राजनीति के इस तिराहे पर खड़े हैं सचिन पायलट, किधर बढ़ाएंगे कदम? – आज तक

  • सचिन पायलट अब आगे क्या सियासी कदम उठाएंगे
  • पायलट बीजेपी में जाएंगे या फिर बनाएंगे अपनी पार्टी

राजस्थान में कांग्रेस के अंदर चल रहे सियासी वर्चस्व की जंग में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत फिलहाल सचिन पायलट पर भारी पड़ गए हैं. कांग्रेस ने पायलट को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है. इतना ही नहीं उनके दो समर्थक मंत्रियों की भी गहलोत कैबिनेट से छुट्टी कर दी गई है. अब सचिन पायलट राजनीति के तिराहे पर आकर खड़े हो गए हैं यानी उनके सामने तीन सियासी विकल्प हैं. ऐसे में देखना होगा कि आगे किस दिशा में वे अपना कदम बढ़ाते हैं.

कांग्रेस में बने रहने का विकल्प

सचिन पायलट के लिए कांग्रेस में सुलह समझौते के रास्ते अभी बंद नहीं हुए हैं, क्योंकि पार्टी से उन्हें बाहर निकाला नहीं गया बल्कि प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया है. वो अभी भी कांग्रेस का हिस्सा हैं और पार्टी के कई युवा उनके समर्थन में खड़े हैं. ऐसे में सचिन पायलट कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के सामने अपने मान-सम्मान के लिए दबाव डाल सकते हैं. पायलट अगर कांग्रेस आलाकमान से संवाद करेंगे तो सुलह का रास्ता निकल सकता है, क्योंकि पार्टी का एक बड़ा धड़ा उनके साथ खड़ा है.

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कांग्रेस में रहने के नफा-नुकसान

पायलट ने बगावत का झंडा उठाकर अपना सियासी नुकसान जरूर किया है. अब न तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं और न ही डिप्टी सीएम. इतना ही नहीं पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के बीच अपना विश्वास भी खो दिया है. अगर पार्टी नहीं छोड़ते हैं तो आगे के सियासी राह के दरवाजे खुलेंगे, क्योंकि कांग्रेस में जो उनका कद है वो किसी दूसरी पार्टी में भी मिले इसकी कोई गारंटी नहीं है. ऐसे में कांग्रेस में रहते हुए अपने लोगों को मजबूत करने के साथ-साथ अपने काम से कांग्रेस नेतृत्व का विश्वास जीतकर अपनी खोई हुई साख वापस पा सकते हैं. पायलट की उम्र भी कोई खास नहीं है और आगे बढ़ने के मौके मिल सकते हैं.

बीजेपी में एंट्री का विकल्प

सचिन पायलट के पास दूसरा विकल्प है कि अपने मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया की तर्ज पर कांग्रेस से इस्तीफा दें और बीजेपी में शामिल हो जाएं. इसके लिए पायलट को अपने समर्थकों को बीजेपी में शामिल होने और विधायकी से इस्तीफा देने के लिए तैयार करना होगा. वहीं, बीजेपी ने पायलट और उनके समर्थकों के स्वागत के लिए अपने सारे दरवाजे खोल दिए हैं.

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बीजेपी में जाने के नफा-नुकसान

सचिन पायलट अगर बीजेपी में जाकर कांग्रेस की सरकार गिराने में सफल रहते हैं तो गहलोत से अपना सियासी बदल ले लेंगे. इतना ही नहीं अपने समर्थकों को सरकार और संगठन में अहम जिम्मेदारी भी दिलाने में सफल हो जाएंगे. बीजेपी उन्हें मुख्यमंत्री बनाए यह बहुत मुश्किल है. गहलोत को सत्ता से हटाने के लिए पहले तो उन्हें करीब 30 विधायकों का समर्थन जुटाना होगा और उनसे इस्तीफा दिलाना होगा. यह काफी अहम और चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है. वहीं, अगर बीजेपी में जाकर भी गहलोत सरकार को गिराने में सफल नहीं रहते हैं तो उनकी राजनीतिक साख को तगड़ा झटका लगेगा. इतना ही नहीं बीजेपी में भी दूसरे दलों से आने वाले नेताओं की क्या अहमियत है वो जगजाहिर है.

नई पार्टी बनाने का विकल्प

सचिन पायलट के सामने तीसरा रास्ता बीजेपी-कांग्रेस से अलग अपनी पार्टी बनाने का है. इसके लिए कांग्रेस के एक तिहाई विधायक चाहिए अगर ऐसा नहीं होता है तो उन्हें अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस और विधायकी से इस्तीफा देना होगा. सचिन पायलट नई पार्टी का गठन कर उसकी अगुवाई करें और गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को सीधे चुनौती दें. पायलट के इस विकल्प पर सबसे ज्यादा विचार किया जा रहा है कि क्योंकि उनके समर्थक भी इस पर मंथन कर रहे हैं.

नई पार्टी के नफा-नुकसान

सचिन पायलट नई पार्टी बनाते हैं तो उनके लिए अपनी क्षमता को दिखाने का पूरा मौका होगा. उपचुनाव में अपने समर्थकों के साथ उतरना होगा, जो काफी चुनौती भरा है. हालांकि, राजस्थान का राजनीतिक इतिहास बताता है कि दो पार्टी सिस्टम ही चलता है. अगर पायलट तीसरा मोर्चा बनाने का रास्ता चुनते हैं, तो यह जोखिमभरा कदम साबित हो सकता है.

क्षेत्रीय पार्टी के लिए बहुत अच्छा स्कोप राजस्थान में नहीं है. प्रदेश में किरोड़ीलाल मीणा, कर्नल बैसला, दिग्विजय सिंह, हनुमान बेनीवाल और घनश्याम तिवाड़ी जैसे नेता क्षेत्रीय पार्टी बनाकर किस्मत आजमा चुके हैं, लेकिन सभी फेल रहे हैं. ऐसे में नई पार्टी का फैसला काफी चुनौतीपूर्ण माना जा सकता है.

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