू यादव के करीब लाता है। जुड़ने का एक सूत्र और भी है। दोनों नेता पिछड़ी बिरादरी के दो प्रभावशाली समूहों को कुछ हद तक ही सही, प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। हालांकि, खराब बात यह है कि दोनों को अलग-अलग चुनावों में अपनी क्षमता की परख करने का मौका मिला, पर अच्छा अनुभव नहीं रहा। पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी 2015 के विधानसभा चुनाव में एक सीट पर भी कामयाब नहीं हुई। वही हाल लोकसभा के पिछले चुनाव में आरएलएसपी का भी रहा। पार्टी सभी पांच सीटों पर चुनाव हार गई। हालांकि, किसी चुनाव की हार-जीत से नेताओं की सेहत पर इतना असर नहीं होता है कि वे अगली बार चुनाव लड़ना ही छोड़ दें।

ओवैसी व यशवंत सिन्‍हा भी तीसरे मोर्चे की कर रहे वकालत

संयोग यह है कि एआइएमआइएम के असाउद्दीन ओवैसी भी तीसरे मोर्चे की वकालत कर रहे हैं। उन्होंने हाल ही में अपनी पटना यात्रा के दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव की पार्टी समाजवादी डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ समझौते के आधार पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। इन दोनों को उपेंद्र कुशवाहा और पप्पू यादव से परहेज नहीं है। पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा तीन महीने से बिहार का भ्रमण कर रहे हैं। बदलो बिहार अभियान के तहत उनसे कुछ और नेता भी जुड़े हैं। पूर्व सांसद अरुण कुमार की भी एक पार्टी है- भारतीय सब लोग पार्टी। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी बिहार विधानसभा चुनाव में दिलचस्पी दिखा रही है। कुल मिलाकर पांच-छह दल तीसरा मोर्चा के लिए तैयार दिख रहे हैं। यह संख्या बढ़ सकती है। इन सबको मिलाकर तीसरा मोर्चा आसानी से बन सकता है। मोर्चा को परिणाम के तौर पर क्या हासिल होगा, यह कहना मुश्किल है। हां, एक बात तय है कि वहां उम्मीदवारों की कमी नहीं होगी।

डाउनलोड करें जागरण एप और न्यूज़ जगत की सभी खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस

Related posts