भारत ने चीन की ऐप्स बैन करने का फ़ैसला देर से किया? – BBC हिंदी


चीन से सरहद पर तनातनी के बीच सोमवार को भारत सरकार ने 59 ऐप्स बंद करने की घोषणा की है. इन ऐप्स में लोकप्रिय सोशल प्लेटफ़ॉर्म टिकटॉक, वीचैट अलीबाबा ग्रुप का यूसी ब्राउज़र भी शामिल हैं. सवाल ये है कि क्या सरकार ने ये फ़ैसला देरी से लिया?

सरकार की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहीं पर भी चीन का ज़िक्र नहीं है, लेकिन जिन ऐप्स को प्रतिबंधित किया गया है, उनमें से कई सारे ऐप्स या तो चीन में बने हैं या उनका स्वामित्व चीनी कंपनियों के पास है.

सरकार ने ये फ़ैसला क्यों लिया?

भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि उन्हें कई स्त्रोतों से इन ऐप्स को लेकर शिकायत मिली थी. एंड्रॉयड और आईओएस पर ये ऐप्स लोगों के निजी डेटा में भी सेंध लगा रहे थे. इन ऐप्स पर पाबंदी से भारत के मोबाइल और इंटरनेट उपभोक्ता सुरक्षित होंगे. यह भारत की सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता के लिए ज़रूरी है.

सरकार भले ही डेटा सुरक्षा या उपभोक्ताओं के हित की बात करे लेकिन सभी यही कह रहें हैं कि सरकार ने ये फ़ैसला भारत-चीन के बीच मौजूदा सीमा विवाद के मद्देनज़र लिया है.

सोशल मीडिया पर चीन के सामान का बहिष्कार करने के कैंपेन चलाए जा रहे हैं. सरकार पर भी दबाव बढ़ रहा था. भारत अब चीन के साथ आर्थिक संबंधों की समीक्षा कर रहा है और इस बैन को इसी समीक्षा से जोड़कर देखा जा रहा है.

डेटा सुरक्षा के जानकार पूछ रहें हैं कि सरकार को अभी ही क्यों डेटा सुरक्षा की फ़िक्र हो रही है, अगर सरकार इस मुद्दे पर वाक़ई गंभीर होती तो या तो इसकी इजाज़त ही नहीं देती या फिर उस पर पहले ही बैन लगा देती.

साइबर विशेषज्ञ तो बहुत पहले से सरकार को इस बात के लिए कह रहे थे.

क्या सरकार का डेटा और साइबर सुरक्षा का डर सही है?

भारत के इलेक्ट्रोनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के एक विभाग ने 2018 में एक रिपोर्ट तैयार की थी. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत को साइबर सुरक्षा को सबसे ज़्यादा ख़तरा चीन से है.

भारत में 35 फ़ीसद साइबर हमले चीन ने ही किए हैं. ये रिपोर्ट नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेटेरिएट और बाक़ी सुरक्षा एजेंसियों को भेजी गई थी.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इस साल भी ख़ुफ़िया एजेंसियां चीनी ऐप्स को लेकर भारत सरकार को आगाह कर रही थीं.

अमरीका की आर्मी ने भी सरकारी मोबाइल्स पर टिकटॉक बैन कर रखा है और उसके पीछे वजह साइबर सुरक्षा ही बताई गई.

सरकार कह रही है कि उन्हें इन ऐप्स को लेकर शिकायत मिली थी और ये ऐप्स यूज़र्स का डेटा ले रहे थे. लेकिन 20 मार्च को ही टिकटॉक को लेकर लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया कि उन्हें अमरीका से भी टिकटॉक को नैगेटिव प्रभाव को लेकर कोई जानकारी नहीं मिली है. जवाब में ये भी बताया गया कि सरकार की जानकारी में ऐसा कोई इनपुट नहीं है कि टिकटॉक से कोई काउंटर इंटेलिजेंस का ख़तरा है.

अमरीका ने चीन की मोबाइल कंपनी ख़्वावे को भी बैन किया हुआ है. 28 जनवरी 2019 को अमरीका के डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस ने ख़्वावे पर बैंक फ़्राड और ट्रेड सीक्रेट चुराने का आरोप लगाया.

रॉयटर्स समाचार एजेंसी की 9 सितंबर 2019 की ख़बर के मुताबिक़ ऑस्ट्रेलिया के सरकारी अधिकारियों ने भारत को भी सलाह दी थी कि वो ख़्वावे को बैन करे.

लेकिन भारत सरकार ने 5G नेटवर्क के ट्रायल के लिए ख़्वावे को इजाज़त दे दी थी. अब भारत सरकार ने सरकारी टेलिकॉम से कहा है कि वो ख़्वावे के उपकरणों का इस्तेमाल ना करे.

डेटा और साइबर सुरक्षा के कई पहलू हैं. रॉयटर्स की एक ख़बर के मुताबिक़ 2018 में फ़ेसबुक ने माना था कि वो यूज़र्स का डेटा चार चीनी कंपनियों के साथ साझा करता है जिसमें ख़्वावे, लिनोवो और ओप्पो शामिल हैं.

साइबर ख़तरों पर काम करने वाली एजेंसी साइफिरमा की 24 जून की रिपोर्ट बताती है कि पिछले कई दिनों से भारत की साइबर सुरक्षा पर ख़तरा बढ़ गया है. चीन के हैकर ग्रुप्स भारत के बड़े संस्थानों को टारगेट कर रहे हैं.

ख़ुद सूचना और प्रसारण मंत्री 2015 में भी राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बता चुके हैं कि जिन देशों से भारत की साइबर सिक्योरिटी को ख़तरा है उसमें चीन टॉप देशों में हैं.

तो चीन से साइबर अटैक और डेटा चोरी का ख़तरा नई बात नहीं है.

क्या चीन पर भारत के इस फ़ैसले का असर पड़ेगा?

चीन ने भारत सरकार के इस फ़ैसले पर चिंता जताई है. आँकड़ों के मुताबिक़ भारत में टिकटॉक और म्यूजिकली के तक़रीबन 30 करोड़, लाइकी के तक़रीबन 18 करोड़, हेलो के 13 करोड़, शेयर-इट, यूसी ब्राउज़र के 12 करोड़ के आसपास यूज़र्स हैं. ये आँकड़े 2019 के हैं.

इंडियन थिंक टैंक गेटवे हाउस के निदेशक ब्लाइस फ़र्नांडीज ने भारत सरकार के इस फ़ैसले पर जापानी मैगज़ीन एशियन निक्केई रिव्यू से कहा है कि इस पाबंदी से टिकटॉक की पैरंट कंपनी बाइटडांस प्रभावित होगी.

उन्होंने कहा कि अलीबाबा और टेनसेंट चीन के डिजुटल सिल्क रूट के हिस्सा हैं. इस पाबंदी से इन ऐप्स की रेटिंग निगेटिव होगी और इसके प्रमोटरों पर भी असर पड़ेगा.

चीन के यहां पहले से ही बैन हैं ये साइट्स

चीन ने ख़ुद अपने यहां भी तो कितनी सारी कंपनी, सोशल मीडिया साइट्स बैन की हुई हैं.

जैसे फ़ेसबुक, यूट्यूब, गूगल, स्पोटिफ़ीई, स्नैपचैट, ट्विटर वग़ैरह.

चीन ने बहुत सारी जानी-मानी ग्लोबल न्यूज़ एजेंसियों को भी सेंसर किया है.

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