India China Border Tension: सीमा विवाद के पीछे चीन के गहरे मंसूबे, जवाबी कदम से नहीं हिचकेगा भारत – दैनिक जागरण

Publish Date:Sat, 30 May 2020 12:34 PM (IST)

विवेक ओझा। India China Border Tension: आज जब पूरी दुनिया एक गंभीर मानवीय संकट से घिरी हुई है तो चीन की शक्ति राजनीति के क्या मायने हो सकते हैं, यह जानना बहुत मुश्किल नहीं है। ऐसे अनेक कारण हैं जिनसे आशंकित चीन इस तरह की हरकतों को अंजाम दे रहा है जिन्हें भारत बर्दाश्त नहीं कर सकता है। यदि चीन के इरादों की पड़ताल की जाए तो इसके कई कारण हैं।

एलएसी के पास भारत की अवसंरचनात्मक गतिविधियां : चीन की इस बौखलाहट का तात्कालिक कारण तो डोकलाम संकट के बाद भारत द्वारा एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) के पास किए जा रहे अवसंरचनात्मक विकास की गतिविधियां हैं जिस पर चीन को आपत्ति है। गौरतलब है कि लद्दाख में एलएसी के नजदीक भारत द्वारा निर्मित किए जा रहे पुल पर चीन को आपत्ति है। गलवान घाटी जहां चीन ने बंकर बनाने पर जोर दिया है, वहीं एलएसी स्थित है और इसके पास भारत ने शियोक नदी से दौलत बेग ओल्डी तक 235 किमी लंबे अति सामरिक महत्व के सड़क का निर्माण कार्य लगभग पूरा कर लिया है।

उल्लेखनीय है कि दौलत बेग ओल्डी देपसांग पठार के अक्साई चिन के इलाके के पास है। भारत ने यहां निर्मित एयरबेस पर मालवाहक सी 130 और सी 17 जहाजों को पहले ही लैंड करा रखा है। विवादित इलाकों पर अपने अधिकार क्षेत्र के खोने का डर चीन को सता रहा है। सीमा सड़क के इस निर्माण कार्य को भारत सरकार और खासकर रक्षा मंत्रालय ने जिस संवेदनशीलता के साथ प्राथमिकता के तौर पर लिया है, उससे चीन कहीं ना कहीं हताश अवश्य हुआ है। भारत द्वारा सामरिक स्थलों पर पुलों, हवाई पट्टियों के निर्माण कार्य में सक्रियता दिखाना और भारत चीन सीमा पर निगरानी चौकसी के लिए गश्त बढ़ाने की रणनीति ने चीन को एकतरफा आक्रोश में आने को विवश किया है। चीन यह मानता है कि इससे इस क्षेत्र में भारत द्वारा यथास्थिति को बदला जा रहा है, पर क्षेत्र में विवाद का कारण तो चीन की हिमालयन क्षेत्र के मानचित्र को बदल देने की जिद है।

डोकलाम संकट के दौरान तिब्बती निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री लोबसंग सांगे ने चीन की गैर आधिकारिक नीति फाइव फिंगर पॉलिसी को चीन की इस  विस्तारवादी नीति का प्रमुख कारण माना था। इस नीति के तहत चीन का यह मानना रहा है कि तिब्बत उसकी हथेली है और अरुणाचल प्रदेश, भूटान, सिक्किम, नेपाल और लद्दाख के हिस्से उसके फाइव फिंगर यानी पांच अंगुलियां हैं। इसलिए इन क्षेत्रों पर कब्जा करने की उसकी चाहत नई नहीं है। इसी नीति के तहत उसने 1962 में भारत पर हमला कर उसके अक्साई चिन क्षेत्र पर अपना कब्जा भी कर लिया था। पर हाल में चीन को सबसे बड़ी चोट तब लगी जब पिछले वर्ष भारत ने जम्मू कश्मीर राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत लद्दाख को केंद्र शासित क्षेत्र के रूप में घोषित किया। इससे यह क्षेत्र सीधे केंद्र सरकार की निगरानी में आ गया।

चीन ने तब इस पर गंभीर आपत्ति भी व्यक्त की थी। वहीं डोकलाम प्रकरण के बाद 2018 में भारत ने सिक्किम में भारत चीन सीमा से मात्र 60 किमी दूर स्थित सामरिक महत्व वाले पाक्योंग हवाई अड्डे का उद्घाटन किया था। जनवरी 2019 में भारतीय वायु सेना ने यहां पर अपने सबसे विशालकाय विमान एएन-32 उतारकर चीन को अपने सुरक्षा प्रबंध का बड़ा संदेश देकर भी हैरानी में डाला था। चीन पहले ही चुंबी घाटी इलाके में सड़क बना चुका है जिसे वह और विस्तार देने की कोशिश कर रहा है। यह सड़क भारत के सिलिगुड़ी कॉरिडोर या चिकन नेक इलाके से थोड़ी ही दूर पर है। इसी कारण से भारतीय सैनिकों और चीनी सेना के बीच अक्सर टकराव होता रहता है। पीएलए के जवानों को वर्ष 2017 में इस विवादित इलाके में निर्माण कार्य करने से भारतीय सेना ने रोक दिया था। चीन को एलएसी पर प्रतिसंतुलित करने के लिए भारतीय सेना ने डोकलाम प्रकरण के बाद बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन के साथ मिलकर तीन नई सड़कों का काम शुरू किया था।

महामारी जनित राजनीति से पैदा हालात : कोरोना वायरस की आपदा के राजनीतिकरण से उपजे जिस शक्ति राजनीति ने जन्म लिया है, वहां सभी बड़ी शक्तियों के वैश्विक प्रभाव और वर्चस्व दांव पर लगे हुए हैं। आपदा को अवसर के रूप में अमेरिका भी देख रहा और चीन भी। वर्ष 2008 की र्आिथक मंदी के सबसे बड़े शिकार अमेरिका और यूरोपीय देशों की कमजोरी ने पिछले एक दशक में चीन की वैश्विक सुपर पॉवर बनने की हसरतों को बढ़ा दिया है। अब अमेरिका कोविड के बहाने चीन को दुनिया में अलग थलग करने की कोशिश में लगा है तो चीन भी कभी भय तो कभी प्रलोभन की राजनीति के जरिये अलग-अलग देशों को अपने गुट में शामिल करने में लगा हुआ है। इन दो बड़ी महाशक्तियों की शक्ति राजनीति का केंद्रबिंदु भारत बना हुआ है। यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत और चीन के बीच मध्यस्थता के लिए पहल करने की मंशा के बहाने यह दिखाने की कोशिश भी की कि वह भारत के साथ खड़ा है और अभी भी विश्व में शांति व सुरक्षा को बनाए रखने वाला निर्णायक देश है।

चीन नहीं चाहता कि भारत चीन विरोधी गुट में खुलकर शामिल हो। इसीलिए डोकलाम संकट के बाद वुहान और चेन्नई बैठक के जरिये पहले तो चीन ने भारत से रिश्ते बेहतर करने की पहल की, लेकिन हाल में कोविड में चीन की भूमिका को लेकर बने एलायंस में भारत ने भी जब चीन के विरुद्ध भाग लिया तो चीन ने अपनी नीति बदलनी शुरू कर दी। अब वह पाकिस्तान और नेपाल के बहाने एक तरफ भारत को घेर रहा है तो दूसरी तरफ अनसुलझे सीमा विवाद को उठाकर भारत पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने की कोशिश में लगा है।

चीन के नेतृत्व में एकध्रुवीय एशिया की स्थापना की महत्वाकांक्षा : चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग एशियाई स्वप्न (एशियन ड्रीम) की धारणा पर 21वीं सदी को एशियाई सदी के रूप में बनाना चाहते हैं। इसके जरिये चीन के नेतृत्व में एकध्रुवीय एशिया की स्थापना उनकी बड़ी महत्वाकांक्षा है। इस दिशा में चीन एशिया में भारत को अपना प्रमुख प्रतिद्वंद्वी मानता है। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों से वह भारत की सामरिक घेरेबंदी का प्रयास कर रहा है। इसके लिए वह भारत के पड़ोसी देशों में चेकबुक डिप्लोमेसी के जरिये अपनी बढ़त बनाने का प्रयास कर रहा है जिससे भारत का प्रभाव अपने ही क्षेत्र में कम हो और भारत के पड़ोसियों में भारत विरोधी भावनाएं मजबूत हो सकें। दूसरी तरफ वह भारत को सीमा विवाद में उलझाए रखना चाहता है। वह यह जानता है कि यह भारत की कमजोर नब्ज है। यहां तक कि चीन की सरकारी मीडिया एजेंसी ग्लोबल टाइम्स अक्सर अपने लेखों में व्यंग्य करती है कि भारत 1962 के पराजय से मनोवैज्ञानिक रूप में बाहर निकल नहीं पाया है।

चीन को लगता है इस बारगेनिंग पॉलिटिक्स और प्रेशर टैक्टिस के जरिये भारत को दक्षिण एशिया की राजनीति में ही उलझाए रखा जा सकता है। इस दिशा में चीन अभी तक भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में वन बेल्ट वन रोड के जरिये घेर रहा था, जिसे स्ट्रिंग ऑफ पर्ल नीति भी कहा गया, पर वहां पिछले कुछ समय से भारत ने अपनी फिसलती जमीन पर फिर से मजबूती से पांव जमा लिए हैं। ऐसे में चीन अब भारत को अपनी सीमा से लगे हुए पर्वतीय क्षेत्रों से घेरने की कोशिश कर रहा है। अपनी इस नीति को प्रभावी रूप देने के लिए उसने भारत के साथ लगे सीमावर्ती क्षेत्रों में गतिविधियों को तेज कर दिया है।

वन चाइना पॉलिसी को मजबूती देना : चीन अपने अतीत के पूर्वाग्रह से ग्रसित है। 19वीं सदी में जिस प्रकार चीन औपनिवेशिक शक्तियों का शिकार हुआ वह चीनी जनमत में गहरे तक समाया हुआ है। चिनफिंग जानते हैं कि अगर चीन में साम्यवादी सरकार को मजबूत बनाए रखना है तो उग्र राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काना जरूरी है। ऐसे में चीन अपनी वन चाइना पॉलिसी के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहता। उसकी दुविधा यह है कि हांगकांग, ताइवान, तिब्बत उसके इस नीति की सबसे बड़ी परीक्षा बन चुके हैं। इसी बीच ताइवान में राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण के लिए आयोजित कार्यक्रम में भारत के दो सांसदों की भागीदारी ने भी चीन को भारत के विरुद्ध आक्रामक रुख अपनाने के लिए प्रेरित किया है, जिससे भारत भविष्य में चीन विरोधी ऐसे मंचों पर ना जा सके।

जवाबी कदम से नहीं हिचकेगा भारत : भारत ने चीन के विरुद्ध जिस प्रकार वैश्विक शक्तियों से गठजोड़ किया है, उसी का परिणाम है कि भारत की तरफ से सख्त संदेश मिलने के बाद चीन ने भी अब समझौते की भाषा बोलनी शुरू की है। भारत में चीन के राजदूत सुन वेडांग ने कहा है कि भारत और चीन एक-दूसरे के लिए खतरा नहीं, बल्कि अवसर हैं। द्विपक्षीय सहयोग में दोनों देशों के मतभेद की परछाई पड़ने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। इसी क्रम में भारतीय प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और तीनों सेनाओं के प्रमुख के साथ लद्दाख में घुसपैठ के मुद्दे पर हुई बैठक में निष्कर्ष यह निकला है कि सैन्य बल के सहारे दबाव बनाने की चीन की रणनीति को नाकाम किया जाएगा।

चीन के एतराज के बावजूद सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों व दूसरे निर्माण कार्य को जारी रखा जाएगा, क्योंकि यह भारत की प्रादेशिक अखंडता और संप्रभुता का मामला है। इस बीच भारत ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वह चीन के खिलाफ किसी भी संघर्ष की स्थिति में उचित जवाबी कदम उठाने से नहीं हिचकेगा। भारत चीन को यह संदेश देने में सफल रहा है कि अब वह उसे 1962 का भारत नहीं समझे। उसका सॉफ्ट पॉवर होना उसकी कमजोरी तो बिल्कुल नहीं समझे, क्योंकि अब भारत क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए हार्ड पावर के इस्तेमाल से भी संकोच नहीं करेगा। हालांकि अभी भी चीन अपने डीप पॉकेट और धूर्त राजनीति के कारण भारत से अनेक क्षेत्रों में बढ़त की स्थिति में है, पर यह चीन भी समझता है कि जैसे जैसे भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत होती जाएगी, चीन की हसरतें भी वैसे वैसे डूबती जाएंगी। इसलिए भारत को एक ऐसी खास विदेश नीति और घरेलू नीति की जरूरत है, जिससे आत्मनिर्भर, सशक्त और विश्व में रचनात्मक भूमिका निभाने में सक्षम भारत का उदय हो सके।

बीते कुछ दिनों से हिमालयी पर्वतीय क्षेत्र भू-सामरिक राजनीति का हॉट स्पॉट बन चुका है। पांच मई को लद्दाख में और नौ मई को फिर सिक्किम के नकुला सेक्टर में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। डोकलाम संकट जैसा ही एक गंभीर सैन्य संघर्ष मंडराता नजर आ रहा है। दरअसल चीन की इस बौखलाहट का तात्कालिक कारण भारत द्वारा एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के पास किए जा रहे अवसंरचनात्मक विकास की गतिविधियां हैं जिस पर चीन को आपत्ति है।

[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]

Posted By: Sanjay Pokhriyal

डाउनलोड करें जागरण एप और न्यूज़ जगत की सभी खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस

Related posts