न्यूज डेस्क, अमर उजाला, जयपुर
Updated Wed, 12 Aug 2020 05:08 PM IST
सचिन पायलट (फाइल फोटो)
– फोटो : ट्विटर
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अभी तक बागी तेवर में नजर आ रहे सचिन पायलट की कांग्रेस में वापसी के साथ ही राजस्थान में बीते लंबे समय से चल रहा राजनीतिक संकट आखिरकार समाप्त हो गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, जिनके खिलाफ पायलट ने बगावत की थी और उन्होंने भी पायलट को खूब खरी-खोटी सुनाई थी, वह भी अब कह रहे हैं कि वह पायलट खेमे की ओर से उठाई गई शिकायतों को सुनेंगे।
पायलट की पार्टी में वापसी उनकी पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी से मुलाकात में तय हुई। दरअसल, वह प्रियंका थीं जिन्होंने गहलोत और पायलट के बीच विवाद में हल की संभावना खोज निकाली। लेकिन पायलट की वापसी सुनिश्चित करने का फैसला कांग्रेस ने यूं ही नहीं लिया, इसके पीछे कुछ बहुत अहम कारण और चुनावी समीकरण रहे।
पायलट की वापसी में वोट बैंक का खेल
कांग्रेस को पायलट की जरूरत न केवल राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए बल्कि लोकसभा चुनाव के लिए भी महसूस हुई। प्रियंका साल 2022 में उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों के लिए भी जमीन तैयार कर रही हैं। राज्य में करीब 55 फीसदी सीटें गुर्जर समुदाय के प्रभुत्व वाली हैं, जहां पायलट का प्रभाव अच्छा है।
अगर पायलट कांग्रेस छोड़ देते तो पार्टी को खासा नुकसान उठाना पड़ता। इसके अलावा यह समुदाय मध्यप्रदेश की 14 सीटों की राजनीति भी तय करता है। साथ ही, हरियाणा, दिल्ली और उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों की बात करें तो कई विधानसभा क्षेत्रों में गुज्जर समुदाय मजबूत स्थान रखता है।
साल 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत का एक कारण गुर्जर समुदाय से मिला समर्थन था। पार्टी का करीब 70 फीसदी वोटबैंक इसी समुदाय का है। जब प्रियंका ने समुदाय पर पायलट के प्रभाव को न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश में समझा, उन्होंने तुरंत गहलोत और पायलट के बीच चल रहे विवादों को खत्म करने की शुरुआत कर दी।
कांग्रेस की युवा ब्रिगेड ने बनाया दबाव
एक और चीज जिसने पायलट के पक्ष में काम किया वह था कांग्रेस की युवा ब्रिगेड की ओर से बनाया जा रहा दबाव था। कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा और जितेंद्र सिंह जैसे युवा नेताओं ने पार्टी के शीर्ष नेताओं को स्पष्ट बताया कि कि अगर सचिन पायलट पार्टी से बाहर होते हैं तो इसका युवा नेताओं पर गलत प्रभाव पड़ सकता है और कई युवा नेता पार्टी छोड़ सकते हैं।
वहीं, जम्मू-कश्मीर के अब्दुल्लाह परिवार ने भी इस आग को बुझाने में अहम भूमिका निभाई। फारूक अब्दुल्लाह और उनके बेटे ओमर ने गुलाम नबी आजाद और अहमद पटेल के माध्यम से पायलट के लिए माहौल तैयार किया और उनके प्रयास रंग भी लाए। अब्दुल्लाह परिवार के गांधी परिवार से अच्छे संबंध सर्वविदित हैं।
गहलोत से नाखुश है पार्टी का एक वर्ग
इसके साथ ही कांग्रेस का एक वर्ग अशोक गहलोत से खुश नहीं है। जब वह पार्टी के महासचिव थे और उनका ठिकाना दिल्ली में था, उस समय से ही उनके कई ‘पीड़ित’ कहते आ रहे हैं कि गांधी परिवार की गहलोत पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता कांग्रेस को राजस्थान में बहुत महंगी पड़ सकती है।
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