Modi Government 2.0: मोदी सरकार के एक साल, ये 5 बातें जो नहीं होनी चाहिए थीं – NDTV Khabar

PM Modi 2.0 : पीएम मोदी ने आज देशवासियों को चिट्ठी लिखी है.

नई दिल्ली :

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा 31 मई यानी रविवार को पूरा हो जाएगा. इससे एक दिन पहले शनिवार पीएम मोदी ने देशवासियों को चिट्ठी लिखी है. जिसमें उन्होंने बीते साल एक साल में सरकार की उपलब्धियों और चुनौतियों का जिक्र किया है. पीएम मोदी ने अपनी चिट्ठी में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370, राम मंदिर, तीन तलाक और नागरिक संशोधन बिल (CAA) का जिक्र किया है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद से आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए पूरा देश एक साथ खड़ा है. लेकिन पीएम मोदी की बातों से इतर बीते एक साल में पीएम मोदी के कार्यकाल में हुए कुछ ऐसी बातों पर ध्यान दें तो पाएंगे कि ये देश में हित नहीं थीं और ऐसा नहीं होना चाहिए था. 

यह भी पढ़ें

1-नागरिकता संशोधन बिल (CAA) को लेकर दंगे
मोदी सरकार में गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन बिल पेश किया जिसके मुताबिक बांग्लादेश और पाकिस्तान में ऐसे अल्पसंख्यकों जिनके ऊपर धर्म के आधार पर अत्याचार हुआ है उनके देश में नागरिकता दी जाएगी. लेकिन इसमें मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया था. इसके बाद अमित शाह ने ऐलान किया कि एनआरसी लाकर देश से अवैध नागरिकों को बाहर कर दिया जाएगा. यहां सरकार की ओर से संवाद में चूक हुई और मुसलमानों के बीच संदेश गया कि उनको देश से बाहर निकाल दिया जाएगा. नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ पहले ही गुस्सा था क्योंकि इसको कई संगठन और लोग धर्मनिरपेक्षता और संविधान की मूल भावना के खिलाफ बता रहे थे. लेकिन एनआरसी वाली बात सुनकर दिल्ली सहित देश के कई शहरों में प्रदर्शन, आगजनी और हिंसा हुई. बाद में पीएम मोदी को दिल्ली में हुई रैली में सफाई देनी पड़ी कि किसी की भी नागरिकता खतरे में नहीं है. लेकिन तब तक बड़े पैमाने पर नुकसान हो चुका था. 

2-महाराष्ट्र में रातों-रात सरकार बनाना और फिर इस्तीफा
महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था और दोनों के गठबंधन ने मिलकर बहुमत भी पा लिया.लेकिन बाद में मुख्यमंत्री पद के लिए झगड़ा शुरू हो गया. शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाकर शपथग्रहण की तैयारी शुरू कर दी. जिस दिन शपथ होना था उससे पहले रात में एनसीपी नेता शरद पवार के भतीजे अजित पवार बीजेपी से मिल गए. सुबह 7 बजे के करीब देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और अजित पवार ने भी उनके साथ जाकर राजभवन में शपथ ग्रहण किया. अजित पवार ने दावा किया उनके साथ कई विधायक आ गए हैं. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया जहां फ्लोर टेस्ट का फैसला सुनाया गया. लेकिन इससे पहले ही देवेंद्र फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया. अजित पवार का दावा हवा-हवाई साबित हुआ. बीजेपी की भी काफी किरकिरी हुई. इसके साथ ही राजभवन और केंद्र सरकार पर भी सवाल उठे. 

3-विपक्ष की भूमिका हो गई ‘जीरो’?
इसमें दो राय नहीं है कि मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में प्रचंड बहुमत के साथ आई है और राज्यसभा में भी उसको समर्थन देने के लिए साथ खड़े हैं. लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विपक्ष की भूमिका भी होती है और सरकार से उम्मीद होती है कि उससे भी सलाह-मशविरा लिया जाए. लेकिन मोदी सरकार की कार्यशैली में विपक्ष को कोई खास तवज्जो नहीं दी जाती है. यह आरोप अक्सर कांग्रेस सहित विपक्ष के कई नेता लगाते हैं. हाल ही में लॉकडाउन को लेकर भी ऐसे आरोप लगे हैं. 
 
4- बेरोजगारी स्तर चरम पर
केंद्र में मोदी सरकार के 6 साल पूरे होने को आए हैं. इस दौरान देश में बेरोजगारी की दर बेतहाशा बढ़ी है. हालांकि सरकारी दावा है कि कई कदम इसको लेकर उठाए गए हैं और असंगठित क्षेत्र का डाटा नहीं होने से इसका कोई ठोस आंकड़ा नहीं है कि कितने लोगों को रोजगार मिला है. लेकिन सच्चाई है कि बेरोजगारी दूर करने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्किल इंडिया’ जैसे कार्यक्रम जमीन स्तर पर फेल साबित हुए हैं और ये रोजगार देने में सक्षम साबित नहीं हुए हैं. दूसरी ओर सरकारी नौकरियों में भी अवसर कम होते जा रहे हैं. लॉकडाउन के बाद एक बड़ी संख्या बेरोजगार हो गई है और यह सरकार के सामने बड़ी चुनौती है.

5-प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए बीते 25 मार्च से लॉकडाउन जारी है. इसकी वजह से उद्योग-धंधे बंद पड़े हैं. ऐसा लग रहा है कि लॉकडाउन से प्रवासी मजदूरों को होने वाली समस्याओं का आंकलन सरकार ठीक से नहीं कर पाई और न ही उनके  लिए कोई ठोस उपाय किए गए. नतीजा यह हुआ कि जब मजदूर हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी पैदल ही तय करके अपनों को घरों जाने लगे तो स्थिति दुखदायी हो गई. सरकार पर भी दबाव बढ़ा तो श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई गईं. लेकिन उनमें क्या हाल है किसी से छिपा नहीं है. लेकिन इतना जरूर है कि लॉकडाउन से पहले अगर कोई ठोस नीति अपनाई गई होती है तो प्रवासी मजदूरों को इतनी दिक्कत न उठानी पड़ती. 

Related posts