केरल विमान हादसे की जांच में ब्लैक बॉक्स का क्या महत्व है? विमान हादसे की जांच में किस तरह मदद करती है यह डिवाइस?

दुबई से 190 लोगों को लेकर भारत आ रहा बोइंग 737-800 विमान शुक्रवार को कोझीकोड (केरल) में उतरते समय टेबलटॉप रनवे पर ओवरशूट कर गया। 35 फीट गहरी खाई में गिरकर दो टुकड़े हो गया। इस हादसे में 18 लोगों की मौत हो गई। कई घायल हो गए। जांच अधिकारियों को एयर इंडिया एक्सप्रेस फ्लाइट का ब्लैक बॉक्स मिल गया है। अब उसके सहारे यह जानने की कोशिश की जा रही है कि हादसा क्यों हुआ, किन परिस्थितियों में हुआ, उस समय विमान की गति क्या थी, पायलट क्या बात कर रहे थे।

क्या होता है ब्लैक बॉक्स?

  • ब्लैक बॉक्स का रंग काला नहीं होता बल्कि ऑरेंज होता है। यह स्टील या टाइटेनियम से बनी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डिंग डिवाइस है जो विमान के क्रैश होने पर जांचकर्ताओं को उसकी वजह जानने में मदद करती है।
  • ब्लैक बॉक्स को फ्लाइट रिकॉर्डर भी कहते हैं। यह दो तरह के होते हैं। फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (एफडीआर) और कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (सीवीआर)। दोनों डिवाइस को मिलाकर एक जूते के डिब्बे के आकार की यूनिट होती है।
  • एफडीआर हवा की स्पीड, ऊंचाई, ऊपर जाने की स्पीड और फ्यूल फ्लो जैसी करीब 80 गतिविधियों को प्रति सेकंड रिकॉर्ड करता है। इसमें 25 घंटे का रिकॉर्डिंग स्टोरेज रहता है।
  • सीवीआर कॉकपिट की आवाजें रिकॉर्ड करता है। पायलटों की आपसी बातचीत, उनकी एयर ट्रैफिक कंट्रोल से हुई बातचीत को रिकॉर्ड करता है। साथ ही स्विच और इंजन की आवाज भी इसमें रिकॉर्ड होती है।

ब्लैक बॉक्स की जरूरत क्यों पड़ी?

  • द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश कॉम्बैट एयरक्राफ्ट में रेडियो, राडार और इलेक्ट्रॉनिक नेविगेशनल टूल्स के साथ इस बॉक्स का जन्म हुआ। उस समय तक प्लेन क्रैश के मामलों में जांचकर्ताओं को कुछ भी हाथ नहीं लगता था।
  • यह गोपनीय इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस थी जिसे नॉन-रिफ्लेक्टिव ब्लैक बॉक्स में रखा जाता था। बाद में इसने दो ऑरेंज डिब्बों की शक्ल ले ली, ताकि दुर्घटना होने पर जल्द से जल्द इन्हें खोजा जा सके।
  • शुरुआती दिनों में रिकॉर्डर के तौर पर मेटल स्ट्रिप का इस्तेमाल होता था। जो आगे चलकर मैग्नेटिक स्ट्रिप और फिर सॉलिड स्टेट मेमोरी चिप्स बन गई। ब्लैक बॉक्स किसी भी कमर्शियल फ्लाइट और कॉर्पोरेट जेट में अनिवार्य है।
  • यह ब्लैक बॉक्स विमान की फ्लाइट हिस्ट्री का दस्तावेज है, जिसे एयरक्राफ्ट की पूंछ में रखा जाता है। ताकि क्रैश होने पर उन पर कम से कम असर हो। सीवीआर में दो घंटे की कॉकपिट की आवाजें रिकॉर्ड हो सकती है।

ब्लैक बॉक्स को हासिल कैसे करते हैं?

  • ब्लैक बॉक्स अंडरवाटर लोकेटर बीकन (यूएलबी) से लैस है। यदि कोई विमान पानी में डूबे, तो बीकन 14,000 फीट की गहराई तक सोनार और ऑडियो इक्विपमेंट से डिटेक्ट होने वाली अल्ट्रासॉनिक पल्स भेजता है।
  • यह बीकन बैटरी से चलता है जिसकी शेल्फ लाइफ 6 साल होती है। एक बार संकेत देना शुरू करने पर यह 30 दिन तक यानी बैटरी का पावर खत्म होने तक प्रति सेकंड संकेत भेजता है।
  • ब्लैक बॉक्स खारे पानी में 6,000 मीटर की गहराई में भी काम करता है। यदि कोई विमान जमीन पर क्रैश होता है तो वह अल्ट्रासॉनिक पिंग नहीं भेजता। इससे क्रैश साइट के आसपास ही जांचकर्ताओं को इसकी तलाश करनी पड़ती है।

क्या ब्लैक बॉक्स की जगह कोई और डिवाइस लग सकता है?

  • इस बात की संभावनाएं टटोली जा रही हैं कि छोटे ब्लैक बॉक्स की जगह रियल टाइम में सभी आवश्यक डेटा सीधे ग्राउंड-बेस्ड स्टेशन तक कैसे भेजा जाए।
  • एयर-टू-ग्राउंड सिस्टम सैटेलाइट की मदद से फ्लाइट डेटा को जमीन पर भेजता है। इससे ब्लैक बॉक्स तलाशने की आवश्यकता नहीं रहेगी। जांच का समय बचेगा। संकट समय में विमान को बचाया भी जा सकेगा।
  • सैटेलाइट और जीपीएस की क्षमता, डेटा स्टोरेज स्पीड और बैटरी लाइफ आदि पर भी वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। ताकि नए इनोवेशन तेज और हल्के हो।
  • चुनौती ऐसे सिस्टम को बनाने की है, जो बड़ी मात्रा में वॉल्यूम को मैनेज कर सके। कमर्शियल फ्लाइट की सभी एक्टिविटी ट्रैक कर सके। खास तौर पर सैटेलाइट और डेटा स्टोरेज की मदद से।

ब्लैक बॉक्स के डेटा को एनालाइज करने में कितना वक्त लगता है?

  • आम तौर पर ब्लैक बॉक्स से निकलने वाले डेटा को 10-15 दिन में एनालाइज किया जाता है। इस बीच, हादसे से ठीक पहले एयर ट्रैफिक कंट्रोलर से पायलटों की बातचीत को एनालाइड करते हैं।
  • जांच अधिकारियों को यह समझने में मदद करता है कि क्या पायलटों को पता था कि विमान हादसे की ओर बढ़ रहा है। यह भी समझ आ रहा है कि विमान को काबू करने में क्या उन्हें दिक्कत हुई।
  • इसके अलावा जांच अधिकारी एयरपोर्ट पर अलग-अलग डेटा रिकॉर्डर को भी देखते हैं। यह रनवे पर टचडाउन के पॉइंट को बताते हैं और टच डाउन के समय विमान की स्पीड बताते हैं।

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Source: DainikBhaskar.com

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