गहलोत समर्थक विधायक नाराज हो सकते हैं, पायलट समर्थकों को सम्मान न मिलने का डर; लेकिन मुख्यमंत्री की राह आसान नहीं

सचिन पायलट खेमे के बागी विधायकों को पार्टी में फिर मिली जगह से अशोक गहलोत समर्थक कई विधायक नाराज हैं। अपने नाराज विधायकों से मुख्यमंत्री गहलोत ने संदेश दिया- भूलो, माफ करो और आगे बढ़ो…। लेकिन, सियासी गलियारों में सवाल यह है कि क्या गहलोत ने जो सलाह दी है, वैसा हो पाएगा? क्या खुद गहलोत और उनके समर्थक विधायक बागी विधायकों को माफ कर पाएंगे? बहरहाल, इन सवालों का जवाब तो वक्त ही देगा। लेकिन, लग ये रहा है कि गहलोत की राह अब भी आसान नहीं होगी। इसके 4 मुख्य कारण हैं।

1. विधायकों की उम्मीदें पूरी कैसे करेंगे
गहलोत समर्थक विधायक बगावत के दौर में एक महीने तक एकजुट रहे। इनकी वजह से ही गहलोत की कुर्सी भी बची। गहलोत के समर्थक विधायक कई उम्मीदें लगाए बैठे हैं। कुछ मंत्री बनना चाहते हैं तो कुछ दूसरे पदों पर नियुक्ति के सपने संजोए हैं। बागी विधायकों की वापसी का ये विरोध कर रहे हैं। गहलोत समर्थकों को डर है कि कहीं बागी विधायक उनके मंत्री पद पर कब्जा न कर लें। ये विधायक बागियों को सम्मान तक नहीं देना चाहते।

2. सचिन खेमे के विधायकों को क्या फिर मिलेंगे पद
सचिन पायलट और उनके समर्थक 21 विधायकों के लिए भी आगे की राह मुश्किल है। हो सकता है कि पायलट को संगठन में बड़ा पद देकर उन्हें राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति से दूर कर दिया जाए। लेकिन, सचिन के समर्थक विधायक क्या करेंगे? इन विधायकों को कोई भी महत्वपूर्ण पद देने का गहलोत खेमा खुलकर विरोध करेगा। ऐसे में फिलहाल इन विधायकों के सामने देखो और इंतजार करो की नीति पर चलने के सिवाय कोई विकल्प नजर नहीं आता। उनके सब्र का इम्तिहान होगा। गहलोत के लिए भी संतुलन बनाए रखने की चुनौती होगी।

3. गहलोत पर दबाव बढ़ेगा
माना जा रहा है कि सचिन की पार्टी में वापसी का कोई फॉर्मूला है। हालांकि, इसकी जानकारी चंद लोगों को ही होगी। मान लीजिए, अगर पायलट समर्थक विधायकों को कोई पद दिया जाता है तो गहलोत के समर्थक विधायक नाराज हो जाएंगे। इसकी झलक जैसलमेर में मिली थी। गहलोत समर्थक विधायकों ने कहा था- अगर 22 लोग मिलकर दबाव बना सकते हैं तो हमारी संख्या तो बहुत ज्यादा है।आलाकमान को हमारा पक्ष भी सुनना पड़ेगा। बात यह कि अगर इन विधायकों को संतुष्ट नहीं किया गया तो असंतोष बढ़ेगा। फिर कोई बगावत या विद्रोह हो सकता है।

4. क्या गहलोत और पायलट के रिश्ते सुधर पाएंगे
बगावत के दौर में अपनी सरकार बचा कर गहलोत ने पार्टी में अपना कद काफी ऊंचा कर लिया है। फिलहाल उन्हें प्रदेश में कोई चुनौती मिलती नजर नहीं आती। दिल्ली में बैठा आलाकमान तो बिल्कुल इस स्थिति में नहीं है कि गहलोत से मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने को कहे। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि अपने विरोधियों को निपटाने में माहिर गहलोत स्वयं बागी विधायकों को माफ कर पाएंगे? सचिन पायलट और गहलोत के रिश्तों में बनी तल्खी कम या खत्म होगी? इसमें संदेह है।

5. क्या गहलोत बनेंगे राष्ट्रीय अध्यक्ष
सिर्फ एक स्थिति में ही गहलोत की राजस्थान से विदाई हो सकती है, अगर उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाए। क्योंकि, पार्टी एक साल से अस्थाई अध्यक्ष के भरोसे चल रही है। कई नेता मांग कर रहे हैं कि स्थायी अध्यक्ष होना चाहिए। राहुल गांधी इसके लिए तैयार नहीं हैं। सोनिया की सेहत ठीक नहीं है। माना जा रहा है कि अगर गांधी परिवार से बाहर किसी व्यक्ति को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने पर सहमति बनती है तो फिर गहलोत पहली पसंद होंगे। हालांकि, ये भी तय है कि गहलोत की विदाई के बावजूद मुख्यमंत्री पद का ताज सचिन के बजाय उनके किसी समर्थक के सिर पर ही सजेगा। व्यक्तिगत बातचीत में गहलोत पहले कई बार इससे साफ इनकार कर चुके हैं। उन्होंने हमेशा यही कहा कि उनके लिए राजस्थान सबसे पहले है, और वे यहीं रहकर खुश हैं।

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सचिन पायलट (बाएं) और अशोक गहलोत के बीच पिछले दिनों जो घमासान हुआ, उसके बाद इस बात की संभावना कम है कि दोनों के रिश्ते सामान्य हो पाएंगे। (फाइल)

Source: DainikBhaskar.com

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